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अगर पूरी दुनिया के लोग बन जाएंगे शाकाहारी, रिसर्चर्स से जानें फिर क्या होगा?
Gulabi
20 Aug 2021 6:24 AM GMT
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दुनिया के लोग बन जाएंगे शाकाहारी
फल सब्जी, चिकन, मीट, कौन क्या खाएगा या क्या खा सकता है, यह उसकी पसंद और व्यक्तिगत आजादी का मसला होता है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि अगर पूरी दुनिया शाकाहारी हो जाए तो क्या होगा. ये सिर्फ एक सवाल नहीं है बल्कि इस विषय पर पूरी रिसर्च हो चुकी है. शाकाहार और इसके फायदों पर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से जुड़े बीएमजे न्यूट्रिशियन, प्रिवेंशल एंड हेल्थ की तरफ से भी एक रिसर्च को अंजाम दिया गया है. इस रिसर्च पर सामने आया है कि जो लोग शाकाहारी खाना या वीगन डाइट को फॉलो करते हैं, उनमें कोविड-19 होने की आशंकाएं बहुत कम होती हैं. रिसर्च से अलग कभी आपने सोचा है कि अगर पूरी दुनिया शाकाहार अपना ले तो क्या होगा? आइए आपको बताते हैं.
पर्यावरण में रुकेगा कार्बन डाई ऑक्साइड
शाकाहार या मांसाहार इस पर साल 2014 और साल 2018 में ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी पर एक रिसर्च हुई थी. इस रिसर्च के मुताबिक, मीट की अधिकता वाला भोजन रोजाना 7.2 किलोग्राम कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन का कारण बनते हैं. वहीं, शाकाहारी भोजन से केवल 2. 9 किलोग्राम डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. कोलंबिया की इंटरनेशनल सेंटर फॉर ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर के मुताबिक विकसित देशों के लिए शाकाहार अपनाने के बहुत से फायदे हैं. ये पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए बेहतर है. लेकिन विकासशील देशों में ये गरीबी को बढ़ावा देने की वजह भी बन सकता है. अगर सारी दुनिया से रातों-रात मांस खाने वालों को हटा दिया जाए तो क्या होगा?
क्लाइमेट चेंज के लिए जिम्मेदार मांस
यूनिवर्सिटी के मुताबिक खाने की आदतें हमारे माहौल पर असर डालती हैं. लेकिन इसे लोग गंभीरता से नहीं लेते. उदाहरण के लिए अमेरिका में चार लोगों का मांसाहारी परिवार दो कारें से भी ज्यादा ग्रीन हाऊस गैस छोड़ता है. यूनिवर्सिटी की तरफ से कहा गया है कि कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए कार और मांस दोनों जिम्मेदार हैं. इसकी वजह से ज्यादा ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन ज्यादा होता है. ब्रिटेन के फूड सिक्यूरिटी एक्सपर्ट टिम बेन्टन का कहना है कि हमारी खाने की आदतों का हमारे माहौल पर असर पड़ता है. लेकिन इस पर किसी का ध्यान जाता ही नहीं. अगर आज हम सभी मांस खाना बंद ना भी करें, सिर्फ उसकी तादाद कम कर दें तो भी अच्छे नतीजे मिल सकते हैं.
हो सकेगा जमीन का सही प्रयोग
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सिर्फ रेड मीट को ही हटा दिया जाए तो खाने से निकलने वाली ग्रीन हाऊस गैस में 60 फीसदी की कमी आ जाएगी. अगर साल 2050 तक सारे इंसान शाकाहारी हो जाते हैं तो इसमें 70 फीसदी की कमी हो जाएगी. विशेषज्ञों के मुताबिक सारी दुनिया का शाकाहारी होना एक कल्पना भर ही है. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में बारह अरब एकड़ जमीन खेती और उससे जुड़े काम में प्रयोग होती है. इसका 68 फीसदी हिस्सा जानवरों के लिए प्रयोग होता है. अगर सभी सब्जी खाने वाले हो जाएंगे तो करीब 80 फीसदी जमीन चरागाहों और जंगलों के लिए प्रयोग होगी. इससे माहौल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा कम होगी और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिलेगी. बची हुई 10 से 20 फीसदी जमीन का इस्तेमाल फसलें उगाने में किया जा सकेगा.
समय से पहले नहीं होगी मौत
ऑक्सफोर्ड की कंप्यूटर मॉडल स्टडी के मुताबिक अगर साल 2050 तक सारी दुनिया के लोग शाकाहारी हो जाएंगे तो समय से पहले मरने वालों की तादाद में 6 से 10 फीसदी तक की कमी आ सकती है. लोगों को कैंसर, शुगर, हार्ट अटैक जैसी बीमारियों से भी छुटकारा मिल जाएगा. एक और स्टडी में कहा गया है कि ब्रिटेन ने खाने पर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मानक अपनाकर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 17 फीसदी तक की कमी कर ली. अगर खाने में थोड़ा सा बदलाव ले आएं तो वो पर्यावरण के लिए फायदेमंद होगा.
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