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इस तरह पहचानें बच्चों में मलेरिया के लक्षण, उठाए उचित कदम

Kajal Dubey
1 July 2023 11:20 AM GMT
इस तरह पहचानें बच्चों में मलेरिया के लक्षण, उठाए उचित कदम
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अक्सर देखा जाता हैं कि मौसम में बदलाव के होते ही बच्चे बीमार पड़ जाते हैं क्योंकि बच्चों में बड़ों की तुलना में रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity Power) कम होती हैं जिस वजह से बच्चे वायरल बीमारियों की चपेट में जल्दी आ जाते हैं। इन बिमारियों में से एक हैं मलेरिया जो बच्चों में सामान्य तौर पर देखी जाती हैं। समय रहते इसका इलाज नहीं किया जाए तो यह जानलेवा साबित हो सकती हैं। इसलिए आज हम आपके लिए बच्चों में मलेरिया के लक्षणों से जुड़ी जानकारी लेकर आए हैं ताकि उचित कदम उठाया जा सकें। तो आइये जानें इसके बारे में।
मलेरिया के शुरुआती लक्षण
डेंगू और चिकनगुनिया की तरह ही मलेरिया भी मच्छर के काटने से होता है। बच्चों में मलेरिया काफी संख्या में होता है। यह अधिक गर्मी के कारण होता है। मलेरिया से संक्रमित होने के प्रारंभिक दौर में बच्चे चिड़चिड़े, मूडी, उदंडी हो जाते हैं और उन्हें भूख भी कम लगती है और ठीक तरह से नींद न आने की भी शिकायत करते हैं। ये सभी लक्षण यदि बच्चे में पाए जाते हैं तो यह समझना चाहिए कि बच्चे के शरीर में मलेरिया वायरस फैल रहा है।
मलेरिया लक्षण की दूसरी स्टेज
प्रारंभिक दौर के बाद जब बच्चा मलेरिया के सभी लक्षणों का अनुभव कर लेता है तो बच्चों को अक्सर ठंड लगने लगती है जिससे वह बुखार का शिकार हो जाता है। बुखार के दौरान बच्चे‍ तेजी से सांस लेने लगते है। बुखार में ही एक या दो दिन तक शरीर उच्च तापमान में रहता है। कुछेक मामलों में बुखार अचानक से 105 डिग्री या उससे भी अधिक तक चला जाता है और जब बुखार उतरता है तो शरीर का तापमान तेजी से सामान्य होने लगता है और बच्चा पसीने से तर जाता है। जब यही लक्षण (पसीना, बुखार, ठंड लगना) दो या तीन दिन में बार-बार होने लगते है तो मलेरिया का संक्रमण तेजी से बच्चे, के शरीर में फैलता है।
मलेरिया लक्षण का तीसरी स्टेज
बच्चों में अन्य सामान्य मलेरिया के लक्षण जैसे मतली, सिर दर्द और विशेषकर पेठ और पीठ दर्द भी होता है। बच्चों में बढ़ते हुए मलेरिया के अन्य वही लक्षण पाए जाते हैं जो एक व्यस्क के मलेरिया के होने से होते हैं। मलेरिया वायरस से बच्चों के ब्रेन और किडनी पर भी प्रभाव पड़ता है। ब्रेन पर प्रभाव पड़ने से बच्चे की चेतना पर खासा प्रभाव पड़ता है। किडनी पर असर होने से बच्चे के मूत्र का एक असामान्य राशि का उत्पादन कम हो सकता है।
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