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जनता से रिश्ता वेब्डेस्क | 2014 में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने उस साल विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम वेक्टर जनित बीमारियों पर रखी थी ताकि पूरी दुनिया का ध्यान इस मुद्दे पर आकर्षित किया जा सके। तब इन बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए कई देशों ने प्रतिबद्धता जताई, जिसका लाभ भी दिखा। हालांकि अभी भी इस दिशा में काम करना बाकी है। इन बीमारियों के पूर्ण उन्मूलन के लिए मेडिकल एंटोमोलोलॉजिस्ट की विशेषज्ञता की जरूरत है।
मलेरिया, डेंगू, काला अजार और लिम्फेटिक फाइलेरियासिस भारत के हजारों-लाखों परिवारों की जिंदगियों को प्रभावित करती है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) के अनुमानों के अनुसार, 2021 में दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में मलेरिया के 79% मामले और 83% मौतें भारत में हुई थीं। जनवरी से अक्टूबर 2022 के बीच भारत में एक लाख से ज्यादा डेंगू के केस सामने आए थे।
उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों- नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (NTDs) के वैश्विक बोझ का 54% हिस्सा दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र से सम्बंधित है। इन क्षेत्रों में लसीका फाइलेरिया (LF) और काला अजार को ख़त्म करने का लक्ष्य रखा गया है। लसीका फाइलेरिया, एक क्रोनिक और दुर्बल करने वाली बीमारी है। यह बीमारी भारत के 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 328 जिलों में फैल चुकी है। काला अजर या विसरल लीशमैनियासिसी दुनिया के कुछ वंचित तबकों को प्रभावित करने वाली एक घातक बीमारी है।इन बीमारियों में एक चीज जो कॉमन है वह यह है कि ये सभी बीमारियां वेक्टर द्वारा फैलती होती हैं। वेक्टर का मतलब जानवर या कीड़े जो पैथोजन को एक जगह से दूसरी जगह फैलाते हैं। भारत का भौगोलिक और मानसून संरचना वेक्टर जनित बीमारियों को फैलाने में योगदान देती है। उदहारण के तौर पर भारत में मच्छरों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। इन मच्छरों की वजह से ये बीमारियां प्रमुख रूप से फैलती हैं।
इन बीमारियों को फैलाने वाले कीड़ों से मुकाबला करने के लिए वैज्ञानिकों ने कीटनाशकों, लंबे समय तक चलने वाले कीटनाशक जाल (LLINs) और लार्वाइसाइड्स जैसे समाधान विकसित किए हैं। हालांकि कीटनाशक प्रतिरोध और जलवायु परिवर्तन के कारण ये समाधान, जो पहले सही ढंग से काम करते हैं बाद में प्रभावी नहीं रह पाते हैं।
इन बीमारियों के कारण जो क्षति होती है, वह बहुत ही भयावह होती है। इन बीमारियों से पीड़ित होने के कारण व्यक्ति कई बीमारी के प्रति संवेदनशील भी हो जाता है, उसमें अक्षमता आ जाती है, उत्पादकता में कमी आ जाती है। इन बीमारियों के इलाज से वह आर्थिक रूप से कमजोर भी हो जाता है। यहां तक कि इस तरह की बीमारियां व्यक्ति के लिए जानलेवा भी हो सकती हैं।