- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- भविष्य में आपका बिजनेस...
x
हमारे देश में दिल्ली और मुंबई के हवाई अड्डे बाकियों से बहुत अलग हैं
एन. रघुरामन का कॉलम:
हमारे देश में दिल्ली और मुंबई के हवाई अड्डे बाकियों से बहुत अलग हैं। इन दोनों में ही 'ट्रांजिट पैसेंजर्स' नाम की श्रेणी होती है, जो अधिकतर हवाई अड्डों पर नहीं दिखती। इसका मतलब है कि इन हवाई अड्डों पर यात्रियों का एक बड़ा हिस्सा उनका होता है, जो यहां उतरकर और सामान लेकर बाहर नहीं निकलते। इन दोनों जगहों पर आकर वे एक विशेष दरवाजे से बाहर निकलते हैं, जो 'ट्रांजिट पैसेंजर्स के लिए' कहलाता है।
विमान से निकलने के बाद वे उसी हवाई अड्डे के अंदरूनी हिस्से में फिर से प्रवेश कर जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये दोनों ही हवाई अड्डे उन्हें दूसरे विमानों से जोड़ते हैं, जहां से वे अपनी घरेलू या अंतरराष्ट्रीय यात्रा जारी रख सकते हैं। मिसाल के तौर पर यात्री मुंबई में उतरते हैं और फिर दुनिया के विभिन्न हिस्सों की यात्रा शुरू करते हैं।
दिल्ली में भी यही होता है, लेकिन ये हवाई अड्डा पंजाब, हिमाचल, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों के छोटे हवाई अड्डों से भी कनेक्ट करता है, जहां बड़े जहाज उतरने की व्यवस्था नहीं होती। इस कारण दिल्ली में देश के अधिकतर हवाई अड्डों की तुलना में ज्यादा 'ट्रांजिट पैसेंजर्स' होते हैं। कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई भी इसी श्रेणी में आते हैं, लेकिन उनके यहां इस तरह के यात्रियों की संख्या कम है।
गुरुवार को, दिल्ली में लैंड करने के बाद मैं भी एक 'ट्रांजिट पैसेंजर' था, और किसी दूसरी जगह की यात्रा की तैयारी कर रहा था। सुरक्षा औपचारिकताओं के बाद मुझे भूख लगी तो मैं पहले फ्लोर पर गया, जहां फूड कोर्ट है। मैं अच्छी तरह जानता था कि दिल्ली में फूड कोर्ट हमेशा भीड़भरे होते हैं, विशेषकर 'ट्रांजिट पैसेंजर्स' के कारण, जिनके कारण इस सुविधा पर 30 से 40% अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
मैं वहां गया और फूड के लिए कतार में खड़ा हो गया। रोचक बात ये रही कि मुझे फूड पाने में 20 मिनट लगे और उसे खाने में दस मिनट! जरा सोचें। सैकड़ों यात्री जो ना केवल पैसा चुकाने तैयार हैं, बल्कि खासी मात्रा में पैसे दे भी रहे हैं, उन्हें पुराने जमाने की राशन की दुकानों की तरह भोजन के लिए कतार में लगना पड़ता है। मैं अकसर सोचता हूं कि इन हाई-प्रोफाइल रेस्तरां के संचालक ऐसी तकनीक क्यों नहीं विकसित करते, जिससे हाई-प्रोफाइल यात्रियों के 20 मिनट बच सकें?
हाल ही में जब मेरी बहन फ्लोरिडा, अमेरिका के टैम्पा इंटरनेशनल एयरपोर्ट से आ रही थीं तो उनके फोन पर एक अपरिचित लोकेशन उभरी। चूंकि वे स्टारबक्स की 'चाय लाटे' पसंद करती हैं, इसलिए उन्होंने उसका एप डाउनलोड किया था। एप पर पॉप-अप हुई लोकेशन बता रही थी कि हवाई अड्डे में भी एक स्टारबक्स स्टोर है, और वे काउंटर पर यात्रा संबंधी औपचारिकताएं पूरी करते समय मोबाइल से ऑर्डर कर सकती हैं। उन्होंने अपनी पसंदीदा चाय, कुछ टोस्ट, एक ब्रेड-लोफ ऑर्डर किया और फोन से ही भुगतान किया।
सुरक्षा जांच के बाद वे सीधे स्टारबक्स स्टोर गईं, जहां उनसे पहले 23 लोग खड़े थे। लेकिन उन्होंने काउंटर पर फोन दिखाया और कतार में खड़े लोगों से पहले अपना ऑर्डर ले लिया। स्टारबक्स के कुछ फ्रैंचाइजी तो वास्तव में आपकी फोन लोकेशन ट्रैक करके ऑर्डर उसी जगह लाकर देते हैं, जहां आप बैठे हैं। स्टारबक्स ने गत वर्ष जून में वॉशिंगटन के डलास एयरपोर्ट पर मोबाइल से ऑर्डर लेना शुरू किया था और उसके बाद से अब तक यह सुविधा अमेरिका के 70 हवाई अड्डों पर मुहैया करा चुके हैं।
फंडा यह है कि भविष्य में आपका बिजनेस केवल इसी पर निर्भर नहीं करेगा कि प्रतिस्पर्धियों की तुलना में आपका उत्पाद कितना सस्ता या टक्कर का है, बल्कि इस पर भी निर्भर करेगा कि तकनीक के इस्तेमाल से कितनी तेजी से ग्राहक के हाथों में उत्पाद पहुंचा पाते हैं।
Next Story