सम्पादकीय

योगी की नसीहत

Subhi
23 May 2022 3:24 AM GMT
योगी की नसीहत
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मुझे महाराजा रणजीत सिंह जी के जीवन की एक घटना याद आ रही है। उन जैसा प्रतापी और न्यायप्रिय बादशाह उस काल में दूसरा नहीं हुआ। वह मृत्युशैय्या पर पड़े हुए थे।

आदित्य नारायण चोपड़ा; मुझे महाराजा रणजीत सिंह जी के जीवन की एक घटना याद आ रही है। उन जैसा प्रतापी और न्यायप्रिय बादशाह उस काल में दूसरा नहीं हुआ। वह मृत्युशैय्या पर पड़े हुए थे। बच्चों ने उन्हें चारों तरफ से घेर रखा था कुछ सेनापति और सिपहसलार भी थे। सब के चेहरे से बस एक ही मूक प्रश्न झलक रहा था ''आप के बिना पंजाब का क्या होगा'' जिस तरह दीये की लौ बुझने से पूर्व उसमें बहुत ज्यादा चमक आ जाती है, अचानक महाराजा रणजीत सिंह का चेहरा चमका और उन्होंने कहा घबराओ मत मेरी मृत्यु के बाद मेरी मढ़ी (मृत काया) कम से कम दस वर्ष राज करेगी। यह बात सत्य है कि व्यक्ति चला जाता है और उसके द्वारा किए गए सतकर्म ही राज करते हैं। महाराज की मढ़ी ने सचमुच दस वर्ष तक राज किया। मैंने महज उदाहरण दिया है। वर्तमान दौर में राजनीतिज्ञ आते-जाते रहते हैं। मुख्यमंत्री बदल दिए जाते हैं। जनप्रतिनिधि समाजसेवा की सौगंध खाकर विधायक और सांसद बन जाते हैं लेकिन राष्ट्र की जनता सदैव उन्हें ही सम्मान की दृष्टि से देखती है जो सतकर्म करते हैं और अपना कार्यकाल मानव कल्याण और समाज को समर्पित करते हैं लेकिन आज हम देख रहे हैं कि राजनीति में जनप्रतिधियों का नैतिक और सामाजिक स्खलन हो चुका है। राजनीति विशुद्ध पेशा बन गई है। भारत की राजनीति में हमने भ्रष्टाचार के ऐसे-ऐसे कारनामे देखे हैं जिनकी आम आदमी कल्पना भी नहीं कर सकता। विश्व के जितने भी प्रजातंत्र के जानकारों ने भारत में लोकतंत्र का अध्ययन किया उनका मानना है कि इसकी गति बड़ी मन्थर है। यह इतने धीरे-धीरे चलता है कि कई बार विशेष अवसरों पर अपनी सार्थकता खोता सा लगता है। कुछ लोग भारत के लोकतंत्र को एक ऐसे ढोंग के समान करार देते हैं जो अपराधियों की कृपा दृष्टि से चलता है, बेइमानी और भ्रष्टाचारियों की शरणस्थली है।पांच वर्ष तक राष्ट्र के मूल्यों से खेलने का अधिकृत लाइसैंस है और गलती से भी कुछ अच्छे लोग इसमें आ भी जाएं तो वे घुटन महसूस करते हैं। भारत के लोग लोकतंत्र की ​वीभत्स घटनाओं को देखने और झेलने के आदी हो चुके हैं। निगम पार्षद हो, विधायक हो, सांसद हो या फिर उच्च पदों पर बैठे लोगों में से अधिकतर की जांच की जाए तो भ्रष्टाचार के इतने खुलासे हो सकते हैं कि एक महाग्रंथ की रचना हो सकती है। इन्हीं सब परिस्थितियों को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा के सभी सदस्यों को ठेके, पट्टे और ट्रांसफर-पोस्टिंग से दूर रहने की नसीहत दी है। जनप्रतिनिधियों का उतावलापन, उद्दंडता, ठेके, पट्टे व ट्रांसफर पोस्टिंग से अनुराग और हर एक मामले में हस्तक्षेप करने की आदत उनकी छवि को लुढ़का देती है। चाहे संसद हो या विधानसभा अपनी छवि जीवन भर उनका साथ देगी लेकिन यदि उस पर भी थोड़ी सी भी चोट लगी तो यह अभिशाप बन जाती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नसीहत केवल उत्तर प्रदेश के जनप्रतिनिधियों तक ही सीमित नहीं बल्कि यह हर जनप्रतिनिधि पर फिट बैठती है।जो नेता जनता का वोट हासिल कर सदनों में पहुंचते हैं। कौन नहीं जानता कि तबादले और नियुक्तियां आज के दौर में एक उद्योग बन चुके हैं। कभी बिहार में लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में अपहरण एक उद्योग बन गया था वैसे ही राजनीति में कई तरह के उद्योग-धंधे पनप चुके हैं। यह देश बड़े-बड़े घोटालों का चश्मदीद बना है। निगमों, बोर्डों में नियुक्तियां और ठेके देने में कितना भ्रष्टाचार है यह हर कोई जानता है। पहले यह कहा जाता रहा है जिन्होंने लूटा सरेआम मुल्क को अपने उन लफंदरों की तलाशी कोई नहीं लेता, गरीब लहरों पर पहरे बिठाए जाते हैं समुंदरों की तलाशी कोई नहीं लेता। ऐसा नहीं है कि समुंदरों पर उंगलियां नहीं उठी हैं। इनमें से कुछ को सजा भी हुई है और कुछ लोग साफ बच भी गए हैं। जब भी सीबीआई, आयकर विभाग, प्रवर्तन विभाग एजैंसियां समुंदरों की तलाशी लेना शुरू करती हैं तो शोर मचाया जाता है कि यह एजैंसियां सत्तारूढ़ दल के दुरुपयोग का हथियार बन चुकी हैं और सब कुछ राजनीतिक विद्वेष से किया जा रहा है। जब मामूली निगम पार्षद से लेकर आला अफसरों, राजनीतिज्ञों के करीबी रिश्तेदारों और व्यवसायियों पर छापे के दौरान करोड़ों के नोटों के ढेर मिलते हैं जिन्हें गिनते-गिनते मशीनें भी थक जाती हैं तो राजनीतिक प्रतिशोध का ढिंढोरा पीटा जाता है।संपादकीय :पेट्रोल-डीजल के कम दामपेड़ लगाओ जीवन बचाओ'रतनलाल' तुम 'पत्थर' निकले !बेवजह है भाषा विवादनिकहत का स्वर्णिम संदेशज्ञानवापी : शिव ही सत्य हैयह भी सही है कुछ जनप्रतिनिधि विकास कार्यों से दूरी बना लेते हैं। जब चुनाव आता है तो धड़ाधड़ उद्घाटन और शिलान्यास करने लग जाते हैं तब जनता उनसे सवाल पूछती है कि वे पांच साल कहां थे। कभी विधानसभाओं और संसद में बहस का स्तर काफी ऊंचा होता था जो अब स्तरहीन हो चुका है। जनता के बीच राजनीतिज्ञ असम्मान और अविश्वास के प्रतीक बन गए हैं। योगी आदित्यनाथ ने विधायकों को जनता से नियमित संवाद करने को कहा है और सदन में सक्रिय और अच्छा आचरण करने वाले आदर्श विधायकों को सम्मानित करने की व्यवस्था करने को भी कहा है। उन्होंने जनप्रतिनिधियों को अपनी ताकत का बेवजह इस्तेमाल करने के लिए भी आगाह किया है। काश योगी आदित्यनाथ की नसीहत हर जनप्रतिनिधि अपने आचरण में उतारे तो ही लोकतंत्र शक्तिशाली और सार्थक बन सकता है।

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