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सम्पादकीय
केरल की वामपंथी सरकार गुजरात मॉडल से ऐसा क्या सीख रही जिस पर बवाल मचा है?
Gulabi Jagat
6 May 2022 7:43 AM GMT
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ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बात करें तो अपने नाम के साथ मॉडल शब्द जोड़ने वाला गुजरात कोई पहला राज्य नहीं है
प्रवीण कुमार |
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बात करें तो अपने नाम के साथ मॉडल शब्द जोड़ने वाला गुजरात कोई पहला राज्य नहीं है. केरल का इतिहास इस मामले में ज्यादा पुराना है. केरल मॉडल (Kerala Model) 1970 का है, जबकि गुजरात मॉडल (Gujarat Model) की चर्चा पहली बार 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने की थी जो अब देश के प्रधानमंत्री हैं. तो फिर ऐसा क्या हुआ कि केरल की वामपंथी सरकार को अपना शानदार केरल मॉडल छोड़कर बीजेपी के गुजरात मॉडल का सहारा लेना पड़ रहा है? इस खबर से एक तरफ केरल के वामपंथी धड़े और विपक्षी फ्रंट यूडीएफ में खलबली मची हुई है, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी विजयन सरकार के इस साहसिक कदम पर ताली बजा रही है और यह कहने से नहीं चूक रही है कि केरल की वामपंथी सरकार भी गुजरात मॉडल का लोहा मान रही है और उसे अपनाने को बेताब है, मानो वामपंथियों की बुद्धि खुल गई हो.
हालांकि, राजनीति से ऊपर उठकर देखें और सोचें तो बात इतनी बड़ी नहीं कि उसका बतंगड़ बनाया जाए. बहुत छोटी से बात है लेकिन बड़े काम की बात है. केरल मॉडल में बहुत कुछ ऐसा था और है जिसे देश के अन्य राज्यों ने अपनाया. आज अगर गुजरात के ई-गवर्नेंस मॉडल में कुछ चीजें अच्छी हैं और केरल उसे समझना चाहता है या फिर अपनाना चाहता है तो इसमें किसी को दिक्कत क्यों होनी चाहिए. हम सब आज डिजिटल युग में जी रहे हैं तो यह समझना जरूरी है कि जो कोई राज्य अपनी प्रशासनिक दक्षता में तकनीकी तौर पर पिछड़ता है तो उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. कोविड महामारी के दौर में इसे सबने भुगता है. इसीलिए तो केरल मॉडल की हमेशा तारीफ होती है कि गवर्नेंस मॉडल को बेहतर बनाने में केरल की सत्ता अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और राजनीतिक सत्ता से ऊपर उठकर सोचती है.
क्या है 'केरल में गुजरात मॉडल' की पूरी कहानी?
इसमें कोई शक नहीं कि केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का बीजेपी शासित राज्य गुजरात से प्रशासनिक तौर-तरीकों को अपनाने का फैसला एक साहसिक बदलाव जैसा है. इसके क्यों और कैसे को समझने के लिए इस पूरी कहानी को समझना जरूरी है. कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाल की मुलाकात में पी. विजयन की ई-गवर्नेंस के मुद्दे पर चर्चा हुई थी. तब पीएम मोदी ने उन्हें गुजरात के ई-गवर्नेंस मॉडल के बारे में बताया था और सलाह दी थी कि केरल भी 'सीएम डैशबोर्ड सिस्टम' को अपना सकता है.
विजयन को पीएम मोदी की ये सलाह अच्छी लगी और तिरुवनंतपुरम लौटते ही अपने आला अधिकारी की दो सदस्यीय टीम को दो दिन के गुजरात दौर पर जाने का फरमान जारी कर दिया. मुख्य सचिव डॉ. वी.पी. जॉय अपने स्टाफ सदस्य उमेश एन.एस.के. के साथ 27-29 अप्रैल तक गुजरात के गांधीनगर के दौरे गए और डैशबोर्ड सिस्टम को समझने के तुरंत बाद बताया, "हमने अभी-अभी डैशबोर्ड निगरानी प्रणाली देखी. यह सेवाओं के वितरण की निगरानी, लोगों की प्रतिक्रिया और अन्य चीजें एकत्र करने के लिए एक अच्छी और व्यापक प्रणाली है.
सिस्टम बहुत सुचारू रूप से काम करता है. यह एक अच्छा डिजिटल सिस्टम है क्योंकि अधिकारी अपने स्वयं के प्रदर्शन को भी ट्रैक कर सकते हैं और यह भी सुनिश्चित करता है कि लोगों को सेवाएं दी जाएं. यह फीडबैक प्राप्त करने में भी मदद करता है जिसका उपयोग क्रियान्वयन के लिए किया जा सकता है." जैसे ही विजयन की भरोसेमंद टीम ने गुजरात के डैशबोर्ड सिस्टम की तारीफ में कसीदे पढ़े, केरल की वामपंथी सरकार पर चौतरफा हमले शुरू हो गए.
विरोधी पिछला हिसाब तो चुकता करेंगे ही
दरअसल, केरल में कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस पार्टी हो या फिर इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, ये सभी गुजरात मॉडल से नफरत करते हैं. ऐसे में बीजेपी के नेतृत्व वाले राज्य से सीखने का मतलब यह समझा जाता है कि कम्युनिस्टों के पास अब अपना कोई मॉडल नहीं बचा है. केरल कांग्रेस के प्रमुख के. सुधाकरन ने माकपा स्पष्ट करे कि क्या वह राज्य में गुजरात में लागू मॉडल को लाने का प्रयास कर रही है. सुधाकरन ने आरोप लगाया कि बीजेपी और माकपा के बीच समझ अब राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच चुकी है. विजयन अब 'नाकाम केरल मॉडल' को छोड़कर 'सफलतम गुजरात मॉडल' लागू करें. विरोध स्वभाविक भी है. क्योंकि केरल के मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी ने हमेशा गुजरात मॉडल की आलोचना की है.
साल 2013 में माकपा ने कांग्रेस नीत यूडीएफ सरकार के तत्कालीन श्रम मंत्री शिबू चाइल्ड जॉन को निष्कासित करने की मांग की थी, जो आधे दिन के लिए नई दिल्ली से केरल वापस आने पर गुजरात का दौरा किया था. जॉन को तब गुजरात के एबिलिटी इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. हालांकि जॉन ने बाद में घोषणा की थी कि यह प्रोग्राम केरल के लिए उपयुक्त नहीं था.
इससे पहले साल 2009 में जब एक माकपा सांसद ए.पी. अब्दुल्लाकुट्टी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके राज्य के बारे में बहुत कुछ कहा था तो उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. फिर वह कांग्रेस में शामिल हो गए और दो बार विधायक चुने गए, लेकिन बाद में कांग्रेस ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया और आज अब्दुल्लाकुट्टी बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. ऐसे में वही वामपंथी सरकार गुजरात मॉडल के किसी प्रोग्राम का मुरीद हो जाए और उसे केरल की गवर्नेंस में अपनाने की बात करे तो विरोधी पिछला हिसाब चुकता तो करेंगे ही. माकपा की स्टेट यूनिट को भी सरकार का यह कदम अच्छा तो नहीं लग रहा है. लेकिन दिक्कत यह है कि इस वक्त सीएम विजयन अमेरिका के मिनेसोटा में हैं जहां उनका इलाज चल रहा है.
क्या है गुजरात का सीएम डैशबोर्ड सिस्टम?
गुजरात सरकार को गुड गवर्नेंस में सहयोग देने वाली ई-गवर्नेंस सिस्टम का नाम है 'सीएम डैशबोर्ड सिस्टम'. राज्य में 26 सरकारी विभागों तथा जिला व तहसील स्तर के कार्यालयों द्वारा जनहितकारी योजनाओं का लाभ, राज्य परिवहन (एसटी), बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के आसानी से उपलब्ध होने की सारी जानकारियों की रियल टाइम निगरानी गांधीनगर से सीएम डैशबोर्ड के माध्यम से की जाती है. गुजरात के सभी जिलों और अलग-अलग सभी प्रशासनिक विभाग तथा उनकी योजनाओं की निगरानी सिंगल विंडो प्लेटफॉर्म पर 3400 पूर्वनिर्धारित संकेतकों के जरिये की जाती है. इसी प्लेटफॉर्म से गुजरात के मुख्यमंत्री राज्य के सभी महत्वपूर्ण अधिकारियों के प्रशासनिक कार्यों का निरीक्षण करते हैं. इतना ही नहीं, कोरोना महामारी के दौरान अस्पताल में बेड, ऑक्सीजन आपूर्ति और दवाइयों की उपलब्धता आदि के बारे में भी सारी जानकारियां इसी डैशबोर्ड की वीडियो वॉल के जरिए मिलती थी.
गुजरात सीएम डैशबोर्ड को साल 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने मंजूरी दी थी. 20 गवर्नमेंट सेक्टर्स के 3,400 इंडिकेटर्स, 740 इंटरनेट प्रोवाडर्स तथा एपीआई और 183 ई-गवर्नेंस सुविधाओं के एकीकरण के साथ एक ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म किसी चमत्कार से कम नहीं है. केरल के सीएम पी. विजयन गुजरात के डैशबोर्ड सिस्टम से बेहद प्रभावित हैं. संभव है विजयन अमेरिका से लौटने के बाद सीएम डैशबोर्ड सिस्टम को केरल में अपनाएं ताकि वो अपनी प्रशासनिक दक्षता और क्षमता को और गति प्रदान कर सकें.
बहरहाल, अपनी राजनीतिक सत्ता को खतरे में डालने और वैचारिक प्रतिबद्धता से मेल नहीं खाने के बावजूद बीजेपी शासित गुजरात सरकार के प्रशासनिक तरीकों को अपनाने की पिनराई विजयन की इच्छाशक्ति को सलाम करना चाहिए और इसे केरल के शासन-प्रशासन में अतिरिक्त प्रभावशीलता और पारदर्शिता लाने के लिए एक साहसपूर्ण बदलाव के तौर पर देखा जाना चाहिए. केरल के मानव विकास मॉडल से देश के कई राज्य लाभान्वित हुए हैं. भारत जैसे बड़े राष्ट्र में केरल को भी दूसरे राज्यों की प्रभावी पब्लिक सर्विसेज डिलीवरी सिस्टम का अध्ययन करना चाहिए, संभव हो तो अपनाना चाहिए. यही असली संघवाद है. यही असली संघीय ढांचा है जिसे बचाए रखना भारत की एकता और अखंडता के लिए जरूरी है. पार्टी अपनी जगह हो सकती है, राजनीतिक सत्ता अपनी जगह हो सकती है, राजनीतिक प्रतिबद्धता अपनी जगह हो सकती है, लेकिन जब गुड गवर्नेंस की बात आती है तो इस सभी चीजों से ऊपर उठकर तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों को दूसरे अन्य राज्यों के अच्छे कार्यक्रमों को अपनाने से परहेज नहीं करना चाहिए.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Gulabi Jagat
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