सम्पादकीय

आतंक का जाल

Subhi
14 March 2022 4:02 AM GMT
आतंक का जाल
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कश्मीर में आतंकवादियों ने एक बार फिर राजनीति से जुड़े लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। दस दिन के भीतर दो सरपंचों और एक पंचायत प्रतिनिधि की हत्या चिंता का विषय है।

Written by जनसत्ता: कश्मीर में आतंकवादियों ने एक बार फिर राजनीति से जुड़े लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। दस दिन के भीतर दो सरपंचों और एक पंचायत प्रतिनिधि की हत्या चिंता का विषय है। इन घटनाओं ने एक बार फिर घाटी के लोगों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय कर देने बाद से केंद्र सरकार यह दावा करती रही है कि घाटी में अब आतंकी घटनाएं थम चुकी हैं, घाटी पूरी तरह सुरक्षित है और हालात सामान्य हैं। लेकिन आए दिन होने वाले आतंकी हमलों को देखते हुए क्या कोई यह कहेगा कि सब कुछ सामान्य है? हकीकत तो यह है कि आतंकी संगठन पहले की तरह ही अपनी गतिविधियां जारी रखे हुए हैं।

ऐसे में यह सवाल तो उठेगा ही कि आखिर घाटी में सुरक्षा है कहां और कौन सुरक्षित है! भले सेना और स्थानीय पुलिस आए दिन आतंकियों और उनके कमांडरों को ढेर कर रही हो, लेकिन सवाल है कि जब अंतरराष्ट्रीय सीमा पर कड़ी चौकसी है और सीमापार से घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम करने के दावे होते रहे हैं, तो फिर ये आतंकी आ कहां से रहे हैं?

गौरतलब है कि पिछले हफ्ते पुलवामा और कुपवाड़ा में हुई मुठभेड़ों में जैश-ए-मोहम्मद के दो आतंकवादी मारे गए। इनके साथ एक और जो शख्स मारा गया, उसकी पहचान एक पाकिस्तानी नागरिक के तौर पर हुई। इससे यह तो साफ है कि घाटी में घुसपैठ अभी भी हो रही है। कड़ी सुरक्षा के बाद भी सीमापार से आतंकी घाटी में घुस रहे हैं, भले इनकी संख्या पहले के मुकाबले काफी कम हो। आतंकियों के सफाए के लिए घाटी में लंबे समय से सेना और सुरक्षाबलों का अभियान भी चल ही रहा है। शायद ही कोई दिन गुजरता हो जब घाटी से आतंकियों के साथ मुठभेड़ की खबरें न आती हों। लेकिन आतंकी हमलों का सिलसिला थम नहीं रहा।

चौंकाने वाली बात तो यह है कि कुछ दिन पहले लापता युवक जब मुठभेड़ में मारा जाता है तो पहचान के बाद पता चलता है कि वह आतंकी संगठनों के साथ जुड़ गया था। जाहिर है, आतंकी संगठन अभी भी नौजवानों को अपने साथ शामिल कर रहे हैं। आतंकी संगठनों ने नए-नए नामों से संगठन बना लिए हैं और इनका जाल गांव-गांव तक फैले होने की बातें भी सामने आती ही रही हैं। वारदातों को अंजाम देने के बाद आतंकी जंगलों में भाग जाते हैं, जहां उन्हें खोज पाना सुरक्षाबलों के लिए आसान नहीं होता। यानी सेना और सुरक्षा बलों के सबसे बड़ी चुनौती अब स्थानीय स्तर पर आतंकियों के नेटवर्क को ध्वस्त करने की है।

कश्मीर घाटी में पिछले दो सालों में कई बड़े आतंकी हमले हुए हैं। दूसरे राज्यों से आने वालों पर भी आतंकी हमले हुए। सुरक्षाबलों और नागरिकों को निशाना बनाया जाना तो आम है। राजनीतिक गतिविधियों से जुड़े लोगों को निशाना बनाने के पीछे मकसद कोई छिपा नहीं है। पाकिस्तान के इशारे पर वहां अशांति फैलाई ही इसलिए जा रही है, ताकि न कोई राजनीति गतिविधि हो, न ही विकास संबंधी दूसरे काम।

लोग खौफ में होंगे तो उनमें गुस्सा भी पनपेगा और माहौल बिगड़ेगा। कहने को सरकार ने सभी पंचायत प्रतिनिधियों को सुरक्षा दी हुई है, पर इससे हमले कहां रुकने वाले हैं? सवाल तो इस बात का है कि नौजवानों को आतंकियों के जाल में जाने से बचाया कैसे जाए? उन्हें मुख्यधारा में कैसे लाया जाए? सरकार और सुरक्षाबलों के लिए यह दोहरी चुनौती है। जब तक विकास और रोजगार नहीं होगा तो नौजवानों को आतंकी बनने से कैसे बचा पाएंगे?


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