सम्पादकीय

लोहार की चोट का इंतजार

Gulabi
1 July 2021 4:05 PM GMT
लोहार की चोट का इंतजार
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ड्रोन का इस्तेमाल दुनिया के अनेक देशों जैसे सीरिया, अफगानिस्तान, इराक आदि देशों में

आदित्य चौपड़ा। ड्रोन का इस्तेमाल दुनिया के अनेक देशों जैसे सीरिया, अफगानिस्तान, इराक आदि देशों में आतंकवादी संगठन बीते पांच सालों से हमलों में करते रहे हैं। लेकिन भारत में अब आतंकवाद ड्रोन पर सवार होकर आया है। पंजाब के सीमांत इलाकों में कई बार ड्रोन देखे जाते रहे हैं। इनका इस्तेमाल नशीले पदार्थों के तस्कर करते हैं तो कभी इनसे हथियार भी ​िगराए गए। शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई या आतंकी संगठन ड्रोन को हथियार बना लेंगे। यह भी साफ है कि जम्मू-कश्मीर में ड्राेन हमलों की साजिश के लिए आईएसआई ही जिम्मेदार है।


अब सुरक्षा बलों को ड्रोन हमलों का तोड़ निकालना है। भारतीय सुरक्षा बल इतना सक्षम हैं कि वह ड्रोन हमलों के लिए पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देगा लेकिन रणनीतिक स्तर पर जवाब भारत के राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही को करना होता है। पुलवामा हमले के बाद एलओसी पार कर बालकोट आतंकी शिविर पर सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक का फैसला राजनीतिक नेतृत्व ने ही किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने हमेशा पाकिस्तान के मामले में दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दिया है। प्रधानमंत्री ने कल इनके साथ ड्रोन हमलों के बाद की स्थिति की समीक्षा की। इस बैठक में सुरक्षा बलों को आधुनिक उपकरण प्रदान करने और अन्य रणनीतिक पहलुओं पर विचार किया गया।

जहां तक जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का सवाल है, आंकड़ों को देखा जाए तो इस वर्ष 24 जून तक ऐसी 47 घटनाएं हुईं ​जिनमें 15 सुरक्षा कर्मी शहीद हुए और दस नागरिक मारे गए, जबकि 68 आतंकी मारे गए हैं। जबकि वर्ष 2020 में हुई 140 घटनाओं में 321 लोग मारे गए थे, जबकि 2019 में 135 घटनाओं में 283 मौतें हुई थीं। इन मौतों में सबसे अधिक संख्या आतंकियों की है। पिछले वर्ष 232 तो 2019 में 163 आतंकवादी मारे गए थे। अब जबकि राज्य में पूरी तरह शांति बहाल करने की कोशिश हो रही है।

राज्य में लोकतां​ित्रक प्रक्रिया की शुरूआत करने, विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी चल रही है, तो आतंकवादी वारदातें बढ़ने का भी एक अर्थ है। साफ है कि कश्मीर में फिर आतंकवाद का प्रसार लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुक्सान पहुंचाया जा सकता है। कूटनीति बड़ी अजीब शैः है जो राजनीति तो अलग शैः है। यद्यपि कुछ वैश्विक ताकतें दबाव डाल रही हैं कि भारत और पाकिस्तान में बातचीत फिर शुरू की जाए लेकिन हमने कूटनीति भी करके देख ली। एक ग्रीक दार्शनिक ने कहा है कि कूटनीति देशभक्तिपूर्ण झूठ बोलने की सबसे बड़ी कला है। पाकिस्तान हुकमरान निसंदेह इस कला में माहिर हैं। इस बार भी वह यही कहेगा कि ड्रोन हमले जम्मू-कश्मीर के आतंकियों का कारनामा है, पाकिस्तान का इसमें कोई हाथ नहीं। पाकिस्तान का रुख भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण रहा है। जब से राष्ट्र का विभाजन हुआ, तब से पाकिस्तान ने भारत के प्रति एक बार भी मैत्रीपूर्ण रवैया अपनाया हो तो बताएं। देश विभाजन के बाद न जाने कितना पानी रावी और झेलम से गुजर गया। हमने देख लिया गिद्धों के वंशज कभी कबूतर नहीं हो सकते। क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान भी ऐसे ही गिद्ध निकले। वे भी जानते हैं कि वह विफल राष्ट्र का नेतृत्व कर रहे हैं।

जब से जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाया गया है, वहां आजादी की मांग उठाने की सम्भावना नहीं बची। आजादी की मांग करने वालों के लिए कोई जमीन ही नहीं बची। अब केवल बचे-खुचे आतंकवादियों के ​िलए केवल कुछ जमीन ही बची है। अब वे हताश हैं कि क्योंकि घाटी में राजनीतिक दल लोकतंत्र बहाली की ​िदशा में आगे बढ़ रहा है, उसे अलगाववाद का मुद्दा ही कहीं हाशिये पर चला जाएगा। सुरक्षा तंत्र की बड़ी चुनौती ड्रोन के सम्भावित हमलों से बचने और समय रहते इन्हें नाकाम करने के तरीके विकसित करने की होगी। अब मोदी सरकार की तैयारी घाटी को आतंक मुक्त करने की होगी। साथ ही राजनीतिक नेतृत्व को फैसला लेना है कि पाकिस्तान पर 'लोहार की चोट' कब करनी है। ड्रोन के मुकाबले राजनीतिक नेतृत्व को और भारतीय सैन्य बलों में द्रोणाचार्य पैदा करने होंगे। ऐसे प्रहार करने होंगे कि पाकिस्तान टूट जाए। जब शांति के सारे प्रयास असफल हो जाएं तो गांडीव उठाना ही धर्म है।


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