सम्पादकीय

भारत का वैदिक ज्ञान-विज्ञान: जब मप्र में पुरापाषाण काल में शक्ति पूजा के साक्ष्यों से हिल गई थी दुनिया

Neha Dani
28 Oct 2021 1:46 AM GMT
भारत का वैदिक ज्ञान-विज्ञान: जब मप्र में पुरापाषाण काल में शक्ति पूजा के साक्ष्यों से हिल गई थी दुनिया
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उसी के आधार पर उन्होंने भी अपनी सभी अवधारणाएं बना डालीं।

आधुनिक इतिहासकारों ने भारत के विषय में शोध करते हुए सिंधू घाटी सभ्यता (3300 ई. पू.) को हिंदू मान्यताओं की सबसे प्राचीन सभ्यता कहते हुए चैन की सांस ली। वेदों के समय काल को स्थापित करने ने उनकी सांसे अटका रखी थी। वे आज तक असमंजस मे हैं कि वेद पहले आए या सिंधु घाटी सभ्यता। एकेडमिक्स की अपनी मजबूरियां हैं, सो खुदाई में मिले साक्ष्यों के आधार पर पहले सिंधु घाटी सभ्यता बता दी और वेदों की समीक्षा करते हुए भाषा विदों ने उन्हें 1500 ई. पू. का चिन्हित कर दिया। आधुनिक इतिहास में यही पढ़ाया जाता है।

इधर, ये भी कह डाला कि पूजा उपासना और मंदिर तो बाद में आए, लेकिन 1980 के दशक में अमेरिका और भारत के पुरातत्वविदों की टीम के संयुक्त प्रयास से मध्य प्रदेश के सीधी में हुई खुदाई ने सारी धारणाओं को ध्वस्त कर दिया। खुदाई के साक्ष्यों ने ये तो स्थापित कर दिया कि ये पुरापाषाण काल का शक्ति पीठ है पर समस्या ये थी कि 50 हजार ई. पू. के पुरापाषाण काल से पूजा पाठ को कैसे जोड़ें? बहुत खींचतान कर इस शक्ति पीठ को 15 हजार से 20 हजार ई. पू. का बताया गया। कैसे माता का सबसे प्राचीन शक्ति पीठ आधुनिक इतिहास के लिए चुनौती बना पर विस्तृत लेख।
बागोर या बाघोर स्टोन अभियान और भारत
इलाहबाद यूनिवर्सिटी के डॉ.जी.के.शर्मा और यूनिवर्सिटी ऑफ केलीफोर्निया के पुरातत्वविद् डेसमंड क्लार्क की टीमों ने मिलकर ये आश्चर्यजनक खोज की थी। बागोर या बाघोर स्टोन के नाम से इस अभियान को जाना जाता है।
इस खुदाई ने भारत में हिंदू धर्म की स्थापना को लेकर आधुनिक इतिहासकारों की सभी मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया, जो हिंदू धर्म और उसमें देवी उपासना को वैदिक काल के भी बाद का कहते आए उनके लिए तो काटो तो खून न की स्थिति हो गई।
यकीनन, पुरातत्वविद् ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर काम करते हैं। निश्चित तौर पर वे तथ्यों को छुपाते नहीं। इस टीम ने भी स्पष्ट कर दिया कि ये पीठ और यहां मिली कई अन्य चीजें स्पष्टतः पुरा पाषाण काल की हैं।
इसके शक्ति पीठ होने का खुलासा भी बहुत दिलचस्प था। दरअसल, टीम ने इसे पाषाणकाल की जांच के लिए ही खोदना शुरू किया। एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा-
आपने इस पवित्र माता स्थान को खोद क्यों दिया? इस बात से सभी के कान खड़े हो गए। सवाल किया गया कि आपको कैसे पता चला कि ये पवित्र स्थान है? जवाब आया आज भी माता की इसी रूप में कई गांवों में पूजा होती है। ईथनोग्राफी के जरिए शोध किया गया और पाया गया कि स्थानीय जनजातियां आज भी माता कि इसी रूप में पूजा करती हैं।
किस क्षेत्र में हुई खुदाई?
मध्यप्रदेश के कैमूर ढलान क्षेत्र में ये खुदाई का कार्य शुरू किया गया था। कैमूर ढलान का क्षेत्र मध्य प्रदेश के जबलपुर से बिहार के सासाराम तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में ऐतिहासिक महत्व की कई साइट्स हैं। इनमें से एक सीधी क्षेत्र में है, जहां खुदाई का ये काम किया गया था। इस खुदाई से ये सिध्द हो गया कि शक्ति की उपासना पूर्व मान्यताओं से उलट पुरापाषाण काल में भी हुआ करती थी।
पहले इतिहासकारों ने ये स्थापित करने का प्रयास किया था कि शक्ति उपासना वैदिक काल के बाद शुरू हुई होगी। मैं इतिहास कि जितनी भी पुस्तकें पढ़ता हूं वे ज्यादातर इस खुदाई के पहले की हैं निश्चिततौर पर उन सभी इतिहासकारों पर पुराने साक्ष्यों का ही प्रभाव था। उसी के आधार पर उन्होंने भी अपनी सभी अवधारणाएं बना डालीं।

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