सम्पादकीय

घाटी का रास्ता

Subhi
21 Jun 2021 2:20 AM GMT
घाटी का रास्ता
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जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटा कर उसे दो केंद्र शासित राज्यों में विभाजित किए जाने के करीब दो साल बाद अब वहां की स्थितियां सामान्य होने की सूरत बनती नजर आने लगी है।

जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटा कर उसे दो केंद्र शासित राज्यों में विभाजित किए जाने के करीब दो साल बाद अब वहां की स्थितियां सामान्य होने की सूरत बनती नजर आने लगी है। प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर के चौदह राजनीतिक दलों को सर्वदलीय बैठक में शिरकत करने के लिए न्योता भेजा है। इसके साथ ही घाटी में सियासी हलचल तेज हो गई है। तमाम पार्टियों की अपने स्तर पर और संयुक्त रूप से गठित गुपकार संगठन की बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया है। हालांकि शुरुआती तौर पर पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के प्रधानमंत्री के साथ बैठक में शामिल न होने की खबरें आर्इं, पर लगभग सभी दलों ने गुपकार के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के इसमें हिस्सा लेने की बात स्वीकार की है। इस तरह घाटी में लंबे समय से चला आ रहा राजनीतिक गतिरोध अब टूटने का रास्ता साफ हो गया है। अनुच्छेद तीन सौ सत्तर हटने के साल भर बाद ही वहां विधानसभा के चुनाव कराने का इरादा जताया गया था, मगर स्थितियां सामान्य होने में देर लगने के कारण यह काम रुका रहा। इससे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अच्छा संकेत नहीं जा रहा है। फिर वहां के विकास कार्यों और जन सामान्य की रोजमर्रा जिंदगी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

अब घाटी में स्थिति पहले से काफी बेहतर है। अलगाववादी गतिविधियों पर लगाम लगी है। सामान्य नागरिक चाहते हैं कि जल्दी स्थिति सामान्य हो और वे अपने पुराने कामकाज में लौट सकें। हालांकि वहां के राजनीतिक दल अभी तक विशेष दर्जा समाप्त करने और दो केंद्र शासित प्रदेशों में बंटवारे को लेकर विरोध में हैं। मगर इस विरोध से वहां राजनीतिक गतिविधियों को नहीं रोका जा सकता। चुनाव प्रक्रिया को लंबे समय तक रोके रखना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ होगा। घाटी के राजनीतिक दलों को भी लगता है कि सरकार का गठन होने के बाद ही राज्य का मुस्तकबिल सही ढंग से लिखा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक भी इसी मकसद से बुलाई है कि वहां विधानसभा चुनावों के लिए परिसीमन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर आम सहमति बनाई जा सके। हालांकि वहां के राजनीतिक दलों की मांग राज्य का दर्जा बहाल करने की भी है, मगर उसके लिए चूंकि संसद में प्रस्ताव पास कराना जरूरी होगा, जो कि जल्दी संभव नहीं जान पड़ता, इसलिए केंद्र सरकार पहले विधानसभा चुनाव संपन्न कराना चाहती है। फिर स्थितियां कुछ और सामान्य होंगी, तो राज्य का दर्जा बहाल करने की प्रक्रिया भी शुरू होगी।
जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद वहां विधानसभा क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन जरूरी है। साल भर पहले इसके लिए आयोग भी गठित किया गया था, मगर घाटी के राजनीतिक दलों के विरोध के कारण परिसीमन अयोग अपना काम अभी तक संपन्न नहीं कर सका है। इसलिए उसका कार्यकाल और आगे बढ़ा दिया गया है। प्रधानमंत्री के साथ बैठक में अगर राजनीतिक दलों का रुख सकारात्मक रहता है, तो परिसीमन की प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी। वहां के राजनीतिक दलों के शुरुआती रुख से यह संकेत साफ है कि वे भी विधानसभा चुनाव के पक्ष में हैं। इसलिए शायद नए सिरे से परिसीमन को लेकर उन्हें कोई खास एतराज नहीं होना चाहिए। जितनी जल्दी वहां विधानसभा के चुनाव संपन्न होंगे, उतनी ही जल्दी कश्मीर के हालात भी सुधरने की सूरत बनेगी। इससे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भी सकारात्मक संदेश जाएगा। उम्मीद बनी है कि सर्वदलीय बैठक के जरिए घाटी में फिर से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली का रास्ता खुलेगा।

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