सम्पादकीय

इतिहास लेखन में एआइ का उपयोग

Gulabi Jagat
31 Jan 2025 1:02 PM GMT
इतिहास लेखन में एआइ का उपयोग
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Vijay Garg: इतिहास अगर एक व्यंजन है तो उसकी कच्ची समग्री है सूचना। हालांकि इसमें रसोइये' की भी भूमिका तो है ही, किंतु बिना शक्कर के मीठापन आए कैसे। अतः सूचना जिसे तथ्य कह लीजिए या फिर स्रोत कह लीजिए, इसके बिना 'इतिहास की रचना संभव नहीं है। स्रोत जितना प्रामाणिक, विस्तृत और सटीक होगा, इतिहास का स्वरूप भी उतना ही सच्चा, समावेशी व पारदर्शी होगा। हालांकि यह मानवीय दुविधा तो तब भी बनी ही रहेगी कि तथ्यों का उपयोग कैसे किया जा रहा अतीत की मिट्टी में वर्तमान की आवश्यकता मिलाकर उसे विचार की आग में पकाने वाले मूर्तिकार तो तब भी इतिहास का सौंदर्य कलुषित कर ही देंगे, पर फिर यह विकल्प भी होगा कि उसके समानांतर कई अन्य मूर्तियां भी सजाई जा सकेंगी। ऐसे में पाठक के विवेक पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।
स्त्रोतों को प्राप्त करने, उसे जांचने और उसके सटीक उपयोग में 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेस' यानी एआइ भी एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। यही वजह है कि यूजीसी ने तो 'डिजिटल हिस्ट्री' और 'एआइ इन हिस्टोरिकल रिसर्च' जैसे पाठ्यक्रम का भी प्रस्ताव रखा है। प्रौद्योगिकी पहले भी इतिहास लेखन में भूमिका निभाता रहा है, एआइ से यह उम्मीद और बढ़ गई है।
गुत्थियों को सुलझाने में उपयोगी : आर्टिफिशियल इंटेलिजेस अपनी पुरानी पीढ़ी की तकनीकों से इस मामले में अलग है कि यह केवल सूचनाओं का संग्रह ही नहीं करती, बल्कि इसके उपयोग की दक्षता से भी यह युक्त है। इसमें कुछ-कुछ मानव बुद्धि जैसी क्षमता है और जिसकी व्यापकता कहीं ज्यादा है ऐसे में स्रोतों के अभाव में इतिहास का जी हिस्सा अंधेरे में है, उस पर थोड़ी रोशनी डाली जा सकती है। मसलन अगर एआइ ने प्राचीन भाषाओं और लिपियों के संदर्भ में विशिष्टता हासिल कर ली तो न जाने इतिहास की कितनी तहें खुल जाएंगी। भारतीय इतिहास के सबसे पुराने विवादों में से एक 'आर्य विवाद' भी इससे काफी कुछ सुलझ सकता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता से युक्त एक शक्तिशाली मशन तमाम भाषाओं का अन्वेषण कर उनकी समानता असमानता को अधिक सटीकता से वर्गीकृत कर सकती है। इससे यह गिरह भी खुल सकती है कि जिस 'बर्च वृक्ष' के उपयोग के सहारे जाइलस ने आर्यों के मूल स्थान की किसी आल्प्स क्षेत्र में खोजा, वह कितना सही है। इन गुत्थियों को सुलझाने में निश्चित ही एआई बहुत काम आ सकती है।
प्राचीन भाषाओं व लिपियों के अध्ययन से शायद एआई इतनी सक्षम हो जाए कि वह हड़प्पा सभ्यता की लिपि पढ़ने में सहायक साबित हो सके। ऐसे में इस सभ्यता के कई पहलू ठीक से सामने आ सकेंगे। इतिहास का पुनरावलोकन इसके अतिरिक्त एआइ चूंकि बहुत तेजी से असीमित सूचनाओं का विश्लेषण कर सकती है, इसलिए इससे शोधकर्ताओं को उन आंकड़ों को वर्गीकृत करने और उसका एक पैटर्न निश्चित करने में बड़ी सहायता मिल सकती है। तकनीकी रूप से कहें तो 'टेक्स्ट माइनिंग के माध्यम से अतीत तक बेहतर ढंग से पहुंचा जा सकता है। सूचनाओं के ढेर में काम की सूई ढूंढना, एआइ के लिए सेकेंड भर का काम होगा। उदाहरण के लिए 'राष्ट्रीय आंदोलन' के विशाल डाटाबेस में 'अंगिका भाषी की भागीदारी की पहचान तब एकदम आसान हो जाएगे, तब संथाल विद्रोह से लेकर भारत छौड़ी आंदोलन तक का निश्चित पैटर्न हमारे सामने होगा। ठीक इसी प्रकार स्रोतों को जांचने, वैसे ही अन्य स्रोतों को सुझाना, उन स्रोतों के उपयोग के खतरों से आगाह करना, उस पर पहले की जा चुकी प्रामाणिक टिप्पणियों को प्रस्तुत करना और सबसे बढ़कर लेखक के व्यक्तित्व तथा उसके विचार को पाठ के साथ प्रस्तुत कर देने में एआइ एक सफल माडल हो सकता है। निश्चित ही इससे शोधकर्ताओं का काफी कीमती समय बचेगा और वह अधिक ऊर्जा से अपने 'सत्य' की तरफ बढ़ सकेंगे। फिर एआइ ऐतिहासिक दस्तावेजों को सुरक्षित रखने में काफी सहायक हो सकता है। इसके अलावा, इन दस्तावेजों तक पहुंच भी आसान हो सकेगी तथा उसका उपयोग भी सरल हो जाएगा।
इतिहास में बढ़ेगी रुचि बढ़कर स्कूल-कालेज में इतिहास की पढ़ाई को रुचिकर बनाने में एआइ की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है, क्योंकि यह अतीत के इनपुट्स के आधार पर एक 'कृत्रिम अतीत' की रचना कर सकता है। भीमबेटका की गुफाओं में चित्र बनाते आरंभिक मानव के वीडियो से विद्यार्थी निश्चित ही उस समय को अधिक समीप से जान सकेंगे। इसी प्रकार हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन की श्रेष्ठता भी एआई उन्नत ग्राफिक्स के साथ प्रदर्शित कर सकता है, जिससे विद्यार्थियों को इसे समझने में आसानी ही सकती है। इतना ही नहीं, युद्ध इत्यादि प्रसंग को भी अधिक जीवंतता से प्रस्तुत किया जा सकेगा। एआइ इतिहास विषय को पढ़ाई को रुचिकर बना सकता है और विद्यार्थियों के मन से इस विषय के कठिन व शुष्क होने का ठप्पा हटा सकता है।
इतनी आशाओं के बाद भी हमें इस नई प्रौद्योगिकी के प्रति सचेत रहना होगा। ऐसा न हो कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग कृत्रिम अतीत की रचना में किया जाने लगे। इस संदर्भ में भी जागरूक रहना होगा कि कहीं किसी पूर्वाग्रह से प्रभावित होकर मशीन विशाल सूचनाओं को एक निष्कर्ष में न बदलने लग जाए और यह भी कि ध्यान रखना चाहिए कि इतिहास लेखन सूचनाओं का प्रसंस्करण भर नहीं है, बल्कि इसके लिए एक साफ-सुथरा मानव हृदय भी चाहिए। मानव जाति को अपने पूर्वजों को ईमानदार कहानी कहने का महान दायित्व केवल मशीन के भरोसे नहीं छोड़ देना चाहिए।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल ‌ शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कोर चंद मलोट पंजाब
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