सम्पादकीय

चीन का नया मोहरा है तुर्किये : भारत को अलग-थलग करने की कोशिश और परियोजनाओं के बहाने रणनीतिक साझेदारी के मायने

Neha Dani
17 Nov 2022 1:52 AM GMT
चीन का नया मोहरा है तुर्किये : भारत को अलग-थलग करने की कोशिश और परियोजनाओं के बहाने रणनीतिक साझेदारी के मायने
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उनकी भूख को रोकने में अमेरिका की तुलना में अधिक सफल साबित होने की संभावना नहीं है।
वैश्विक परिदृश्य पर क्या चीन अपने धनबल का प्रयोग कर भारत को राजनयिक दृष्टि से अलग-थलग करने की कोशिशों में लगा हुआ है? यह प्रश्न फिलहाल राजनयिक गलियारों में बड़ी तेजी से घूम रहा है। जानकार सूत्रों के अनुसार, चीन के साथ भारत का सीमा संघर्ष पश्चिम एशिया में दो एशियाई शक्तियों के बीच व्यापक टकराव में फैल रहा है। मसलन, पश्चिम एशिया की एक और क्षेत्रीय शक्ति और खास क्षेत्रीय खिलाड़ी तुर्किये के साथ भारत के संबंध कश्मीर पर पाकिस्तान का पक्ष लेने के कारण खराब हो गए हैं।
कश्मीर में भारत विरोधी प्रभाव अभियानों को बढ़ावा देने में एक और दुबई बनने के बाद तुर्किये जल्द ही भारतीय रणनीतिकारों के लिए एक और सिरदर्द पैदा कर सकता है। कश्मीर पर एक-दूसरे के साथ मतभेद होने के अलावा, तुर्किये और भारत अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच संघर्ष में विपरीत पक्षों का समर्थन कर रहे हैं। तुर्किये और पाकिस्तान विश्व मंच पर एक साथ आगे बढ़ रहे हैं, जैसा कि कश्मीर पर उनके इसी तरह के बयानों से देखा गया है। विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान तुर्किये के राष्ट्रपति अर्दोआन द्वारा कश्मीर पर विचार करने की बात पर पलटवार किया था।
दूसरी ओर हाल ही के महीनों में चीन के साथ तुर्किये के संबंधों में सुधार हुआ है। कोविड-19 महामारी के कारण आसमान छूते बजट घाटे के कारण तुर्किये निवेश और विदेशी मुद्रा भंडार के लिए चीन की ओर रुख कर रहा है। जून में तुर्किये ने 2019 में हस्ताक्षरित एक करोड़ डॉलर मुद्रा स्वैप व्यवस्था के तहत चीन के केंद्रीय बैंक द्वारा दी गई 40 करोड़ डॉलर की वित्त पोषण सुविधा का उपयोग किया। तुर्किये ट्रांस-यूरेशियन कनेक्टिविटी के लिए बिल्डिंग ऐंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की महत्वाकांक्षा के एक केंद्रीय घटक के रूप में भी नजर आ रहा है, जो परिवहन, रसद, ऊर्जा और दूरसंचार क्षेत्रों में बड़े चीनी निवेश को आकर्षित कर रहा है।
इसके अलावा चीन अपने शिनजियांग क्षेत्र के मूल निवासी तुर्क मुस्लिम उइगरों के लिए अंकारा के समर्थन को बेअसर करने में सफल रहा है। हाल के महीनों में तुर्किये में उइगर शरणार्थियों ने तुर्किये के अधिकारियों द्वारा बढ़ते उत्पीड़न का सामना करने की सूचना दी है। चीन के साथ भारत के बदलते भू-राजनीतिक समीकरण नई दिल्ली के लिए न केवल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में- जिसे एशिया प्रशांत भी कहा जाता है- बल्कि पश्चिम एशिया में भी अमेरिका के साथ अधिक निकटता से गठबंधन करने की आवश्यकता को रखांकित करते हैं। नई दिल्ली को चीन के खिलाफ अपने संघर्ष में इच्छुक क्षेत्रीय भागीदारों को खोजने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।
पश्चिम एशिया में भारत की हालिया परेशानियां कम से कम कुछ हद तक पूरे क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से उपजी हैं। अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट (एईआई) के चाइना ग्लोबल इन्वेस्टमेंट ट्रैकर के अनुसार 2005 और 2019 के बीच चीन ने पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में 5,500 करोड़ डॉलर से अधिक का निवेश किया। एडडेटा रिसर्च लैब के आंकड़ों के अनुसार, 2004 और 2014 के बीच चीन ने इस क्षेत्र में लगभग 4,280 करोड़ डॉलर की वित्तीय सहायता दी। क्षेत्र के कई देशों के लिए चीन उनका शीर्ष व्यापारिक भागीदार है और प्रौद्योगिकी का एक प्रमुख स्रोत है।
बात सिर्फ तुर्किये तक ही सीमित नहीं है। ईरान पर भी नजर रखना जरूरी है। यह संकेत इस बात से मिलता है कि चीन के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी का ढोल पीटते हुए ईरान ने चाबहार बंदरगाह को अफगानिस्तान से जोड़ने वाली एक रेलवे परियोजना में भारत की संभावित भूमिका को स्पष्ट रूप से रद्द कर दिया है। ईरान एक ऐसा क्षेत्रीय खिलाड़ी है, जहां भारत का प्रभाव चीन के पक्ष में घटता नजर आ रहा है। चीन के साथ ईरान की व्यापक रणनीतिक साझेदारी समझौते की खबर जनता के सामने जाहिर होने के कुछ दिनों बाद ही ईरान ने एक रेलवे लिंक के निर्माण की पहल की।
यह लिंक ईरान के चाबहार बंदरगाह को अफगानिस्तान के जेरंज प्रांत से जोड़ती है। इससे भारत को परियोजना में भाग लेने के लिए आमंत्रित किए जाने की बची-खुची उम्मीद भी जाती रही। यहां यह जानना जरूरी है कि भारत ने चाबहार बंदरगाह को रणनीतिक संपत्ति के रूप में पेश किया है, जहां उसने 10 साल की अवधि में 15 करोड़ डॉलर तक का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है, जो अन्य बातों के अलावा, हिंद-प्रशांत में चीन की 'मोतियों की माला' को टक्कर देने और ग्वादर में पाकिस्तान के चीन निर्मित बंदरगाह के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मदद करेगा।
गौरतलब है कि चाबहार बंदरगाह ग्वादर से महज 200 किलोमीटर की दूरी पर है। तेहरान के इस कदम के वास्तविक कारण को नई दिल्ली में राजनयिक विशेषज्ञों ने ईरान पर चीन के बढ़ते प्रभाव से निरूपित किया। उनका कहना है कि चीन ने चुपचाप काम करते हुए उन्हें एक बेहतर सौदे की पेशकश की। सितंबर, 2019 के बाद से तुर्किये ने चीन के प्रमुख सहयोगी पाकिस्तान और मलयेशिया के साथ मिलकर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के भारत के फैसले की निंदा की है।
भारत ने सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के मौके पर अंकारा के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के साथ कूटनीतिक रूप से बातचीत करके तुर्किये से नौसैनिक जहाजों की खरीद के लिए 232 करोड़ डॉलर के अनुबंध को रद्द कर दिया था और तुर्किये के प्रतिद्वंद्वी आर्मीनिया को सैन्य रडार के साथ आपूर्ति करने के लिए चार करोड़ डॉलर की बोली हासिल की थी। जैसा कि अमेरिका के अनुभव से पता चलता है, नई दिल्ली को पश्चिम एशिया में चीन के साथ अपने व्यापक टकराव में इच्छुक भागीदारों को खोजने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
उनके शीर्ष सुरक्षा साझेदार होने के बावजूद वाशिंगटन ने इस्राइल और खाड़ी राजशाही को चीन से दूर रहने से रोकने के लिए संघर्ष किया है, जिसे वे निवेश, प्रौद्योगिकी और हथियारों के क्षेत्रों में एक आकर्षक भागीदार के रूप में देखते हैं। यद्यपि भारत के इस्राइल और खाड़ी राजतंत्रों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं- और 2014 में मोदी के पदभार संभालने के बाद से संबंधों में काफी सुधार हुआ है -यह चीन के साथ अधिक सहयोग के लिए उनकी भूख को रोकने में अमेरिका की तुलना में अधिक सफल साबित होने की संभावना नहीं है।

सोर्स: अमर उजाला

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