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पिछले दिनों गणेशोत्सव ने पुनः हिमाचल के सांस्कृतिक संगम में डुबकी लगाई और इस तरह कोविड काल के घने कोहरे के बीच समाज के सरोकार प्रतिध्वनि पैदा कर गए। सवाल यह नहीं कि इस रौनक के बीच महामारी के खतरे कितने बढ़े, लेकिन यह जरूर रहा कि हमारा प्रदेश गणेशोत्सव को किस नजरिए से देख रहा है। इसके साथ एक नया सांस्कृतिक उजास ही पल्लवित नहीं हो रहा, बल्कि सामुदायिक-उल्लास का सहचर्य भी दिखाई देने लगा है। उत्सव की रोशनी में गणेश वंदना, मूर्तियों का कलात्मक प्रसार तथा बाजार उभर रहा है। गणेश मंडल धीरे-धीरे ग्रामीण स्तर पर पहुंचकर एक नया सांस्कृतिक भाईचारा जोड़ रहे हैं। हिमाचल का उत्सवी माहौल अब केवल रौनक नहीं, सांस्कृतिक रोमांच और मनोरंजन की विधा भी है। पिछले कुछ वर्षों में छठ पूजन, डांडिया महोत्सव, क्रिसमस और गणेशोत्सव जैसे अपरिचित त्योहार अब हिमाचल की विविधता से जुड़ कर वार्षिक कैलेंडर बना रहे हैं।
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