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दुनिया के तमाम देशों
अवधेश माहेश्वरी। एलन मस्क के एक ट्वीट, बिटक्वाइन में ऊर्जा की खपत ज्यादा है, जो पर्यावरण के लिए ठीक नहीं, इसने दुनिया के शीर्ष वर्चुअल करेंसी की कीमत को झटके में 60 फीसद नीचे ला दिया। परंतु यह वर्चुअल करेंसी अब इतनी कमजोर नहीं है, जो उठ न सके। ट्विटर के संस्थापक जैक डोर्सी ने तुरंत इसके पक्ष में ट्वीट कर दिया, 'मैं नहीं सोचता कि बिटक्वाइन के लिए काम करने से महत्वपूर्ण मेरे लिए कुछ हो सकता है।'
दुनिया में अपने-अपने क्षेत्र के दो महारथियों का बिटक्वाइन को लेकर अपना-अपना रुख है। परंतु कोविड के दौर में अमेरिका सहित दुनिया के देशों में जिस तरह नए नोट सरकारों ने छापे हैं, उससे मुद्रा का अवमूल्यन अवश्यंभावी है। ऐसे में बिटक्वाइन जैसी डिजिटल करेंसी की मान्यता मजबूत हो चुकी है। यही वजह है कि 60 हजार डॉलर से 26 हजार डॉलर पर आने के बाद भी बिटक्वाइन के निवेशकों का विश्वास तनिक भी नहीं डिगा है।
पिछले साल से क्रिप्टोकरेंसी में जबरदस्त तेजी रही है। बिटक्वाइन, बाइनेंस और ईथर जैसे काइन तो निवेशकों के पोर्टफोलियो को हरा रंग देते ही रहे, लेकिन मेमे क्वाइन डोज ने एक हजार फीसद का मुनाफा दे दिया। इस तेजी ने 'फास्ट डिलीवरी' पसंद दुनियाभर की युवा पीढ़ी विशेषकर भारतीय युवाओं को क्रिप्टो करेंसी में निवेश के लिए खूब आकर्षति किया। एक क्रिप्टो एक्सचेंज के आंकड़े यह बताते भी हैं। इस एक्सचेंज ने पहले दो-तीन साल में 10 लाख ग्राहक बनाए थे, लेकिन अब इतने ही और जोड़ लिए। परंतु उनके लिए शुरुआत अच्छी नहीं रही। एलन मस्क के ट्वीट ने क्रिप्टो बाजार को मई में जिस तरह तोड़ा, उसमें ऐसे नए निवेशकों के हाथ सबसे ज्यादा जले हैं। परंतु इसने सीख भी दी है कि आखिर क्रिप्टो वर्चुअल मुद्रा की ट्रेडिंग में उन्हें कैसे नुकसान पहुंचा सकती है।
दरअसल, एलन मस्क की टेस्ला ने कुछ माह पहले एक अरब डॉलर बिटक्वाइन में निवेश किए थे, लेकिन बाद में उन्होंने इसकी जगह ऊर्जा अनुकूल क्रिप्टोक्वाइन को वरीयता देने का ट्वीट किया, तो पूरा बाजार धराशायी हो गया। उनके दूसरे ट्वीट ने इस मुद्रा को 26 हजार डॉलर की कीमत पर ला दिया। चीन ने भी इसी दौरान बिटक्वाइन में पहले सरकारी वित्तीय संस्थानों के इसमें निवेश पर रोक लगाई, फिर माइनिंग करने वालों को बिस्तर बांधने की कहकर और डराने की कोशिश की है। परंतु बिटक्वाइन और दूसरी वर्चुअल मुद्रा इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि अब पाबंदी इनके लिए रास्ता नहीं है।
आगे-पीछे दुनियाभर की सरकारों को इन्हें स्वीकार करना होगा। इसका पहला संकेत चार से छह जून को बिटक्वाइन को लेकर मियामी में पहली बार आयोजित 'बिटक्वाइन कांफ्रेंस' से मिला। वहां एक विशेषज्ञ ने कहा कि अगले पांच साल में कम से कम एक देश में इसे मुद्रा के रूप में स्वीकार कर लिया जाएगा। इसके तुरंत बाद ही अल सल्वाडोर के राष्ट्रपति नायिब बुकेले ने बिटक्वाइन को लीगल टेंडर का प्रस्ताव संसद में पेश कर दिया, जिसे 62 के मुकाबले 84 के बहुमत से स्वीकार कर लिया गया। इससे पहली बार इस मुद्रा को किसी देश में कानूनी रूप से लेन-देन का रास्ता साफ हो गया। इसकी ट्रेडिंग में मुनाफे पर निवेशकों को कैपिटल गेन टैक्स देने से छूट होगी। डॉलर में होने वाले भुगतान बिटक्वाइन में हो सकेंगे।
हालांकि इससे विश्व बैंक और विश्व मुद्राकोष की चिंता भी बढ़ेगी, क्योंकि अभी इन विश्वस्तरीय आíथक मदद देने वाले संगठनों के लिए बिटक्वाइन में पेमेंट स्वीकार करने की कोई योजना नहीं है। ऐसे में वित्तीय और कानूनी मुद्दे उठेंगे, जिनका किस तरह सामना किया जाएगा, यह सवाल उठेगा। वहीं दूसरी ओर पराग्वे बिटक्वाइन को वैध मुद्रा घोषित करने के लिए आगे बढ़ सकता है, यह संकेत मिल ही रहा है। डॉलर की कम होती विश्वसनीयता के चलते कुछ अन्य देश भी ऐसा ही रुख अपनाएंगे। हालांकि इसमें कुछ वक्त लग जाएगा।
वर्चुअल करेंसी और ब्लाक चेन तकनीक पर भारत सरकार भी अब अपना रुख बदल रही है। इसे प्रतिबंधित करने की जगह नियामक फ्रेमवर्क की ओर आगे बढ़ सकती है, जिसमें कुछ क्लास वर्चुअल करेंसी में भारतीय निवेशकों को पैसा लगाने की अनुमति दी जा सकती है, ताकि कीमतों में उतार-चढ़ाव पर ज्यादा नुकसान नहीं उठाना पड़े। दुनियाभर की सरकारों को ऐसे ही कदम आगे-पीछे उठाने भी पड़ेंगे। अन्यथा एलन मस्क जैसे संबंधित ट्वीट बाजार को धराशायी करने की कोशिश करते रहेंगे, जिससे निवेशकों और भविष्य की करेंसी को बड़ा नुकसान होगा।
बिटक्वाइन की बढ़ती स्वीकार्यता के बीच माइनिंग में ऊर्जा की खपत के मसले को भी देखना जरूरी है। इसमें कम ऊर्जा खपत वाले विकल्पों को तलाशने की जरूरत है, क्योंकि इसकी माइनिंग पर ऊर्जा की खपत बहुत ज्यादा होती है। एक सवाल कागजी करेंसी के प्रचलन में भी ऊर्जा की खपत को लेकर उठता है, क्योंकि इसके लिए भी दुनियाभर में बैंकिंग नेटवर्क बहुत बिजली खर्च करता है। यदि दुनियाभर के बैंकों के नेटवर्क संचालन पर 260 टेरावॉट बिजली खर्च होती है, जबकि बिटक्वाइन पर 114 टेरावॉट खपत है। फिर भी इसे घटाने की जरूरत है, क्योंकि पर्यावरण की अनदेखी किसी भी तरह नहीं की जा सकती।
Gulabi
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