सम्पादकीय

दुनिया को तालिबान को हल्के में नहीं लेना चाहिए और 9/11 को भूलना गलती होगी

Gulabi Jagat
1 April 2022 1:20 PM GMT
दुनिया को तालिबान को हल्के में नहीं लेना चाहिए और 9/11 को भूलना गलती होगी
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विश्व बैंक ने अफगानिस्तान में 600 मिलियन डॉलर की चार परियोजनाओं पर फिलहाल विराम लगा दिया है
तालिबान (Taliban) सरकार द्वारा हाई स्कूलों में लड़कियों के जाने पर पाबंदी लगाए जाने के बाद विश्व बैंक ने अफगानिस्तान (Afghanistan) में 600 मिलियन डॉलर की चार परियोजनाओं पर फिलहाल विराम लगा दिया है. इन परियोजनाओं को अफगानिस्तान रीकंस्ट्रक्शन ट्रस्ट फंड (ARTF) के तहत वित्तीय सहायता दी जानी थी और इन परियोजनाओं का उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि में सुधार करना था. महिला अधिकारों की बात करने वाले संगठनों ने इस तालिबानी फरमान का विरोध किया और कहा कि अगर तालिबान एक हफ्ते के अंदर स्कूलों को फिर से नहीं खोलेगा तो वो पूरे अफगानिस्तान में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगी.
अफगानिस्तान के तालिबान शासकों ने छठी से आगे की कक्षाओं की छात्राओं के लिए स्कूल न खोले जाने का निर्णय लिया है. अब कामकाजी महिलाओं को लंबी दूरी की यात्रा के लिए अपने साथ एक पुरुष को रखना जरूरी है. तालिबान ने अपने नए नियमों के तहत अफगानिस्तान में एयरलाइनों से कहा है कि वे महिलाओं को तब तक विमान में सवार न होने दें जब तक कि उनके साथ कोई पुरुष संरक्षक न हो. एक अफगान महिला ने हमसे बताया, "तालिबान खुलेआम हमारे अधिकारों का हनन कर रहा है. समय बीतने के साथ स्थिति और खराब होती जा रही है."
दो बच्चों की अकेली मां यलदा रॉयन के जीवन में क्या बदला
तालिबान के सत्ता में आने से पहले दो बच्चों की अकेली मां यलदा रॉयन के लिए जीवन सामान्य था. उसका बस एक ही सपना था अपनी लड़कियों को शिक्षित करके उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने का. लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत आने बाद उसके सपने चकनाचूर हो गए. यल्दा और उनकी बेटियों ने खुद को और भी बुरे हालातो के लिए मानसिक रूप से तैयार कर लिया था: "हम मरने के लिए तैयार थे." उसने कहा,
"मैं अपनी बेटियों से कहती हूं कि मैं उनकी रक्षा करूंगी. लेकिन क्या मैं इन जंगली, बेवकूफ, अशिक्षित लोगों से अपनी रक्षा कर पाऊंगी जो यह भी नहीं समझते कि मानवता क्या होती है? मेरी बेटियों को लगता है कि वे तब तक सुरक्षित रहेंगी जब तक उनकी मां उनके पास है. लेकिन मुझे नहीं पता कि मैं खुद को सुरक्षित रख पाऊंगी या नहीं."
यलदा किसी तरह अफगानिस्तान से भागने में सफल रहीं और उसने अमेरिका में शरण ली. उसने खुद से वादा किया कि वह उन लोगों की आवाज बनेगी जो अपने लिए आवाज नहीं उठा सकते. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में महिलाओं के प्रति तालिबान की क्रूरता के खिलाफ आवाज उठाई. सात महीने बाद TV9 ने तालिबान के कठोर शासन के बारे में याल्दा रॉयन से फिर से बात की.
आप अफगानिस्तान की स्थिति को कैसे देखती हैं?
हर दिन जब मैं जागती हूं तो अपने देश में कुछ विनाशकारी, निराशाजनक घटना घटते देखती हूं. यह केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं है. तालिबान गैर-न्यायिक हत्याओं में शामिल रहा है और सुरक्षा बल के पूर्व कर्मियों, पत्रकारों और महिला अधिकारों की बात करने वाले कार्यकर्ताओं को पीट रहा है. तालिबान के लिए इन लोगों को आगे बढ़ने से रोकने के अलावा और कोई दूसरी चीज महत्वपूर्ण नहीं है. तालिबान द्वारा महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन होते देखना बहुत दुखद है.
तालिबान ने फिर से महिलाओं की शिक्षा बंद कर दी है?
मैं अपने देश के ऐसे हालात देखकर कई दिनों से रो रही हूं. मैं सोच भी नहीं सकती कि तालिबान द्वारा स्कूलों को बंद करने के फैसले से उन लड़कियों पर क्या बीत रही होगी. मैं बस कल्पना करती हूं कि क्या होता अगर मैंने वहीं रहने का फैसला किया होता. मैं सोचती हूं कि मेरी बेटी वहां है और स्कूल नहीं जा पा रही है. अफगानिस्तान में लड़कियों के साथ जो हो रहा है उसे देखकर दुख होता है. इन 20 सालों में पैदा हुई पीढ़ी का क्या होगा? वो सौ साल पीछे जा रही हैं. सच तो यह है कि दुनिया अफगानिस्तान को नहीं भूल सकती. इसे भूला देना अन्याय होगा. दुनिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि तालिबान 9/11 आतंकी हमले के पीछे था और वे फिर से कुछ ऐसा ही करने में सक्षम हैं. तालिबान का सपना केवल अफगानिस्तान पर कब्जा करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि उन सभी देशों को हराने का है जो इस्लाम को नहीं मानते.
क्या आपको लगता है कि अफगानिस्तान पिछड़ रहा है?
नेहा भान.
पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान में बहुत विकास हुआ है, इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि मैं आपसे फोन पर बात करने और अपना संदेश देने में सक्षम हूं. 20 साल पहले हम ऐसा नहीं कर सकते थे. यदि अंतरराष्ट्रीय समुदायों का सहयोग नहीं मिला होता, जो वास्तव में देश की प्रगति चाहते थे, तो हम कहीं खो गए होते. हालांकि बस एक दिन में उनकी सारी कोशिशें मिट्टी में मिल गईं.
क्या आपको लगता है कि कभी कोई बदलाव आएगा?
तालिबान किसी अन्य पितृसत्तात्मक समाज की तरह ही है जो महिला सशक्तिकरण से बहुत डरता है. सिर्फ एक संगठन जिसने पिछले सात महीनों में तालिबान का बहादुरी से विरोध किया है वो महिलाओं का है. सभी पुरुष और हाशिए पर पहुंच चुके संगठन चुप हो गए हैं. उन्होंने बहुत कुछ झेला है लेकिन उन्होंने कभी आवाज नहीं उठाई. तालिबान महिलाओं से इसलिए डरते हैं क्योंकि उनके पास एक बुलंद आवाज है. उन्हें डर है कि दूसरे समूह भी इन महिलाओं से सीख सकते हैं. उन्हें खतरा महसूस होता है. मुझे उम्मीद है कि बदलाव आएगा. कुछ उत्तरी प्रांतों में इसकी शुरूआत भी हो चुकी है जहां तालिबान के खिलाफ लड़ाई शुरू हो गई है. मुझे उम्मीद है कि यह जारी रहेगी और एक दिन हम देखेंगे कि अफगानिस्तान उन आक्रमणकारियों से आजाद है जिन्हें पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में धकेला था.
आपकी बेटियां क्या कहती हैं?
मेरी बेटियों को दुख होता है. वे उन लड़कियों के लिए बुरा महसूस करती हैं जो स्कूल नहीं जा पा रहीं. एक दिन वे उन बच्चियों के बारे में सोच कर रो रही थीं जिन्हें चारदीवारी में कैद कर दिया गया है. उन्हें इस बात की खुशी है कि वे अब अफगानिस्तान में नहीं हैं और उन्हें ऐसे हालातों से गुजरना नहीं पड़ रहा. लेकिन हमें अपनी मातृभूमि अफगानिस्तान की बहुत याद आती है. अफगानिस्तान में महिलाओं की आबादी 48 प्रतिशत से ज्यादा है, जिसमें से 8 प्रतिशत हिस्सा 25 से 29 साल की उम्र की महिलाओं का है. अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा उनके लिए एक अंधकारमय भविष्य लेकर आया है.
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