सम्पादकीय

डीडीसी चुनावों का वास्तविक संदेश, जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया और बदलाव की है नई बयार

Gulabi
11 Dec 2020 8:07 AM GMT
डीडीसी चुनावों का वास्तविक संदेश, जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया और बदलाव की है नई बयार
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जम्मू- कश्मीर आज इस कर्तव्य को पूरा करने की चुनौती स्वीकार करने की दिशा में अग्रसर है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सभी नागरिकों की विश्वास बहाली और भागीदारी सुनिश्चित करना किसी भी राज्य का प्रमुख कर्तव्य है और यही उसकी सबसे बड़ी चुनौती भी है। जम्मू- कश्मीर आज इस कर्तव्य को पूरा करने की चुनौती स्वीकार करने की दिशा में अग्रसर है। इसीलिए वहां त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के महत्वपूर्ण और सबसे बड़े सोपान जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव पहली बार कराए जा रहे हैं। ये चुनाव 22 दिसंबर को संपन्न होंगे। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने अक्टूबर में पंचायती राज से संबंधित 73वें संविधान संशोधन को जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह लागू कर दिया था। राज्य में यह कानून पिछले 28 वर्षों से लंबित था। पंचायती राज व्यवस्था न सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूत नींव है, बल्कि स्वशासन और सुशासन की पहचान भी है।


जम्मू-कश्मीर में 20 जिले हैं। प्रत्येक जिले को 14 निर्वाचन-क्षेत्रों में बांटा गया है। इतिहास में पहली बार पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी, गोरखा और वाल्मीकि समुदाय के लोग भी मतदान कर रहे हैं। अभी तक ये राज्य के चुनावों में मतदान के अपने लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित रहे हैं। ये चुनाव लगभग शांतिपूर्ण और निष्पक्ष ढंग से संपन्न हो रहे हैं, क्योंकि शासन ने सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था की है। प्रत्येक प्रत्याशी को शासन की ओर से सुरक्षा मुहैया कराई गई है, ताकि वह बेखौफ होकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी कर सके। कई पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद और पूर्व विधायक भी डीडीसी का चुनाव लड़ रहे हैं। इन चुनावों में जम्मू-कश्मीर की जनता भी बढ़-चढ़कर भागीदारी कर रही है।

कश्मीर संभाग में औसत मतदान 40 प्रतिशत के आसपास

जम्मू संभाग में जहां औसत मतदान 60 प्रतिशत के आसपास है, वहीं कश्मीर संभाग में यह 40 प्रतिशत के आसपास है। भाजपा, कांग्रेस, पैंथर्स पार्टी जैसे दल तो इन चुनावों में जोर-आजमाइश कर ही रहे हैं, इनके अलावा नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी जैसे कई चिर प्रतिद्वंद्वी दल भी 'पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन' के बैनर तले गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं। वास्तव में यह मतलबपरस्तों का गठजोड़ मात्र है।


गठबंधन बनाकर मजबूती से लड़ रहे चुनाव

पहले गुपकार गठजोड़ चुनाव में भागीदारी को लेकर असमंजस में था और चुनाव बहिष्कार की योजना बना रहा था, किंतु बाद में उसे लगा कि कहीं बहिष्कार करके वह भी अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रेंस की तरह अलग-थलग पड़कर अप्रासंगिक न हो जाएं और 'राजनीतिक स्पेस' को नए खिलाड़ी न घेर लें। इसलिए वे गठबंधन बनाकर पूरी मजबूती से यह चुनाव लड़ रहे हैं और इन चुनावों के परिणामों के माध्यम से कोई बड़ा सियासी संदेश देने की फिराक में हैं। हालांकि इन चुनावों का वास्तविक और सबसे बड़ा संदेश राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली और उसमें व्यापक जन भागीदारी ही होगा।
मूड को भांपकर ही गुपकार गठबंधन को चुनाव लड़ने के लिए होना पड़ा मजबूर

तमाम धमकियों को धता बताते हुए न सिर्फ भारी संख्या में प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं, बल्कि मतदाता भी पिछले चुनावों से कहीं ज्यादा मतदान कर रहे हैं। जनता के इस मूड को भांपकर ही गुपकार गठबंधन को चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, किंतु जिन मंसूबों के तहत यह अवसरवादी, अपवित्र और बेमेल गठबंधन चुनाव लड़ रहा है, वे इस चुनाव से पूरे नहीं होंगे, क्योंकि इनके परिणाम से ज्यादा महत्वपूर्ण इस प्रक्रिया में जनता की भागीदारी और इसका समयबद्ध, शांतिपूर्ण और निष्पक्ष ढंग से संपन्न होना है।
रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को जम्मू की सरकारी जमीन पर बसाया गया
रोशनी एक्ट के अंधेरों से जम्मू-कश्मीर का आम नागरिक परिचित है। नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के तमाम राजनेताओं, नौकरशाहों और उद्योगपतियों ने इस एक्ट की आड़ में बड़े पैमाने पर सरकारी भूमि को हड़प लिया है। अब उस जमीन का हिसाब-किताब किया जा रहा है और उसे इनके कब्जे से मुक्त कराकर आम जनता की आवश्यकताओं और हितों के अनुरूप उपयोग किया जाएगा। रोशनी एक्ट भूमि घोटाला न सिर्फ सरकारी भूमि की लूट का मामला था, बल्कि जम्मू संभाग की जनसांख्यिकी को बदलने की सुनियोजित साजिश भी थी। इसलिए जम्मू संभाग में धर्म विशेष के लोगों के अलावा रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी बड़ी तादाद में सरकारी जमीन पर बसाया गया।
ऐसी तमाम असंवैधानिक और सांप्रदायिक नीतियों के पर्दाफाश और अंधेरगर्दी तथा अराजकता पर अंकुश लगने से घबराए हुए नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसे चिर-प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल गुपकार घोषणापत्र के बहाने एक मंच पर आ गए हैं। अनुच्छेद 370 की बहाली के फारूक अब्दुल्ला द्वारा चीन से सहायता लेने की बात करना और महबूबा मुफ्ती द्वारा अनुच्छेद 370 की बहाली तक तिरंगा न उठाने की बात कहना इनकी राष्ट्रभक्ति और असल इरादों का खुलासा करते हैं।
डीडीसी चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली की दिशा में उठाया गया निर्णायक कदम
इसमें दोराय नहीं कि राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू हो जाने और शांति बहाल हो जाने के बाद पूंजी निवेश और विकास की संभावनाएं जगी हैं। इसी दिशा में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 'चलो गांव की ओर' और 'माइ सिटी, माइ प्राइड' जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत करके शासन-प्रशासन को जनता से जोड़ने और उसे संवेदनशील बनाने की पहल की है। डीडीसी चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली की दिशा में उठाया गया निर्णायक कदम है।

उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर की राज्य विधानसभा में क्षेत्रीय असंतुलन रहा है। इसलिए चुनाव आयोग विधानसभा चुनाव कराने से पहले वहां विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करा रहा है। यह परिसीमन कार्य अगले वर्ष तक पूरा होने की संभावना है। परिसीमन प्रक्रिया के पूर्ण हो जाने के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था और विकास-प्रक्रिया में सभी क्षेत्रों और समुदायों का समुचित प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी। शासन-प्रशासन की कश्मीर केंद्रित नीति भी संतुलित हो सकेगी और अन्य क्षेत्रों के साथ होने वाले भेदभाव और उपेक्षा की भी समाप्ति हो जाएगी। ये सारी कोशिशें जम्मू-कश्मीर को न सिर्फ आपस में जोड़ने, बल्कि उसे शेष भारत और विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रतिफलन हैं।


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