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सम्पादकीय
सबसे बड़ा संयम है होश में जीना और हर पल को जागरूकता के साथ बिताना
Gulabi Jagat
23 March 2022 8:41 AM GMT
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हम जीवन में जब भी कोई अच्छा काम करेंगे, अपराधी उसमें अपना हिस्सा निकाल ही लेंगे
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
हम जीवन में जब भी कोई अच्छा काम करेंगे, अपराधी उसमें अपना हिस्सा निकाल ही लेंगे। उदाहरण के तौर पर देखें तो पैसे के सुरक्षित लेन-देन के लिए एटीएम बनाए गए, लेकिन अपराधियों की दृष्टि में वह भी खुली तिजोरी है। इन अपराधियों को अपने दुर्गुणों से जोड़ें। हमारे दुर्गुण भी अपराधियों की तरह नए-नए तरीके ढूंढते हैं। आप भक्ति करना आरंभ करें, उधर दुर्गुण अपने काम में लग जाएंगे कि इसकी भक्ति खंडित कैसे की जाए।
जब हम भक्ति करते हैं तो परमशक्ति कोई कृपा भी करती है क्योंकि उसका सिस्टम फिक्स है, लेकिन उस कृपा को बचाने के लिए, उसका सदुपयोग करने के लिए योग्यता व संयम हमें अपनाना पड़ेगा। कृष्ण ने पांडवों पर जमकर कृपा की थी, लेकिन फिर भी जुआ खेल गए और वन में जाना पड़ा। शकुनि जैसे दुर्गुण के कुटिल आमंत्रण पर पांडव जैसे संयमी फिसल गए थे। ईश्वर की कृपा में कोई कमी नहीं थी, पर खुद के संयम में चूक गए।
वहां तो फिर भी शकुनि बाहर था और पांडव भी उसके सामने थे, लेकिन यहां (हमारे भीतर) तो पांडव भी भीतर हैं और शकुनि भी वहीं बैठा है। लुटेरे बाहर हों या भीतर, चौबीस घंटे खतरा बनाए रखते हैं। शकुनि के रूप में बैठे भीतर के दुर्गुण हमें लगातार ईश्वर की कृपा से दूर करने का प्रयास करेंगे। इसलिए सावधान और संयमित रहिएगा। सबसे बड़ा संयम है होश में जीना, हर पल जागरूकता के साथ बिताना।
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Gulabi Jagat
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