सम्पादकीय

लव जिहाद को नकारने के दुष्परिणाम ने युवतियों का जीवन संकट में डाल दिया

Gulabi
17 Dec 2020 9:08 AM GMT
लव जिहाद को नकारने के दुष्परिणाम ने युवतियों का जीवन संकट में डाल दिया
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छल-कपट, बलपूर्वक या सिर्फ विवाह के उद्देश्य से मतांतरण रोकना सरकार की जिम्मेदारी है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जैसी कि उम्मीद थी कि एक वर्ग ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा लाए गए लव जिहाद विरोधी अध्यादेश का यह कह कर विरोध शुरू कर दिया है कि इसे अंतरर्धािमक विवाहों के खिलाफ सांप्रदायिक पूर्वाग्रह से लाया गया है। जबकि राज्य में इसके पीड़ितों ने शिकायतें भी दर्ज करानी शुरू कर दी है। ऐसा ही एक मामला बरेली में दर्ज हुआ। जिन लोगों को लव जिहाद शब्द पर आपत्ति है उनके लिए यह स्मरण कराना आवश्यक है कि लंबे समय तक समस्या बने रहने के बावजूद वैश्विक विमर्श में 'इस्लामिक जिहाद' शब्द की स्वीकारोक्ति बड़ी हिचकिचाहट के साथ 26/11 हमले के बाद ही हो पाई थी। आज भी आइएसआइएस जैसे तमाम इस्लामी संगठनों द्वारा जारी हर जिहादी घटना पर 'आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता' जैसी घिसीपिटी प्रतिक्रियाएं देकर आतंक की उस मजहबी सोच को नकारने का प्रयास होता है जिसके दावे स्वयं आतंकवादी करते हैं। दरअसल वैश्विक मानस पर प्रभुत्व रखने वाले बुद्धिजीवियों द्वारा इस्लामी कट्टरपंथ के हर पहलू को नकारने का दृढ़ प्रयास रहता है। भारत में लव जिहाद शब्दावली पर तीखा विरोध इसी प्रयास का एक हिस्सा है। ऐसे ही विरोध का सामना लेखक-पत्रकार अरुण शौरी को भी तब करना पड़ा था जब उन्होंने बतौर संपादक रामजन्मभूमि आंदोलन के समय मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा किए गए मंदिर विध्वंस और मूर्ति भंजन के लंबे इतिहास को अपने समाचार पत्र में जगह दी। तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित होने के बावजूद कुछ भारतीय बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को यह लेख इतने नागवार गुजरे कि उनको अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।


छल-कपट, बलपूर्वक या सिर्फ विवाह के उद्देश्य से मतांतरण रोकना सरकार की जिम्मेदारी है

आज विरोध कर रहे छद्म धर्मनिरपेक्ष समूह की दलील है कि प्यार के नाम पर धोखाधड़ी या अन्य अपराधों के लिए पहले से ही कानूनी प्रावधान हैं। यह वर्ग इसकी अनदेखी करता है कि मतांतरण के बाद महिलाओं के अधिकार पूरी तरह प्रभावित होते हैं और ऐसे में छल-कपट, बलपूर्वक या सिर्फ विवाह के उद्देश्य से मतांतरण रोकना सरकार की जिम्मेदारी है, परंतु इस कानून के विरोध का असल कारण इन अपराधों की मजहबी प्रेरणा को नकारना है। जबकि सत्य यह है कि इन अपराधों के पीछे मजहबी जुनून स्पष्ट दिखता है। पहचान बदलकर गैर-मुस्लिम युवतियों से दोस्ती करना, मौलवियों द्वारा धर्म परिवर्तन के प्रमाण पत्र, गुपचुप तरीके से तैयार निकाहनामे, अपराधियों को मजहबी संरक्षण इस छलकपट का सांप्रदायिक चेहरा उजागर करते हैं।


जिहाद मजहबी विस्तार के लिए कट्टरवादी संघर्ष की एक समग्र धारणा है

धोखा उजागर होने पर संबंध विच्छेद या विवाह के बाद इस्लाम कुबूल न करने पर हिंदू युवतियों की हत्या की खबर आए दिन आती रहती हैं। तारा सहदेव से लेकर निकिता तोमर और प्रिया सोनी तक ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं। इसके बावजूद लव जिहाद से इन्कार बौद्धिक बेईमानी और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। लव जिहाद में जिहाद शब्द के उपयोग से बहुत लोगों की असहजता इसलिए भी है कि जिहाद के मायने अमूमन मजहबी विस्तार हेतु हिंसा से ही लगाए जाते हैं, परंतु इस प्रकार का जिहाद सिर्फ हथियारबंद जिहाद है। इसके अलावा जिहाद बिल कलम यानी लेखनी द्वारा जिहाद, जिहाद बिल लिसान और जिहाद बिल कल्ब जैसी अन्य जिहादी धारणाएं भी मौजूद हैं। जिहाद मजहबी विस्तार के लिए कट्टरवादी संघर्ष की एक समग्र धारणा है और इसमें नए प्रकार की जिहादी कल्पना जुड़ती रहती है। हाल ही में सीरिया से जिहाद अल निकाह की खबरें आई थीं।

लव जिहाद की शिकायत हिंदू ही नहीं, बल्कि केरल के ईसाई समुदाय ने भी की है

लव जिहाद को सिरे से नकारने वाले अक्सर दुहाई देते हैं कि न्यायपालिका ने ऐसी किसी मजहबी वृत्ति से इन्कार किया है। हालांकि यह बात पूरी तरह सही नहीं है और 'शहंशाह और सिराजुद्दीन बनाम केरल राज्य' मामले में केरल उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने लव जिहाद का संज्ञान लेकर पुलिस महानिदेशक को विवेचना के आदेश दिए थे। तथापि सामाजिक समस्याओं की पहचान और परिभाषा न्याय क्षेत्र से बाहर विचारकों, सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं, लेखकों और विधायिका के मनन का भी अधिकार क्षेत्र है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि लव जिहाद की शिकायत हिंदू ही नहीं, बल्कि केरल के ईसाई समुदाय ने भी की है। केरल की मार्क्सवादी सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने भी लव जिहाद को बड़ी समस्या माना था।

लव जिहाद के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराना घोर अन्याय

कट्टरता के अन्य पक्षों की तरह लव जिहाद के लिए भी पूरे मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराना घोर अन्याय होगा, परंतु इस समस्या के मूल में मजहबी दुराग्रह की अनदेखी भी विषय की सच्चाई से मुंह मोड़ना है। मतांतरण विरोध पर हत्या, पहचान बदलकर युवतियों का आखेट, अवयस्क बालिकाओं के अपहरण कर जबरन मतांतरण ऐसे दुखद तथ्य हैं, जिनका अंतहीन सिलसिला किसी और धर्म में नहीं दिखता। इन अपराधों में सिर्फ एक समुदाय विशेष का ही नाम सामने आता है। इन तथाकथित अंतरधार्मिक संबंधों की दिशा भी लगभग एकतरफा होती है।

लव जिहाद के मजहबी आयामों को स्वीकार न करने का नतीजा, युवतियां जघन्य हत्याओं की शिकार

यह लव जिहाद के मजहबी आयामों को स्वीकार न करने का ही नतीजा है कि एक के बाद एक युवतियां न सिर्फ अनिश्चितता और जोखिम भरे संबंधों में फंसती जा रही हैं, बल्कि जघन्य हत्याओं का शिकार भी हो रही हैं। इंग्लैंड के रौथरहम शहर में 1990 और 2010 के बीच 6000 श्वेत बच्चियां पाकिस्तानी मूल के व्यक्तियों द्वारा यौन शोषण का शिकार हुई थीं। ऑपरेशन लिंडन नाम से इस मामले में हुई जांच में पाया गया कि अपराधियों की गैर नस्लीय पृष्ठभूमि ने पुलिस की जांच को प्रभावित किया था। पुलिस रंगभेद के प्रति अतिसंवेदनशीलता के चलते जांच में कोताही बरतती रही और गैंग के शिकार बढ़ते रहे। इसके बावजूद इस गैंग के सदस्य शब्बीर अहमद ने यूरोपीय मानवाधिकार कोर्ट के समक्ष जज, जूरी और पुलिस पर बार-बार श्वेत पूर्वाग्रहों के तहत मुस्लिमों को षड्यंत्रपूर्वक फंसाने के आरोप लगाए।

योगी सरकार द्वारा लव जिहाद रोकने के लिए लाया गया अध्यादेश सही दिशा में सही कदम

भारत में लव जिहाद को नकारने के प्रयास शब्बीर जैसी दुस्साहसिकता का ही प्रतीक है। हालांकि विभिन्न अंतरधार्मिक विषयों के समग्र समाधान के लिए समान आचार संहिता जल्द से जल्द आनी चाहिए, पर इस बीच अंतरिम राहत के लिए योगी सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश सही दिशा में लिया गया एक स्वागतयोग्य कदम है। इसका क्षुद्र राजनीति से ऊपर उठकर सभी को समर्थन करना चाहिए।


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