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- लव जिहाद को नकारने के...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जैसी कि उम्मीद थी कि एक वर्ग ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा लाए गए लव जिहाद विरोधी अध्यादेश का यह कह कर विरोध शुरू कर दिया है कि इसे अंतरर्धािमक विवाहों के खिलाफ सांप्रदायिक पूर्वाग्रह से लाया गया है। जबकि राज्य में इसके पीड़ितों ने शिकायतें भी दर्ज करानी शुरू कर दी है। ऐसा ही एक मामला बरेली में दर्ज हुआ। जिन लोगों को लव जिहाद शब्द पर आपत्ति है उनके लिए यह स्मरण कराना आवश्यक है कि लंबे समय तक समस्या बने रहने के बावजूद वैश्विक विमर्श में 'इस्लामिक जिहाद' शब्द की स्वीकारोक्ति बड़ी हिचकिचाहट के साथ 26/11 हमले के बाद ही हो पाई थी। आज भी आइएसआइएस जैसे तमाम इस्लामी संगठनों द्वारा जारी हर जिहादी घटना पर 'आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता' जैसी घिसीपिटी प्रतिक्रियाएं देकर आतंक की उस मजहबी सोच को नकारने का प्रयास होता है जिसके दावे स्वयं आतंकवादी करते हैं। दरअसल वैश्विक मानस पर प्रभुत्व रखने वाले बुद्धिजीवियों द्वारा इस्लामी कट्टरपंथ के हर पहलू को नकारने का दृढ़ प्रयास रहता है। भारत में लव जिहाद शब्दावली पर तीखा विरोध इसी प्रयास का एक हिस्सा है। ऐसे ही विरोध का सामना लेखक-पत्रकार अरुण शौरी को भी तब करना पड़ा था जब उन्होंने बतौर संपादक रामजन्मभूमि आंदोलन के समय मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा किए गए मंदिर विध्वंस और मूर्ति भंजन के लंबे इतिहास को अपने समाचार पत्र में जगह दी। तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित होने के बावजूद कुछ भारतीय बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को यह लेख इतने नागवार गुजरे कि उनको अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।