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एक तरफ जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने की कोशिश हो रही है, दूसरी ओर सीमा पार से घुसपैठ की कोशिशों और आतंकी हमलों में तेजी आई है।
एक तरफ जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने की कोशिश हो रही है, दूसरी ओर सीमा पार से घुसपैठ की कोशिशों और आतंकी हमलों में तेजी आई है। श्रीनगर के जेवन इलाके में भारतीय रिजर्व पुलिस बल की बस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाया जाना इसका ताजा उदाहरण है। इस घटना से एक दिन पहले सीमा पार से घुसपैठ करने वालों के दल में शामिल एक महिला आतंकी को सुरक्षाबलों ने मार गिराया। इसके दो दिन पहले बांदीपोरा में आतंकियों ने सुरक्षाबलों पर ग्रेनेड से हमला किया, जिसमें दो जवान शहीद हो गए।
ये घटनाएं न सिर्फ केंद्र के लिए चुनौती हैं, बल्कि घाटी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली को विलंबित भी करेंगी। जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाए जाने के बाद वहां सुरक्षा-व्यवस्था बढ़ा दी गई थी। लंबे समय तक वहां कर्फ्यू की स्थिति रही। संचार सेवाएं बाधित रहीं, लोग लगभग अपने घरों में बंद थे। उस दौरान आतंकी गतिविधियां भी रुक गई थीं। मगर जैसे ही सुरक्षा इंतजाम कुछ नरम किए गए, संचार सेवाएं खुल गर्इं, घाटी में जन-जीवन सामान्य होना शुरू हुआ, वैसे ही फिर से आतंकी हमले शुरू हो गए। माना जा रहा था और सरकार भी दावा कर रही थी कि अब घाटी में आतंकवादी संगठनों की कमर टूट चुकी है और जो थोड़े-बहुत बचे हैं, वे हताशा में हमले कर रहे हैं।
मगर सरकार का वह दावा अब प्रश्नांकित होने लगा है। घाटी में आतंकी घटनाएं थोड़े-थोड़े अंतराल पर होने लगी हैं। इससे स्वाभाविक ही सवाल उठने लगे हैं कि क्या कश्मीरी युवाओं ने फिर से हाथों में हथियार उठा लिए हैं? क्या फिर से स्थानीय लोगों ने चरमपंथियों को पनाह देना शुरू कर दिया है? क्या आतंकवाद को मिल रहे वित्तपोषण पर कसी गई नकेल बेअसर साबित हुई है? पिछले कई सालों से घाटी में सुरक्षाबलों का सघन तलाशी अभियान चल रहा है। इसमें बहुत सारे आतंकी मारे भी गए हैं।
इसके अलावा उन लोगों की भी बड़े पैमाने पर धर-पकड़ हुई, जो आतंकवादियों को वित्तीय मदद पहुंचाया करते थे। हुर्रियत नेताओं और उनके बैंक खातों पर पहले ही शिकंजा कसा जा चुका है। इन सबके मद्देनजर दावा किया जा रहा था कि घाटी में आतंकियों की पैठ समाप्त हो गई है। युवाओं को गुमराह करने वाले संगठनों पर नकेल कसी जा चुकी है। मगर जिस तरह वहां फिर से आतंकवाद ने सिर उठाना शुरू किया है, उससे चिंता बढ़नी स्वाभाविक है।
पुलिस की बस पर हमला करने की योजना किसी नौसिखिया आतंकवादी या कमजोर संगठन का काम नहीं माना जा सकता। इस घटना ने पुलवामा का जख्म हरा कर दिया है। सीमा पार से आ रहे दल में से मारी गई महिला आतंकी की घटना से यह स्पष्ट है कि घुसपैठ की घटनाओं पर विराम लगाने में हमें पूरी तरह सफलता नहीं मिल पाई है। फिर इससे यह भी संकेत मिलता है कि पाकिस्तान की जमीन पर तैयार किए जा रहे चरमपंथियों में अब हर तरह के लोगों का उपयोग किया जा रहा है।
पाकिस्तान की तरफ से सेना के शिविरों पर ड्रोन मंडराने की घटनाएं भी बहुत पुरानी नहीं हुई हैं। यानी पाकिस्तान अब घाटी में हर तरह से अस्थिरता पैदा करने की कोशिश में जुट गया है। विशेष दर्जा हटाए जाने को लेकर पैदा हुई उसकी झुंझलाहट अब फिर से उभरनी शुरू हो गई है। इस पर नकेल कसने के लिए नए सिरे से रणनीति बनाने की जरूरत है।
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