सम्पादकीय

आतंक पर चोट

Subhi
10 Aug 2021 1:00 AM GMT
आतंक पर चोट
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जम्मू-कश्मीर में कई संगठन और संस्थाएं सीमा पार सक्रिय आतंकी संगठनों की शाखा के तौर पर काम करती रही हैं।

जम्मू-कश्मीर में कई संगठन और संस्थाएं सीमा पार सक्रिय आतंकी संगठनों की शाखा के तौर पर काम करती रही हैं। जमात-ए-इस्लामी भी उन्हीं में से एक है। यह भारत में हिज्बुल मुजाहिदीन के राजनीतिक मुखौटे की तरह काम करता रहा है। हालांकि दो साल पहले ही इस पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था, मगर उसकी छतरी के नीचे चल रही कई संस्थाओं पर अब भी घाटी में सक्रिय दहशतगर्दों का वित्तपोषण करने का आरोप है।

इसी आधार पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने उसके करीब छप्पन ठिकानों पर छापे मारे। इससे आतंकी संगठनों की कमर पर चोट पड़ेगी। आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए उनके वित्तपोषण पर अंकुश लगाना सबसे जरूरी कदम माना जाता है। हालांकि इस मामले में काफी सालों से कड़ाई की जा रही है। न सिर्फ बहुत सारे संदिग्ध संगठनों के खाते बंद कर दिए गए और बाहर से आने वाले धन पर लगातार नजर रखी जाने लगी, बल्कि हुर्रियत नेताओं और उनके समर्थक स्थानीय लोगों के खातों पर भी रोक लगा दी गई। इसका काफी असर हुआ। वित्तीय मदद रुक जाने से घाटी में सक्रिय कई संगठन खत्म हो गए, अलगाववादियों के युवाओं को बरगलाने पर लगाम लगी।
तमाम कोशिशों के बावजूद अगर कुछ दहशतगर्द अब भी घाटी में अपनी साजिशों को अंजाम दे पा रहे हैं, तो जाहिर है कि उन्हें किसी न किसी रास्ते वित्तीय मदद मिल रही है। इन्हीं रास्तों को बंद करने की मंशा से राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जमात से संबंधित ठिकानों पर छापे मारे। छिपी बात नहीं है कि प्रतिबंध लगने के बाद आतंकी संगठन दूसरे नामों से अपनी गतिविधियां चलाने लगते हैं। मसलन, जमात ने घाटी में दूसरे नामों से अनेक शैक्षणिक संस्थाएं भी खोल रखी हैं, जिनमें न सिर्फ आतंक का सबक सिखाया जाता है, बल्कि उनके जरिए दहशतगर्दों का वित्तपोषण करने की मदद भी की जाती है।
फलाह-ए-आम ट्रस्ट पर ऐसी ही गतिविधियों में शामिल होने के आरोप रहे हैं। उस पर भी एनआइए ने दबिश डाली। इससे न सिर्फ आतंकियों के लिए पैसे आने का रास्ता बंद होगा, बल्कि स्थानीय लोगों पर भी असर पड़ेगा, जिनके बच्चे उसकी संस्थाओं में पढ़ते हैं। हालांकि घाटी के बहुत सारे लोग अब समझ चुके हैं कि अलगाववादी ताकतें उन्हें बरगलाती आई हैं और भारतीय सीमा से अलग होकर उनका मुस्तकबिल अंधेरे में ही रहेगा। खून-खराबे को भी वे तरक्की के रास्ते का रोड़ा मानने लगे हैं। इसलिए उन्होंने आतंकियों को पनाह देना बंद कर दिया है।
इसके अलावा भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाली तिजारत के सहारे उधर से बड़े पैमाने पर हथियार और गोला-बारूद आते रहे हैं। अब उन रास्तों पर रोक लग गई है। इससे भी दहशतगर्दों को मिलने वाली मदद रुक गई है। सुरक्षाबलों की सघन तलाशी औ


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