सम्पादकीय

स्कूल-कॉलेज लौटे बच्चों की मानसिक सेहत और खुशी का अनुपात समझने के लिए उनसे बात करें क्योंकि वे युद्ध जैसे हालातों से वापस कैंपस आए हैं

Rani Sahu
26 Sep 2021 5:34 PM GMT
स्कूल-कॉलेज लौटे बच्चों की मानसिक सेहत और खुशी का अनुपात समझने के लिए उनसे बात करें क्योंकि वे युद्ध जैसे हालातों से वापस कैंपस आए हैं
x
पिछले हफ्ते मैंने यूके का चिलड्रन्स कमिश्नर सर्वे पढ़ा, जो 9 से 17 वर्षीय बच्चों की मानसिक स्थिति से संबंधित था

एन. रघुरामन पिछले हफ्ते मैंने यूके का चिलड्रन्स कमिश्नर सर्वे पढ़ा, जो 9 से 17 वर्षीय बच्चों की मानसिक स्थिति से संबंधित था। इसके मुताबिक 71% बच्चों की मन:स्थिति आमतौर पर खुश रहती है। इसमें कई अन्य अवलोकन भी थे, जैसे कैसे बच्चे अपने न्यूरोलॉजिकल विकास के उस बिंदु पर हैं, जहां उनके लिए साथी-दोस्त ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, कैसे कई बच्चों को घर में पढ़ने में मुश्किल होती है और कैसे वे दुनिया को साबित कर रहे हैं कि वे 'भटकी हुई पीढ़ी' नहीं हैं। इसमें यह भी कहा गया, 'कई युवाओं के लिए लॉकडाउन में सोशल मीडिया जान बचाने वाला साबित हुआ।'

इन बातों की पृष्ठभूमि के साथ मैं उन कॉलेज छात्रों से मिला जो इस हफ्ते अपने संस्थान लौटे हैं। शुरुआत से ही मैं समझ गया कि लड़के, लड़कियों से ज्यादा खुश हैं। मैंने सबसे साथ में और अलग-अलग बात कर उनके मन में झांका और इसका कारण जानने की कोशिश की। हालांकि लड़के भी लॉकडाउन से नाराज थे क्योंकि वे बाहर जाकर खेल नहीं पा रहे थे, लेकिन उन्होंने स्कूल बंद होने को अवसर की तरह देखा।
उन्होंने जल्द ऑनलाइन रुचियां अपना लीं और अंतहीन गेम्स खेलने लगे। लड़कियों की दोस्ती भी ऑनलाइन आ गई, लेकिन कईयों के लिए इसके नतीजे बहुत अच्छे नहीं थे। उनके लिए यह महमारी की सबसे मुश्किल चीज थी। कुछ को लगा कि ऑनलाइन दोस्ती सतही और प्रतिस्पर्धी थी।
एक लड़की ने कहा, 'अगर आप रातभर जागकर सोशल मीडिया पर गॉसिप और मीम नहीं देखते तो बहुत से जरूरी चुटकुले छूट जाते थे और हमें 'कूल' नहीं माना जाता था।' एक और लड़की ने कहा, 'हमारी क्लास की कुछ लड़कियां यही बताती रहती थीं कि उन्होंने कितना रिवीजन किया, स्कूल का कितना काम किया, इससे मुझे बुरा लगता था। इसलिए मुझे लड़कों से जलन होती थी, जो इन बातों का असर नहीं होने देते और हताश नहीं होते।' उन्होंने यह भी बताया कि कैसे स्कूल के लड़के तो रात में बाहर जाकर हाउसिंग कॉलोनी के किसी कोने में मिलते-जुलते रहते थे, जबकि माता-पिता बेटियों पर नजर बनाए रखते थे। इसलिए वे अपनी सहेलियों से संबंध ज्यादा मजबूत नहीं कर पाईं।
चूंकि लड़कियां आस-पास के लोगों की भावनाएं भांप लेती हैं, इसलिए लड़कों की तुलना में तब ज्यादा चिंतित हो जाती हैं, जब घर में माता-पिता को नौकरी जाने के डर, वेतन कटौती और बढ़ते खर्च समेत अन्य घरेलू समस्याओं से जुड़ी बातें करते सुनती हैं। लॉकडाउन में माता-पिता का तनाव उनके अंदर घर कर गया है। माता-पिता का कोविड के कारण असुरक्षा का भाव और बिगड़ते स्वास्थ्य ने लड़कियों को प्रभावित किया क्योंकि उन्हें ही अपने दोस्तों के साथ रहने की टीनएजर वाली इच्छा त्यागनी पड़ी।
दूसरी तरफ लड़के परिवार के हीरो बन गए क्योंकि वे कहते रहे, 'क्यों न हम मौज करें और लॉकडाउन को छुट्‌टी मानें।' जब माता-पिता ऐसे लड़कों को वास्तविकता के धरातल पर वापस लाते हैं और उन्हें 'असली दुनिया में रहने' कहते हैं, तो ये लड़के बंद कमरे में ऑनलाइन गेम्स की शरण में चले जाते हैं, जिससे माता-पिता नाराज भी होते हैं। संक्षेप में, कैंपस में लौटे बच्चों की बड़ी मिश्रित सोच है। लेकिन मुझे विश्वास है कि अगर कोई उनसे बात करे तो उनमें वापसी करने की क्षमता है।


Next Story