सम्पादकीय

तालिबान संकट: विश्व पर अमेरिकी प्रभुत्व के खत्म होने का संकेत है?

Gulabi
22 Aug 2021 11:30 AM GMT
तालिबान संकट: विश्व पर अमेरिकी प्रभुत्व के खत्म होने का संकेत है?
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तालिबान संकट

संयम श्रीवास्तव।

अफगानिस्तान (Afghanistan) से जिस तरह अमेरिकी फौजें हार कर अपने देश वापस लौटीं और अफगानिस्तान जैसे देश को गृह युद्ध में धकेलने का काम किया, उसने दुनिया भर में यह संदेश दिया कि अमेरिका (America) एक ऐसा देश है जिस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. और तो और तालिबानियों से हार के बाद अमेरिका का प्रभुत्व पूरी दुनिया से धीरे-धीरे कम होने लगा है. दरअसल अफगानिस्तान की सुरक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका की थी लेकिन जब अफगानिस्तान को अमेरिका की सबसे ज्यादा जरूरत थी तो अमेरिका ने उसे पीठ दिखा दिया. इस वजह से दुनिया भर के तमाम छोटे देश जो अमेरिका को सुपर पावर मानते हैं और उन्हें लगता है कि अमेरिका के होने से वह सुरक्षित हैं अब अमेरिका को संदेह की नजरों से देखने लगे हैं.


ताइवान के रक्षा मंत्री ने तो साफ कह दिया था कि उनका देश अमेरिका पर भरोसा करने की बजाए अपने रक्षा तंत्र पर भरोसा करेगा. यह एक बड़ा बयान है इससे साफ जाहिर होता है कि अमेरिका की छत्रछाया में जो देश कल तक खुद को महफूज समझते थे अब उनका उस पर से विश्वास उठने लगा है. बीते 75 वर्षों से अमेरिका दुनिया भर में सुपर पावर के नाम से विख्यात है. कहते हैं कि अमेरिका जिसके साथ खड़ा रहता है उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता. लेकिन अफगानिस्तान की ऐसी दुर्दशा देखकर अब लोगों को इस बात पर यकीन दिलाना अमेरिका के लिए मुश्किल हो गया है. ऐसा नहीं है कि अमेरिका ने सिर्फ अफगानिस्तान को गृह युद्ध में धकेला है, इससे पहले उसने 2003 में इराक में भी यही किया था. ईरान और वियतनाम जैसे देशों के साथ भी अमेरिका ने यही किया. और अब धीरे-धीरे अरब देशों से भी अमेरिका का प्रभुत्व खत्म होता जा रहा है.


अमेरिका के सामने चीन
पहले दुनिया में दो बड़ी ताकते हुआ करती थीं. एक अमेरिका और दूसरा सोवियत संघ. लेकिन सोवियत संघ के टूटने के बाद केवल अमेरिका ही एकमात्र बड़ी शक्ति दुनिया में बची थी. इसीलिए उसका प्रभुत्व पूरी दुनिया में धीरे-धीरे बढ़ने लगा. हालांकि दूसरे महाशक्ति के खाली स्थान पर चीन की नजर थी और उसने अपने आप को धीरे धीरे आर्थिक रूप से इतना मजबूत किया कि वह अब दूसरी महाशक्ति के रूप में उभरने लगा है और अमेरिका को चुनौती देने लगा है.

हालांकि चीन और अमेरिका में अभी बहुत फर्क है, अमेरिका जहां अपनी धरती के साथ-साथ दूसरे देशों की धरती पर भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है. वहीं चीन फिलहाल अपने विकास और विस्तार की नीतियों पर ही काम कर रहा है. कुछ जानकार आज भी मानते हैं कि चीन की ताकत को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है और 21वीं सदी फिलहाल अमेरिका की ही सदी साबित होने वाली है.

क्या दुनिया एक बड़े विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही है
जब भी दुनिया में किसी महाशक्ति को लगता है कि वह वैश्विक रूप से कमजोर हो रहा है तो विश्व एक ऐसे जंग से गुजरता है जिसे पूरी दुनिया याद रखती है. इस वक्त दक्षिण पूर्व एशिया के छोटे देशों में चीन का प्रभुत्व बढ़ रहा है, यहां तक कि चीन अब मध्य एशिया के देशों में भी दखल देने लगा है. वहीं रूस अपने आसपास के देशों पर अपना प्रभाव जमाने लगा है. भूमध्य सागर में भी रूस का दबदबा देखने को मिलता है. इतिहास गवाह है कि जब भी कोई सुपर पावर कमजोर पड़ने लगता है तो एक ऐसा युद्ध होता है जो इंसानियत के लिए भयावह साबित होता है.

इतिहास में जब स्पार्टा को एथेंस की शक्ति से खतरा महसूस हुआ, तब युद्ध हुआ. इसके बाद पहला विश्वयुद्ध तब हुआ जब ब्रिटेन और रूस जैसे देशों को जर्मनी की शक्ति से खतरा महसूस होने लगा. वैसी ही स्थितियां अमेरिका, रूस और चीन के बीच शुरू होने वाली हैं. अमेरिका को लग रहा है कि चीन शक्तिशाली हो रहा है इसलिए आने वाले समय में अगर दुनिया किसी विश्व युद्ध की ओर जाती है तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

आर्थिक नीतियों का केंद्र बिंदु बन गया है चीन
चीन सिर्फ अपनी सैन्य संख्या में ही नहीं दुनिया में सबसे आगे है. बल्कि आर्थिक मामले में भी चीन इस वक्त दुनिया का केंद्र बिंदु बन गया है. अमेरिका और चीन के व्यापार में फिलहाल काफी तनाव है. जिस वजह से अमेरिका की आर्थिक स्थिति कमजोर पड़ रही है. अमेरिका के बड़े कारोबारियों ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि वह चीन से फिर से व्यापार वार्ता शुरू करें. वहीं ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देश भी चीन से तनावपूर्ण स्थिति की वजह से व्यापारिक और आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे हैं. चीन ने अपने देश को आर्थिक और व्यापारिक रूप से इतना ज्यादा मजबूत कर लिया है कि दुनिया के तमाम देश चाह कर भी चीन से व्यापारिक रिश्ता तोड़ने पर सौ बार सोचेंगे.

'मिशन तालिबान' अमेरिका की सबसे बड़ी खुफिया नाकामी
अमेरिका दुनिया भर में अपनी खूफिया ताकत के लिए मशहूर है. कहा जाता है कि अमेरिका की खुफिया शक्ति इतनी मजूत है कि वह दुनिया में कहां क्या चल रहा है सब पर उसकी नजर रहती है. 9/11 के हमले के बाद जिस तरह से पाकिस्तान में घुस कर अमरिकी फौजों ने ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था, उसे अमेरिका के खुफिया तंत्र की ही कामयाबी मानी गई थी. हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान की स्थिति को लेकर अमेरिका का खुफिया तंत्र बुरी तरह से फेल रहा. इसे 1968 के बाद का अमेरिकी खुफिया तंत्र की सबसे बड़ी नाकामी माना जा रहा है.

दरअसल 1968 में उत्तर वियतनाम ने दक्षिण वियतनाम पर हमला कर दिया था, जिसमें अमेरिकी सेना को बहुत नुकसान हुआ था. इस युद्ध में तीस लाख लोग मारे गए, जिनमें करीब 58,000 अमेरिकी सैनिक थे. यह सब कुछ इसलिए हुआ था क्योंकि उस वक्त भी अमेरिका की खुफिया एजेंसियां यह पता नहीं लगा पाई थीं कि वियतनाम में ऐसा कुछ होने वाला है.


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