सम्पादकीय

राष्ट्रपति चुनाव के किस्से (पार्ट-6) : वफादार समझकर इंदिरा गांधी ने जैल सिंह को बनवाया था राष्ट्रपति, लेकिन राजीव गांधी से हो गया 36 का आंकड़ा

Gulabi Jagat
27 May 2022 8:44 AM GMT
राष्ट्रपति चुनाव के किस्से (पार्ट-6) : वफादार समझकर इंदिरा गांधी ने जैल सिंह को बनवाया था राष्ट्रपति, लेकिन राजीव गांधी से हो गया 36 का आंकड़ा
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वफादार समझकर इंदिरा गांधी ने जैल सिंह को बनवाया था राष्ट्रपति
सुरेंद्र किशोर |
सन 1982 के राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) में ज्ञानी जैल सिंह (Giani Zail Singh) ने रिटायर्ड जस्टिस एच.आर. खन्ना को भारी मतों से हरा दिया था. जैल सिंह को 7 लाख 54 हजार 113 मत मिले, जबकि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस खन्ना को 2 लाख 82 हजार 685 मत मिले. एक तरफ जहां कांग्रेस के उम्मीदवार पार्टी की सर्वोच्च नेता इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के निष्ठावान व्यक्ति थे, तो दूसरी ओर एच.आर. खन्ना थे मौलिक अधिकार की रक्षा के प्रतीक. याद रहे कि इमरजेंसी में एक सरकार विरोधी फैसले के कारण एच.आर. खन्ना को सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस नहीं बनने दिया गया था. इस राष्ट्रपति चुनाव के दौरान यह सवाल लोगों के दिल-ओ-दिमाग में घूमता रहा कि आखिर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जैल सिंह को राष्ट्रपति क्यों बनवाया. अपने कार्यकाल के आखिरी दौर में राष्ट्रपति का प्रधानमंत्री राजीव गांधी से तीखा विवाद भी रहा. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति के उम्मीदवार के लिए नामों का एक पैनल तैयार करवाया था. यह काम कांग्रेस महा सचिव राजीव गांधी ने किया था.
सन 1980 में संजय गांधी के निधन के बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस में राजीव गांधी को उनके विकल्प के रूप में खड़ा कर दिया था. तब तक राजीव गांधी मिस्टर क्लीन माने जाते थे. राजीव गांधी के पैनल में आर. वेंकटरमण, पी.वी. नरसिंह राव, बी.डी. जत्ती, गनी खान चैधरी, गुरु दयाल सिंह ढिल्लों और ज्ञानी जैल सिंह के नाम थे. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उस पैनल पर विचार करने के बाद ज्ञानी जैल सिंह का नाम राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए तय किया. उन्हें इंदिरा जी का वफादार माना जाता था. राष्ट्रपति चुनाव से पहले इंदिरा जी ने एक बार कहा भी था कि "प्रतिपक्ष ऐसा राष्ट्रपति चाहेगा जो मुझे बर्खास्त कर दे." तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने कहा था कि "मुझे पता है कि मैडम मुझे राष्ट्रपति क्यों बनाना चाहती हैं. दरअसल वह मुझे महल का कैदी बना देंगी."
आपातकाल के समय खन्ना साहब सुप्रीम कोर्ट के जज थे
तब पंजाब के मुख्यमंत्री पद पर कांग्रेस के ही दरबारा सिंह थे. ज्ञानी जैल सिंह से उनका छत्तीस का रिश्ता था. जैल सिंह की ओर इशारा करते हुए मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने एक बार यहां तक कह दिया था कि "दिल्ली में बैठा एक बौना व्यक्ति मेरी सरकार के साथ भीतरघात कर रहा है." वैसे भी उन दिनों पंजाब की स्थिति खराब होने लगी थी. यह आरोप लग रहा था कि कांग्रेस का ही एक गुट पंजाब के अतिवादी तत्वों को मदद पहुंचा रहा है. संभवतः प्रधानमंत्री ने यह भी सोचा था कि एक सिख को राष्ट्रपति बनाने से पंजाब की स्थिति पर काबू पाने में सुविधा होगी.
अब जरा एच.आर. खन्ना के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें जानिए. आपातकाल के समय खन्ना साहब सुप्रीम कोर्ट के जज थे. उस समय एक मामला आया था, जिसमें एक महत्वपूर्ण प्रश्न का जवाब कोर्ट को देना था. वह प्रश्न यह था कि क्या आपातकाल के दौरान कोई नागरिक संविधान की धारा-21 के तहत अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है? याद रहे कि उन दिनों अधिकारों में 'जीने का अधिकार' भी शामिल था. पांच सदस्यीय पीठ इस मामले पर विचार कर रहा था.
उस पीठ में एच.आर. खन्ना के साथ-साथ मुख्य न्यायाधीश ए.एन.रे, एम एच बेग, वाई.वी. चंद्रचूड़ और पी.एन.भगवती थे. इस सवाल पर एच.आर. खन्ना के चार साथी जजों ने कहा कि "अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकता." पर, एच.आर. खन्ना ने इससे असहमति जताते हुए कहा था कि "भारत का संविधान और कानून, जीवन और व्यक्तिगत आजादी को कार्यपालिका की असीम शक्तियों की दया के भरोसे नहीं छोड़ता."
जस्टिस एच.आर. खन्ना इंदिरा सरकार की नजरों पर चढ़ गए थे
याद रहे कि उस धारा में यह लिखा गया है कि "किसी व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत आजादी से वंचित नहीं किया जा सकता, जब तक कि यह कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं के अनुरूप न हो." जस्टिस खन्ना ने इस केस के संबंध में अपनी आत्म कथा में लिखा कि "मैंने पाया कि मेरे साथी जज, जो मानवाधिकार और नागरिक स्वतंत्रता की बड़ी-बड़ी बातें करते थे, ऐसे चुपचाप बैठे थे जैसे उनका मुंह सी दिया गया हो." यह और बात है कि सन 2017 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाले नौ सदस्यीय पीठ ने 1976 के उस जजमेंट की निंदा करते हुए उसको उलट दिया.
हालांकि, उसे देखने के लिए जस्टिस खन्ना तब तक जीवित नहीं थे. उनका 2008 में निधन हो चुका था. इस असहमत फैसले के बाद ही जस्टिस एच.आर. खन्ना इंदिरा सरकार की नजरों पर चढ़ गए थे. जस्टिस ए.एन.रे के बाद खन्ना ही सबसे वरीय जज थे. पर जस्टिस रे के सेवानिवृत होने के बाद इंदिरा सरकार ने 29 जनवरी 1977 को एम.एच. बेग को मुख्य न्यायाधीश बना दिया. इसके विरोध में एच.आर. खन्ना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उसी एच.आर. खन्ना को नौ राजनीतिक दलों ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया था.
खैर उधर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने. उसके बाद ही कई कारणों से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच संबंध बिगड़ने लगे. राजीव गांधी के करीबी लोग जैल सिंह को संजय गांधी का करीबी मानते थे. 1984 में सिख संहार के समय राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने अपने कुछ खास लोगों को हिंसक भीड़ से बचाने की कोशिश की थी. पर कहते हैं कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के यहां उनके फोन तक नहीं उठाए गए. बाद के वर्षों में एक से एक विवाद उठे. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच वैसे आपसी विवाद न तो उससे पहले कभी उठे थे और न बाद में.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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