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सम्पादकीय
रूस-यूक्रेन संकट तथा अन्य भू-राजनीतिक हलचलों की पृष्ठभूमि में हुई भारत और अमेरिका के विदेश एवं रक्षा मंत्रियों की बैठक से दोनों देशों के संबंधों को मजबूती मिलेगी. मंत्रियों के बीच संवाद से पहले राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच वर्चुअल माध्यम से हुई बातचीत से भी दोनों देशों के संबंधों का महत्व रेखांकित होता है.
दोनों देशों के विदेश एवं रक्षा मंत्रियों के बीच साझा संवाद का यह चौथा अवसर था. रूस से तेल की खरीद को लेकर अमेरिका की ओर से फिर आपत्ति दर्ज करायी गयी है, लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दो टूक जवाब दिया कि रूस से जितना तेल भारत एक महीने में खरीदता है, उतना तो यूरोप एक दोपहर में आयात करता है. उल्लेखनीय है कि रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम लेने पर भी अमेरिका को आपत्ति रही है.
इस संवाद में भी यह मामला उठा है. लेकिन इन मुद्दों के बावजूद दोनों देशों की ओर से यूक्रेन में नागरिकों की मौत और गंभीर होते मानवीय संकट पर चिंता जतायी गयी है. इसके अलावा क्वाड समूह के माध्यम हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने, कोरोना टीकों की आपूर्ति तथा जलवायु परिवर्तन पर सहकार तेज करने पर भी सहमति बनी है. दोनों देश आपसी व्यापार बढ़ाने के लिए द्विपक्षीय वाणिज्यिक संवाद तथा सीईओ फोरम की बैठक फिर से शुरू करने पर भी सहमत हुए हैं.
इन बातों से स्पष्ट है कि कुछ वैश्विक मसलों पर मतभेद के बावजूद भारत और अमेरिका के बीच नजदीकी बढ़ती जा रही है. जहां तक रूस की बात है, तो भारत ने हमेशा कहा है कि रूस से उसकी दोस्ती दशकों पुरानी है और इसमें कोई बदलाव नहीं आ सकता है. अमेरिकी विदेश सचिव एंथनी ब्लिंकेन ने भी माना है कि जब भारत के साथ अमेरिका सहयोग स्थापित नहीं कर पा रहा था, तब दशकों में भारत व रूस के बीच में नजदीकी कायम हुई है.
इसका मतलब यह है कि मौजूदा वक्त में भारत के रुख की वजहों को अमेरिका समझ रहा है. मंत्रियों की साझा बैठक में पाकिस्तान का आह्वान किया गया है कि वह अपनी धरती का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए न होने दे. पाकिस्तान में बदलते राजनीतिक परिदृश्य की पृष्ठभूमि में यह बयान बहुत अहम है और उम्मीद है कि नयी सरकार इसका संज्ञान लेगी.
इस बैठक से एक बार फिर यह इंगित हुआ है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए स्वतंत्र विदेश एवं रक्षा नीति का अनुसरण करता है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उचित ही कहा है कि निश्चित रूप से अमेरिका हमारा स्वाभाविक सहयोगी देश है, लेकिन भारत सभी देशों के साथ अच्छे संबंध रखना चाहता है. विदेश मंत्री जयशंकर का यह कहना भी भारत की स्थिति को स्पष्ट करता है कि हम वैश्विक उथल-पुथल और अनिश्चितता को कम करने के लिए प्रयासरत हैं. भारत हमेशा से वैश्विक शांति व स्थिरता का पक्षधर रहा है.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय

Gulabi Jagat
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