सम्पादकीय

अंतरिक्ष में कामयाबी के कदम

Gulabi Jagat
29 Jan 2025 2:27 PM GMT
अंतरिक्ष में कामयाबी के कदम
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Vijay Garg: अभी हाल में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दो उपग्रहों को अंतरिक्ष में परस्पर जोड़कर एक उपग्रह बनाने का कारनामा कर दिखाया है। इसरो ने पहले पृथ्वी की कक्षा में दो उपग्रहों को सफलतापूर्वक स्थापित किया, फिर दोनों को आपस में जोड़ दिया। इसे वैज्ञानिक भाषा में 'स्पेस डाकिंग एक्सपेरिमेंट' (स्पेडेक्स) कहा जाता है और ऐसी क्षमता हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है। भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन इस कारनामे को अंजाम दे चुके हैं। भारतीय वैज्ञानिकों की यह उपलब्धि इस मायने में महत्त्वपूर्ण है कि उन्होंने सीमित संसाधनों और अपनी क्षमता से खुद का 'डाकिंग मैकेनिज्म' विकसित किया। इस बेहद जटिल और संवेदनशील तकनीक को अब तक कामयाब देशों ने भारत को नहीं दिया था। इसीलिए इसरो ने इसे 'भारतीय डाकिंग सिस्टम' नाम देकर पेटेंट भी करा लिया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने न केवल उपग्रहों को जोड़कर एक बनाया, बल्कि उन्हें वापस अलग भी किया।
यह तकनीक बहुत काम की है, क्योंकि भविष्य में भारत को अपना अंतरिक्ष केंद्र बनाना है और अंतरिक्ष केंद्र बनाते समय एक उपग्रह को दूसरे से जोड़ने की कला में माहिर होना सबसे जरूरी है, क्योंकि अंतरिक्ष में कोई भी निर्माण एक झटके में नहीं पूरा होगा, बल्कि अंतरिक्ष केंद्र हेतु वांछित सामग्री बार-बार ले जाने की जरूरत पड़ेगी। अगर एक बड़े उपग्रह को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करना मुश्किल हो, तो छोटे-छोटे उपग्रह जोड़कर बड़ा उपग्रह तैयार किया जा सकता है। इस सफलता ने इसरो की नवाचार क्षमता और घरेलू रूप से उन्नत तकनीकों को विकसित करने की योग्यता को प्रदर्शित किया है, जिससे बाहरी समर्थन पर निर्भरता कम हुई है।
जब भारत इस तकनीक में माहिर हो जाएगा, तो अंतरिक्ष में किसी भी पुराने पड़ते उपग्रह को फिर से 'रिचार्ज' या दुरुस्त किया जा सकेगा। तब भारत की अंतरिक्ष में सफाई अभियान में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी, जिसके बारे में अमेरिका, रूस तथा चीन ज्यादा नहीं सोचते। इस तकनीक में महारत हासिल करने से भारत संभावित रूप से अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं जैसे कि 'लूनर गेटवे' या अन्य सहयोगात्मक अंतरिक्ष स्टेशन प्रयासों में एक प्रमुख साझीदार बन सकता है। इस प्रकार इस मिशन की कामयाबी से चंद्रयान- 4, गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे मिशनों की राह आसान हुई है चंद्रयान- 4 मिशन में चंद्रमा की मिट्टी के नमूने पृथ्वी पर लाए जाएंगे, वहीं गगनयान मिशन में इंसान को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इसरो के लिए इस मिशन का सफल होना बहुत जरूरी था, क्योंकि इसका उपयोग उपग्रहों की सर्विसिंग, अंतरिक्ष स्टेशन संचालन और ग्रहों के बीच आपस में चल रहे मिशनों में खूब होता है भारत की यह सफलता अंतरिक्ष में छिपे कई रहस्यों और जानकारियों के उद्घाटन में बहुत काम आएगी।
तकनीकी दक्षता के साथ-साथ इस मिशन के जरिए भारत वैश्विक व्यावसायिक अंतरिक्ष बाजार में अपनी जगह सुनिश्चित कर रहा है। 2030 तक यह बाजार एक लाख करोड़ डालर का हो सकता है। फिलहाल, इसमें भारत की हिस्सेदारी सिर्फ आठ अरब डालर की है। सरकार का लक्ष्य 2040 तक इसे बढ़ाकर 44 अरब डालर करना है। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने श्रीहरिकोटा में तीसरे लांच पैड के निर्माण को मंजूरी दी है। फिलहाल यहां दो लांच पैड मौजूद हैं। नए लांच पैड को अंतरिक्ष क्षेत्र की भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाया जाएगा। इससे भारत अपनी जरूरत के मिशन को अंजाम देने के साथ-साथ विश्व की मांग भी पूरी कर सकेगा।
सरकार के अनुसार भारत अंतरिक्ष में वर्ष 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के नाम से अपना अंतरिक्ष केंद्र स्थापित करेगा भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 की शुरुआत के साथ ही अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए शत-प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति प्रदान करने से नए उद्यमियों को काफी प्रोत्साहन मिला है। इस समय अंतरिक्ष क्षेत्र सार्वजनिक और निजी भागीदारी की बदौलत तेजी से विकास कर रहा है। अभी करीब तीन सौ स्टार्टअप अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं। सरकार ने अंतरिक्ष स्टार्टअप 'वेंचर फंड' के लिए एक हजार करोड़ रुपए निर्धारित किए हैं। इसरो के अध्यक्ष के अनुसार भारत का लक्ष्य अगले दस वर्षों में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अपने योगदान को दो फीसद से बढ़ाकर दस फीसद करने का है भारत अपनी आयात निर्भरता को कम करने की दिशा में भी काम कर रहा है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर गौर करें तो इनमें मुख्य रूप से चंद्रयान मिशन के तहत चंद्रयान-1 (2008) भारत का पहला चंद्र मिशन था, जिसने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की खोज की। भारत का पहला मंगल मिशन मंगलयान (2014) को पहली ही कोशिश में सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। कम लागत के इस मिशन ने भारत को मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला पहला एशियाई देश बनाया। उसके बाद चंद्रयान-2 (2019) के तहत आर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) शामिल थे। 23 अगस्त, 2023 को चंद्रयान- 3 (2023) के तहत भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की और इस प्रकार ऐसा करने वाला पहला देश बना। इस ऐतिहासिक उपलब्धि की याद में देश ने प्रति वर्ष 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। इसके जरिए भारत सरकार ने भारत के अंतरिक्ष मिशनों की उल्लेखनीय उपलब्धियों को उजागर करने और देश के युवाओं को प्रेरित करने के लिए एक महीने का अभियान शुरू किया। इसका विषय था- 'चांद को छूते हुए जीवन को छूनाः भारत की अंतरिक्ष गाथा'।
इसरो ने 16 अगस्त, 2024 को अब तक के सबसे छोटे सैटेलाइट लांच वीकल डी3 की तीसरी उड़ान के जरिए ईएसओ-08 और एसआर-0 उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया था। ये उपग्रह निगरानी, आपदा निगरानी, आग का पता लगाने, ज्वालामुखी गतिविधियों, औद्योगिक और बिजली संयंत्र आपदाओं जैसी घटनाओं से निपटने के लिए पूर्व जानकारी प्रदान करेंगे। इसके अलावा, भारत ने सस्ती और विश्वसनीय प्रक्षेपण तकनीकों में महारत हासिल की है। एक ही मिशन में 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित करके विश्व कीर्तिमान बनाया। अभी गगनयान मिशन भारत का एक महत्त्वाकांक्षी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम पाइपलाइन में है, जिसकी 2025 के आसपास प्रक्षेपित होने की योजना है। इसरो ने 'स्पेस मिशन' का 2040 तक की रूपरेखा भी तैयार की है और उस पर तेजी से काम हो रहा है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों ने जहां रूस, अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ कई संयुक्त मिशनों में सहयोग किया है, तो दूसरी ओर सार्क और विकासशील देशों को उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भी मदद प्रदान की। यही कारण है कि इसरो की विश्वसनीयता और वैश्विक नेतृत्व का लोहा माना जा रहा है। इसका श्रेय इसरो की तकनीकी क्षमता और किफायती माडल को जाता है। इसकी परियोजनाएं समय और लागत में कुशलता का एक अनुपम उदाहरण हैं। इस प्रकार सीमित संसाधनों से शुरू हुई भारत की अंतरिक्ष गाथा आज दुनिया को नई ऊंचाइयों की ओर प्रेरित करती है। यह गाथा भारत की विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवाचार और आत्मनिर्भरता की यात्रा को भी प्रदर्शित करती है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद मलोट
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