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निरंकार सिंह: मच्छरों के काटने से होने वाली आम बीमारियों में डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, पीला बुखार, जीका वायरस, जापानी बुखार (इंसेफलाटिस), और फाइलेरिया प्रमुख हैं। अमेरिकी मच्छर नियंत्रण संगठन के अनुसार, हर साल मच्छर जनित बीमारियों से दुनिया भर में दस लाख से अधिक लोग मर जाते हैं।
हर साल जाड़े और गर्मियों की शुरुआत में मच्छरों से फैलने वाले रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। इस बार देश के कई राज्यों में मच्छरों की बढ़वार काफी ज्यादा रही। 'नेशनल सेंटर फार वैक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल' के विशेषज्ञों के अनुसार पिछले कई सालों के मुकाबले इस बार मच्छरों की अच्छी-खासी संख्या देखी जा रही है। शायद यही वजह है कि दिल्ली और उसके आसपास ही नहीं, देश के बाकी राज्यों में भी इस बार मच्छर जनित बीमारियों, जैसे डेंगू, चिकनगुनिया के अलावा मलेरिया के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। बीते अक्तूबर तक देश में एक लाख दस हजार से ज्यादा डेंगू के मामले आ चुके थे। करीब इतने ही चिकनगुनिया के संदिग्ध मामले भी पाए गए। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब सहित कई राज्यों में डेंगू और चिकनगुनिया के रोगियों की अस्पतालों में भीड़ बढ़ी है।
मच्छर जनित रोग न केवल मनुष्यों को प्रभावित करते हैं, बल्कि कुत्तों और घोड़ों में भी कई बीमारियों और परजीवियों को प्रसारित करते हैं। मच्छरों के काटने से होने वाली आम बीमारियों में डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, पीला बुखार, जीका वायरस, जापानी बुखार (इंसेफलाटिस), और फाइलेरिया प्रमुख हैं। अमेरिकी मच्छर नियंत्रण संगठन के अनुसार, हर साल मच्छर जनित बीमारियों से दुनिया भर में दस लाख से अधिक लोग मर जाते हैं। डेंगू बुखार एक विषाणु संक्रामक रोग है, जो एडीज मच्छर के काटने से होता है। यह कभी-कभी मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द का कारण बनता है। डेंगू बुखार के लक्षण उम्र पर निर्भर करते हैं और आमतौर पर किसी व्यक्ति को संक्रमित मच्छर द्वारा डंक मारे जाने के बाद चार से सात दिनों के भीतर बुखार के साथ शुरू होता है।
डेंगू के सबसे आम लक्षण हैं- मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, गंभीर सिरदर्द, लाल चकत्ते जो छाती, पीठ या पेट पर शुरू होते हैं और अंगों और चेहरे तक फैलते हैं। आंखों के पीछे दर्द, मतली और उल्टी-दस्त। डाक्टर इसके रोगी को पर्याप्त आराम करने और तरल पदार्थाें के सेवन की सलाह और लक्षणों के आधार पर कुछ दर्द निवारक दवाएं देते हैं। कभी-कभी यह रोग रक्तस्नावी बुखार का कारण बन सकता है, जिसमें छोटी रक्त वाहिकाओं का रिसाव होता और पेट तथा फेफड़ों में तरल पदार्थ भर जाता है। ऐसे मामलों में, तुरंत चिकित्सा के साथ मरीज के देखभाल की आवश्यकता होती है। चिकनगुनिया शब्द का अर्थ है 'मुड़ कर चलना'। बुखार और जोड़ों का दर्द चिकनगुनिया के महत्त्वपूर्ण लक्षण हैं।
चिकनगुनिया विषाणु मुख्य रूप से एक संक्रमित मादा 'एडीज इजिप्टी' के काटने से फैलता है। कुछ दुर्लभ मामलों में, चिकनगुनिया विषाणु संक्रमित व्यक्ति के रक्त के संपर्क में आने से फैल सकता है। इस बीमारी का निश्चित रूप से केवल एक रक्त परीक्षण द्वारा निदान किया जा सकता है और इसके लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है। इसके प्रभाव से जोड़ों का दर्द (दो साल तक) रह सकता है। अन्य गैर-विशिष्ट वायरल लक्षण जैसे सिरदर्द, भूख न लगना आदि हैं। चिकनगुनिया का कोई इलाज नहीं है, लेकिन ज्यादातर लोग इस स्थिति से ठीक हो जाते हैं।
पीला बुखार केवल अमेरिका और अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होता है। इसमें जंगल और शहरी चक्र दोनों हैं। यह अब दुर्लभ यात्रियों की बीमारी है, इसलिए कई देशों में प्रवेश करने से पहले पीले बुखार का टीकाकरण अनिवार्य है। जबकि यह एशिया में नहीं होता है। पीला बुखार में पीली त्वचा और आंखें पीली हो जाती हैं। तेज बुखार के साथ सिरदर्द, ठंड लगना, उल्टी, पीठ दर्द होता है। गंभीर लक्षणों में उच्च बुखार, पीलिया, खून बहना, झटका, कई अंगों की विफलता शामिल है। पीले बुखार का भी कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। उपचार प्रयासों का उद्देश्य लक्षणों के प्रबंधन और जटिलताओं को रोकना है। 'ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी' ऐसा ही एक तरीका है।
जीका वायरस संक्रमित एडीज मच्छर के काटने से फैलता है। यही मच्छर चिकनगुनिया के साथ-साथ डेंगू भी फैलाते हैं। जीका वायरस मुख्य रूप से दुनिया के उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में होता है। जीका वायरस से संक्रमित अधिकांश लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखता। हालांकि, जब लक्षण होते हैं, तो वे आमतौर पर संक्रमित मच्छर द्वारा काटे जाने के दो से सात दिनों के बाद शुरू होते हैं। इसमें हल्का बुखार, खरोंच, जोड़ों या मांसपेशियों में दर्द होता है। अन्य लक्षणों में सिरदर्द और आंखों में लाली भी शामिल हैं। अधिकांश लोग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं और इसके लक्षण लगभग एक सप्ताह में खत्म हो जाते हैं। हालांकि, गर्भवती महिलाओं में यह अधिक गंभीर होता है, क्योंकि इससे बच्चों में छोटे सिर और मस्तिष्क क्षति जैसे जन्म दोष हो सकते हैं। इस बीमारी से बचाव के लिए फिलहाल कोई टीका नहीं है।
एशिया में दिमागी बुखार आमतौर पर ग्रामीण या कृषि क्षेत्रों में होता है, जो अक्सर धान की खेती से जुड़ा होता है। दिमागी बुखार का विषाणु क्यूलेक्स मच्छरों के डंक से मनुष्यों में फैलता है। अधिकांश इंसेफेलाइटिस संक्रमण बुखार और सिरदर्द के साथ शुरू होते हैं, या स्पष्ट लक्षणों के बिना, लगभग ढाई सौ मामलों में से एक, को गंभीर बीमारी होती है। दिमागी बुखार की शुरुआत तेज बुखार, भयानक सिरदर्द, गर्दन में अकड़न से होती है। कुछ गंभीर मामलों में पक्षाघात और मूर्च्छा के लक्षणों वाले लोगों में मृत्यु दर तीस फीसद तक हो सकती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस बीमारी से हर साल हजारों लोगों की मौत हो जाती थी। इसके उपचार में डाक्टर रोगी को आराम, तरल पदार्थ के सेवन की सलाह के साथ एंटीवायरल दवाएं देते और लक्षण पर आधारित चिकित्सा करते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने टीकाकरण अभियान चला कर इस बीमारी पर लगाम लगाने में सफलता प्राप्त की है।
मलेरिया एक जानलेवा मच्छर जनित रक्त रोग है, जो 'प्लास्मोडियम' नामक परजीवी के कारण होता है, जो संक्रमित एनोफिलीज मच्छर के काटने से मनुष्यों में फैलता है। मानव शरीर में, परजीवी यकृत में और फिर लाल रक्त कोशिकाओं में फैल जाते हैं। इसकी कई दवाएं बन गई हैं। फाइलेरिया को फीलपांव भी कहा जाता है, परजीवी कीड़े के कारण होता है और मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलता है। यह उष्ण कटिबंधीय और परजीवी रोग लिम्फ नोड्स और वाहिकाओं को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इस बीमारी के कारण हाथ-पैरों में काफी सूजन आ जाती है। प्रभावित क्षेत्र की त्वचा हाथी जैसी दिखने वाली मोटी और सख्त हो जाती है। यह रोग ज्यादातर उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में पाया जाता है।
अधिकांश लोग, जिन्हें यह रोग होता है, उनमें स्पष्ट लक्षण नहीं दिखाई देंगे। परजीवी लसीका प्रणाली को नुकसान पहुंचाता है। व्यक्तियों का एक छोटा फीसद लिम्फेडेमा विकसित कर सकता या पुरुषों में हाइड्रोसील विकसित हो सकता है। यह ज्यादातर पैरों को प्रभावित करता है, लेकिन जननांगों, स्तनों और बाहों में भी हो सकता है। कई व्यक्तियों में संक्रमित होने के वर्षों बाद इन लक्षणों का पता चलता है। एक संक्रमित व्यक्ति के उपचार का मुख्य उद्देश्य वयस्क कृमि को मारना होता है। इसके लिए चिकित्सक डायथाइलकार्बामाजिन साइट्रेट (डीईसी) नामक दवा देते हैं। आइवरमेक्टिन का उपयोग माइक्रोफाइलेरिया के खिलाफ करते हैं, लेकिन वयस्क परजीवी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। देश में मच्छरों की आबादी इतनी अधिक है कि उनसे लड़ना चुनौतियों से भरा है। जब तक मच्छरों पर नियंत्रण नहीं होगा, तब तक संचारी रोगों पर लगाम मुश्किल है। सरकारों को इसी दिशा में सोचने की जरूरत है।