सम्पादकीय

Russia Ukraine War : तुर्की शांति वार्ता से स्पष्ट है 'यूक्रेन युद्ध' में पुतिन ने जो निर्धारित किया उसका बड़ा हिस्सा हासिल कर लिया

Gulabi Jagat
1 April 2022 7:48 AM GMT
Russia Ukraine War : तुर्की शांति वार्ता से स्पष्ट है यूक्रेन युद्ध में पुतिन ने जो निर्धारित किया उसका बड़ा हिस्सा हासिल कर लिया
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यूक्रेन और रूस का युद्ध भले ही समाप्ती की तरफ बढ़ रहा हो
के वी रमेश।
यूक्रेन और रूस का युद्ध (Russia Ukraine War) भले ही समाप्ती की तरफ बढ़ रहा हो, लेकिन इसने उस विश्व व्यवस्था को बदल दिया है जो सोवियत संघ के विघटन के बाद से अस्तित्व में आई थी और जिसे मजबूत होता हुआ चीन (China) चुनौती दे रहा था. भले ही पश्चिमी मीडिया और विचारक यूक्रेन युद्ध को रूस के लिए असफल बता रहे हों, मगर व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के लिए संघर्ष घाटे वाला नहीं रहा है. अपनी स्पष्टता और निष्ठुरता के कारण रूस के निर्विवाद शासक ने अपने मूल उद्देश्यों को प्राप्त कर लिया है. यूक्रेन को यदि उन्होंने समग्रता में नहीं भी जीता हो तो भी डोनेस्क और लुहांस्क प्रांत को तो उन्होंने यूक्रेन से अलग कर रूस में मिला ही लिया है. रूस के कब्जे वाला क्राइमिया भी अब स्थाई रूप से उसका हिस्सा हो गया है.
मंगलवार को इस्तांबुल में डोलमाबाहस राष्ट्रपति कार्यालय में शांति वार्ता के दौरान यूक्रेन पक्ष के लिखित रूप में दिये गए "मौलिक" प्रस्तावों से तो कम से कम यही संकेत मिलता है. कीव के आसपास आक्रामण को धीमा करने की रूस की प्रतिक्रिया से संकेत मिलता है कि वह अब यूरोप को यह दिखाना चाहता है कि यूक्रेन को तबाह करने की यूरोपीय देशों ने जो आशंका पहले जताई थी वो काफी बढ़ा-चढ़ा कर की गई थीं. इस्तांबुल में रूस के मुख्य वार्ताकार व्लादिमीर मेडिंस्की ने जोर देकर कहा कि युद्ध की तीव्रता में कमी और युद्धविराम के बीच अंतर है.
पुतिन-ज़ेलेंस्की शिखर सम्मेलन के लिए तैयार हैं
"यह युद्धविराम नहीं है, यह हमारी इच्छा है कि हम धीरे-धीरे संघर्ष को कम करें, कम से कम इन क्षेत्रों में …. और हम समझते हैं कि कीव में ऐसे लोग हैं जिन्हें निर्णय लेने की आवश्यकता है," उन्होंने कहा. "हम इस शहर (कीव) को अतिरिक्त जोखिम में नहीं डालना चाहते हैं," मेडिंस्की ने इस तरह से कहा जैसे यूक्रेन की राजधानी कीव पर उनका कब्जा हो चुका है. यूक्रेन के प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख डेविड अरखामिया ने जो प्रस्ताव पेश किए वह पुतिन की मांग के काफी करीब हैं – कि यूक्रेन नाटो में शामिल होने के अपने प्रयास को छोड़ देगा, वह रूस और पश्चिमी देशों के बीच तटस्थता को बनाए रखेगा और यह कि मिन्स्क में डोनेस्क और लुहांस्क के लिए स्वायत्तता देने वाले समझौतों को लागू किया जाएगा. यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल के अरखामिया ने यह भी कहा कि यूक्रेन ने कई देशों से सुरक्षा गारंटी मांगी जो नाटो की आपसी आत्मरक्षा प्रतिबद्धता से अलग है. उन्होंने यूके, चीन, अमेरिका, तुर्की, फ्रांस, कनाडा, इटली, पोलैंड और इज़राइल को संभावित गारंटर के रूप में नामित किया और कहा कि इनमें से कुछ ने यूक्रेन के साथ प्रारंभिक समझौता किया है.
अमेरिका ने कहा है कि कीव पर आक्रमण को समाप्त करने के रूसी दावों पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए. युद्ध से परेशान और ट्रान्साटलांटिक गठबंधन के मदद के वादों से निराश और मोहभंग होने के बाद यूक्रेन राहत के लिए किसी का भी हाथ पकड़ने को तैयार होगा जो डूबते को तिनके का सहारा की तरह होगा. मॉस्को ने घोषणा की है कि वह भविष्य में शांति संधि पर वार्ता के साथ पुतिन-ज़ेलेंस्की शिखर सम्मेलन के लिए तैयार है. रूस ने पहले कहा था कि इस तरह की बैठक तभी निर्धारित की जा सकती है जब दस्तावेज़ को संबंधित विदेश मंत्री अंतिम रूप देकर हस्ताक्षर कर दें.
इसका मतलब यह हुआ कि यूक्रेन अब आधे देश के बर्बाद होने, हजारों लोगों की मौत और करीब ढाई लाख लोगों के पड़ोसी देशों और यूरोप में विस्थापित होने के बाद उन्हीं पुरानी शर्तों पर सहमत होने को तैयार हैं. अगर सैन्य पहलू पर गौर किया जाए तो रूस यूरोपीय संघ की यूक्रेन की सदस्यता के लिए भी सहमत हो सकता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि नाटो के पूर्व की ओर रूस की सीमा तक विस्तार के खिलाफ सुरक्षा गारंटी दी जा सकती है जो रूस-यूक्रेन संघर्ष का मूल कारण है.
रूस को ईंधन की बढ़ी कीमतों का बड़ा फायदा मिलेगा
यूक्रेन की तरह नाटो की सदस्यता ग्रहण करने की कोशिश में लगे जॉर्जिया, मोल्दोवा के अलावा पड़ोसी देश फिनलैंड, बाल्टिक गणराज्य, पोलैंड और हंगरी जैसों के लिए यह एक सबक की तरह है. अगर अमेरिका-नाटो और यूरोपीय संघ गठबंधन यूरोप के लिए एक समग्र पारस्परिक रूप से स्वीकार्य नई सुरक्षा संरचना तैयार करने में नाकाम रहे तब यूक्रेन की हालत देख कर कई देश रूस के साथ शांति बनाने के लिए लाइन में लगे नजर आ सकते हैं. युद्ध में आर्थिक दृष्टि से रूस को भारी कीमत चुकानी पड़ी है. लेकिन एक बार शांति लौटने और यूरोप के साथ आर्थिक संबंध दोबारा स्थापित हो जाने के बाद रूस को ईंधन की बढ़ी कीमतों का बड़ा फायदा मिलेगा.
तेल और गैस के साथ यूरोपीय उद्योगों के लिए आवश्यक खनिज, धातु और गेहूं अब तक के उच्चतम स्तर को छू रहे हैं. दिसंबर के मुकाबले गेहूं 30 फीसदी महंगा हो चुका है. चिप बनाने और नैनोटेकनोलॉजी उद्योग के लिए महत्वपूर्ण निकेल 60 प्रतिशत महंगा हो गया है. कैटेलिटिक कनवर्टर्स के लिए आवश्यक पैलेडियम 70 प्रतिशत महंगा हो गया है, कोयला 400 डॉलर प्रति टन (रूस के पास दुनिया का 20 प्रतिशत भंडार है) के सबसे महंगे दाम पर बिक रहा है. सोना और तांबा भी काफी महंगे हो चुके हैं. आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि से पुतिन को भारी लाभ होगा क्योंकि वायदा कारोबार मनमोहक भविष्यवाणी कर रहा है. इसका मतलब है कि रूस सरकार न केवल वर्तमान में मुनाफा कमा रही है बल्कि निकट भविष्य में भी वो मुनाफा कमाती रहेगी.
तेल और गैस की कीमतों में वृद्धि का ट्रिकल डाउन असर होगा और दुनिया भर में महंगाई बढ़ेगी. भारत जैसे शुद्ध पेट्रलियम पदार्थों के आयातक देश पश्चिमी देशों के बार-बार आग्रह के बावजूद रूस की आलोचना नहीं करने को मजबूर होंगे. युद्ध ने पश्चिमी गठबंधन की कमजोरियों को उजागर कर दिया है. अमेरिकी रणनीतिक विचारकों का मानना था कि सोवियत संघ के बाद बचा रूस यूरोपियन यूनियन के प्रति नरम होगा मगर यह अनुमान उलटा पड़ गया है. सबसे शक्तिशाली यूरोपीय देश जर्मनी ऊर्जा आपूर्ति के लिए पूरी तरह से रूस पर निर्भर है. ऐसे में पश्चिमी प्रतिबंधों का रूस पर ज्यादा असर नहीं होने वाला. जब युद्ध का कोहरा छंटेगा और लोग यूक्रेन को भूल जाएंगे तो आकलन और विश्लेषण के बाद पश्चिमी देश ही घाटे में रहेंगे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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