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Written by जनसत्ता: कुछ कृषि अर्थशास्त्री यह तर्क देते हैं कि लगातार समर्थन मूल्य बढ़ाने से उपज का मूल्य अंतरराष्ट्रीय बाजार मूल्य से अधिक हो जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप विदेशों से माल भारत में जमा होने लगता है। पहली बात तो यह कि सरकार ने संपूर्ण कृषि उपज समर्थन मूल्य पर खरीदी ही नहीं है और दूसरा, जब सरकार तिलहन और अन्य कृषि उत्पादन के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है, तो उसके लाभकारी मूल्य किसानों को मिलने ही चाहिए। बिना लाभकारी मूल्य के किसान भला उसका उत्पादन कैसे करेगा। जहां तक बात माल के जमा होने की है, तो सरकार आयात शुल्क बढ़ा कर डंपिंग को रोक सकती है। इससे जहां एक तरफ किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिलेगा, वहीं दूसरी ओर देश तिलहन और खाद्यान्न की क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा।
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपने वचनपत्र में घोषणा की है कि उनकी सरकार अल्पसंख्यकों के प्रति 'जीरो टालरेंस' की नीति अपनाएगी। सभी तुष्टिवादी नेताओं और पार्टियों ने तुष्टिकरण का परिणाम 1917 के चुनाव में देख लिया है। ये तुष्टिवादी नेता मंदिरों और तीर्थों की परिक्रमा भी करना सीख गए हैं। पर कहते हैं कि चोर चोरी से जाए हेरा-फेरी से न जाए। उनके मन की बात होठों से होती हुई मीडिया तक आ गई कि हम नहीं सुधरेंगे। तभी तो अपराध भी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक हो गया। अखिलेश यादव की मन की बात जुबान पर आ गई कि अल्पसंख्यकों के प्रति अपराध हमारी सरकार सहन नहीं करेगी, भले निर्दोष बहुसंख्यक पिटता रहे, अपमानित होता रहे।
दागी जनप्रतिनिधि के लिए विशेष अदालत का गठन करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सहमति मिलने से दागियों के विरुद्ध दर्ज मुकदमों में अब तेजी से सुनवाई की उम्मीद बढ़ी है। वर्ष 2018 से 2020 के दौरान एक हजार दागियों की संख्या बढ़ना चिंताजनक है तथा इससे स्पष्ट है कि अदालतों को या तो काम करने नहीं दिया जाता या सुनवाई में बाधा उत्पन्न की जाती होगी। चुनाव आयोग के पास सीमित अधिकार होने से भी दागियों की संख्या में इजाफा हुआ है। कठोर कानून बनाने के पक्ष में सियासी दल नहीं हैं, क्योंकि सभी सियासी दलों के दामन दागदार हैं। लोकलुभावन घोषणाओं के फेर में मतदाता भी बेदाग या सही व्यक्ति नहीं चुन पाता और राजनीतिक दल सत्ता पाने के लालच में केवल जिताऊ व्यक्ति को उम्मीदवार बनाते हैं, चाहे वह कितना ही दागदार क्यों न हो।