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Written by जनसत्ता; मगर इससे यह भी साफ होता है कि इतने लंबे वक्त तक पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय वित्तीय अपराध को संरक्षण देने के आरोप में घिरा रहा और खुद को बेदाग साबित करने में सक्षम नहीं हो सका था।
गौरतलब है कि पेरिस में एक समीक्षा बैठक के बाद एफएटीएफ ने पाकिस्तान को संदिग्ध सूची से बाहर करने के फैसले पर अपनी सहमति दे दी। इसके बाद अब पाकिस्तान अपनी बिखर चुकी अर्थव्यवस्था की दशा को सुधारने के लिए वैश्विक स्तर पर आर्थिक लेनदेन में आ रही अड़चन को कम कर सकेगा। मगर जिन वजहों से पाकिस्तान को इस सूची में रखा गया था, लंबे समय से उनका मुख्य शिकार भारत को होना पड़ा है और आतंकवाद से लेकर अन्य कई स्तरों पर गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ा है।
इसका दर्द भारत ही समझ सकता है कि आतंकी संगठनों के प्रति पाकिस्तान के नरम रवैए के नतीजे में उसे कैसे जख्म मिले हैं। इसलिए स्वाभाविक ही भारत ने एफएटीएफ के इस फैसले पर सख्त विरोध जताया है और मांग की है कि पाकिस्तान आतंकवाद पर विश्वसनीय कार्रवाई करे।
दरअसल, इस सूची में होते हुए किसी भी देश के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक आदि से वित्तीय सहायता प्राप्त कर पाना मुश्किल होता है। यही वजह है कि माली हालत बेहद खराब होने के बावजूद पाकिस्तान को इन संस्थाओं से आर्थिक मदद हासिल कर पाने में मुश्किल पेश आ रही थी। मगर एफएटीएफ की ओर से संदिग्ध सूची से बाहर कर दिए जाने के बाद पाकिस्तान को अब कुछ राहत मिल सकती है।
मौजूदा दौर में उसकी आर्थिक स्थिति जितनी कमजोर हो चुकी है, उसमें फिलहाल मदद हासिल करने में उसे आसानी होगी और उससे जमीन पर काफी कुछ बदल सकता है। इसलिए पाकिस्तान को बेशक खुश होना चाहिए, मगर यह याद रखते हुए कि एफएटीएफ के सामने उसे किन वजहों से इस दायरे में रखने की मजबूरी आई होगी। एफएटीएफ मुख्य रूप से वैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय अपराधों की रोकथाम की कोशिश करता है, जो आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए किए जाते हैं। पाकिस्तान पर ऐसे आरोप लगाए जाते रहे हैं कि वहां आतंकवादी संगठनों को आर्थिक मदद पहुंचाने और धनशोधन का काम चल रहा है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि आतंकवादी संगठनों के प्रति पाकिस्तान के नरम होने या कई स्तर पर उन्हें संरक्षण देने का हासिल क्या रहा है। खासतौर पर भारत में आतंकवादी घटनाओं के पीछे वैसे संगठनों का हाथ रहा है, जो पाकिस्तान स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करते रहे हैं। भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र से लेकर हर उचित मंच पर इस समस्या को लगातार उठाया है।
इस मसले पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठती रही है। एफएटीएफ की जांच-पड़ताल के बाद 2018 में पाकिस्तान को संदिग्ध सूची में डालने और उसके आर्थिक मदद हासिल करने को सीमित किया गया था। इससे साफ है कि भारत की ओर से आतंकवाद को बढ़ावा देने को लेकर पाकिस्तान पर जो आरोप लगाए जाते रहे हैं, उसके मजबूत आधार रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी उसे सही पाया है।
यही वजह है कि दबाव बढ़ने के बाद पाकिस्तान को आतंक के वित्तपोषण या चिह्नित आतंकवादियों के खिलाफ कुछ कार्रवाई करने पर मजबूर होना पड़ा। अब पाकिस्तान को संदिग्ध सूची से बाहर आने का अवसर मिला है तो एफएटीएफ के ताजा फैसले को सही साबित करने की जिम्मेदारी भी उसी पर है।