सम्पादकीय

'तमाशबीनों' की प्रासंगिकता

Gulabi Jagat
8 April 2022 10:26 AM GMT
तमाशबीनों की प्रासंगिकता
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यूक्रेन की राजधानी कीव से 40-50 किमी दूर बुका क्षेत्र में एक बेहद बर्बर नरसंहार सामने आया
By: divyahimachal
यूक्रेन की राजधानी कीव से 40-50 किमी दूर बुका क्षेत्र में एक बेहद बर्बर नरसंहार सामने आया। मासूम लोगों के हाथ-पैर पीछे बांध कर कनपटी पर गोलियां मारी गईं। हत्याओं का ब्यौरा देने में भी मन विचलित हो उठता है। महिलाओं और लड़कियों के साथ हैवानियत की हदें पार कर दुष्कर्म किए गए। 'नृशंस राक्षसों' ने बच्चों तक को नहीं बख्शा। यह नरसंहार किसने किया? सवाल वाजि़ब है, लेकिन दुनिया भर के आरोप रूसी सेना या उसके समर्थक चेचन लड़ाकों पर हैं। चेचन लड़ाके अपनी खूंख्वार फितरत के लिए कुख्यात हैं। बुका में 400 से अधिक लाशें मिली थीं, जो काफी विकृत हो चुकी थीं। बेशक युद्ध के दौरान मानवीय त्रासदियां और विध्वंस स्वाभाविक माने जाते हैं, लेकिन ऐसा पैशाचिक व्यवहार 'जिनेवा संधि' की गरिमा और महत्ता को खंडित करता है। बुका और यूक्रेन के 'मलबा' हो चुके शहरों के संदर्भ में एक गंभीर सवाल दुनिया को खाये जा रहा है कि क्या किसी एजेंसी या संस्थान के स्तर पर ऐसे 'युद्ध अपराधी' को दंडित किया जा सकता है?
संयुक्त राष्ट्र संघ को 1945 में इसी मकसद के साथ गठित किया गया था कि विश्व युद्ध की विभीषिकाओं से बच सके। किसी भी स्वतंत्र, संप्रभु और अखंड देश को युद्ध की भट्ठी में झोंका न जा सके! यदि यूक्रेन को ही एक उदाहरण मान लिया जाए, तो साफ हो जाता है कि तमाम नामचीन संस्थाएं-यूएन महासभा, सुरक्षा परिषद, यूएन मानवाधिकार परिषद, नाटो, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत आदि-तमाशबीन बनी हैं। बुका नरसंहार पर यूएन के महासचिव गुतारेस एंटोनियो भयावह तस्वीरें देखकर स्तब्ध हो गए थे और व्यापक जांच की मांग की थी। यह मांग अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस आदि कई देशों ने भी की थी। यूएन के उप महासचिव मॉर्टिन ग्रिफिथ्स ने यूक्रेन का रस्मी दौरा भी किया। मुद्दा सुरक्षा परिषद में भी उठा। मांग यह भी की गई कि रूस समेत चीन और पाकिस्तान को भी मानवाधिकार परिषद से बाहर कर दिया जाए। यूएन महासभा की आपातकालीन बैठक में मतदान कराया गया। क्या रूस का बाल भी बांका किया जा सका? रूस और चीन वीटो पॉवर वाले देश हैं। उनकी घेराबंदी नहीं की जा सकती। उन्हें नियंत्रित करना भी असंभव है। फिर यूएन के लेबल वाली इतनी संस्थाएं क्यों चलाई जा रही हैं?
उन पर खरबों रुपए का खर्च क्यों किया जा रहा है? जब यूएन का गठन किया गया था, तब भारत समेत ज्यादातर देश स्वतंत्र नहीं थे। हमारा प्रतिनिधित्व ब्रिटेन ने किया था, लेकिन आज 193 देश इसके सदस्य हैं। सुरक्षा परिषद में आज भी पांच स्थायी सदस्य ही क्यों हैं? भारत, जापान, जर्मनी सरीखे देश अस्थायी तौर पर सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं। बहरहाल दुनिया ने अमरीका-वियतनाम युद्ध देखा। ईरान-इराक युद्ध में करीब 10 लाख मासूम लोग मारे गए। रासायनिक हथियारों का भी इस्तेमाल किया गया। विश्व ने 1994 का रवांडा नरसंहार भी देखा, जिसमें 8 लाख से ज्यादा लोग मारे गए। ऐसे कई और जंगी टकराव, तनाव, नरसंहार किए गए होंगे, लेकिन सभी के संदर्भ में यूएन नाकाम और निष्क्रिय साबित होता रहा है। उसके दखल का औचित्य ही कोई देश मानने को राजी नहीं है। तो फिर इन 'तमाशबीनों' की ज़रूरत और प्रासंगिकता ही क्या है? दुनिया हर समय युद्ध में घिरी लगती है। यूक्रेन के संदर्भ में भी अमरीका समेत यूरोपीय और नाटो देशों ने युद्ध को समाप्त कराने की कोई कोशिश नहीं की। सभी बड़े देशों ने यूक्रेन की आर्थिक मदद की और हथियार भेजने के ऐलान किए। लगातार यह आशंकित माहौल भी बना रहा है कि रूस परमाणु युद्ध शुरू कर सकता है! लिहाजा छोटे-छोटे देशों को भी अपने रक्षा-बजट बढ़ाने पड़े हैं। अमरीका का हथियार बाज़ार चमचमा रहा है। आने वाले कल में कोई भी देश 'यूक्रेन' साबित हो सकता है और रूस के स्थान पर कोई अन्य महाशक्ति हो सकती है! जब ऐसे दुष्प्रचार ही नहीं थम रहे हैं, तो फिर यूएन की भूमिका क्या है?
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