सम्पादकीय

कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद विवाद : आखिर कुतुब मीनार परिसर से क्यों नहीं हटेंगी गणेश प्रतिमाएं?

Gulabi Jagat
21 April 2022 7:24 AM GMT
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद विवाद : आखिर कुतुब मीनार परिसर से क्यों नहीं हटेंगी गणेश प्रतिमाएं?
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कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद विवाद
प्रवीण कुमार |
दिल्ली (Delhi) के महरौली इलाके में भव्य क़ुतुब मीनार (Qutub Minar) दुनिया के चंद अजूबों में से एक रहा है. लेकिन मौजूदा वक्त में इसकी चर्चा दुनिया के चंद अजूबों की वजह से नहीं, बल्कि परिसर में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद (Quwwatul Islam Masjid) में हिन्दू देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियों पर उठे विवाद की वजह से हो रही है. मामला दिल्ली की अदालत तक पहुंच चुका है. कोर्ट ने भगवान गणेश की मूर्तियों को मस्जिद परिसर से बाहर ले जाने पर फिलहाल रोक लगाकर यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर कोर्ट को क्यों यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश देना पड़ा? भगवान गणेश की मूर्तियों को मस्जिद परिसर से बाहर ले जाने या परिसर के अंदर पूजा करने की इजाजत देने से कोर्ट ने क्यों मना कर दिया है?
ऐतिहासिक धरोहर है कुतुब मीनार परिसर
कुतुब मीनार परिसर एक ऐतिहासिक धरोहर है. कुतुब मीनार से सटी एक मस्जिद है जो कुव्वत-उल-इस्लाम के नाम से जानी जाती है. माना जाता है कि यह भारत में मुस्लिम सुल्तानों द्वारा बनवाई गई पहली मस्जिद है. कहा यह भी जाता है कि इस मस्जिद में सदियों पुराने मंदिरों का भी बड़ा हिस्सा शामिल है. देवी-देवताओं की मूर्तियां और मंदिर की वास्तुकला अभी भी इस आंगन के चारों ओर के खंबों और दीवारों पर साफ दिखाई देती है. इतना ही नहीं, क़ुतुब मीनार के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख में भी लिखा है कि ये मस्जिद वहां बनाई गई है, जहां 27 हिन्दू और जैन मंदिरों का मलबा था. लेकिन इस शिलालेख पर लिखी बातों से ये स्पष्ट नहीं होता है कि मस्जिद का निर्माण इसी स्थान पर बने मंदिरों को तोड़कर बनाया गया है. हो सकता है मंदिरों को कहीं और तोड़ा गया हो और उसका मलबा उस स्थान पर फेंका गया हो जहां कुव्वत-उल-इस्लाम का निर्माण किया गया और उस निर्माण में मलबे का इस्तेमाल किया गया हो.
कहने का मतलब यह कि ऐतिहासिक तथ्यों में इस बात का कोई सटीक और स्पष्ट प्रमाण मौजूद नहीं है कि एक ही स्थान पर बने 27 मंदिरों को तोड़कर उसी स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया. हां, मस्जिद के कई स्तंभ और उसके ढांचे इस बात की तस्दीक जरूर करते हैं कि मंदिरों के तोड़े गए मलबे का इस्तेमाल मस्जिद में किया गया है. इस सूरत में विवाद को अगर खत्म करना हो तो खत्म किया जा सकता है. रही बात हिन्दू देवी-देवताओं की खंडित प्रतिमाओं की तो यह भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और इसे पूजा के लिए इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जा सकती है.
इस बारे में धार्मिक प्रकृति की प्राचीन इमारतों पर पुरातत्व विभाग की नीति बिल्कुल स्पष्ट है. और चूंकि मामला अदालत में जा चुका है. निचली अदालत से बात नहीं बनी तो मामला ऊपरी अदालत में भी जाएगा क्योंकि पूरे मामले की छानबीन के बाद ही कोई अंतिम फैसला दिया जाएगा. तब तक इंतजार करना पड़ेगा. इससे पहले हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमा को कहीं और ले जाकर स्थापित नहीं किया जा सकता है. जैसा कि दिल्ली की अदालत ने अपने हालिया आदेश में कहा है.
विवाद के पीछे की पूरी कहानी क्या है?
राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद शिहाबुद्दीन उर्फ मुइजुद्दीन मुहम्मद गौरी ने अपने गुलाम जनरल क़ुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का शासक नियुक्त किया था. ये कहानी 1200 ईस्वी की है. तभी क़ुतुबुद्दीन ऐबक और उसके उत्तराधिकारी शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने दिल्ली के महरौली में क़ुतुब मीनार बनवाया था. इसी दौर में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का भी निर्माण किया गया था जिसका विस्तार बाद में कई वर्षों तक होता रहा. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कुव्वत इस्लाम मस्जिद में तीर्थंकर ऋषभदेव, भगवान विष्णु, गणेश जी, शिव-गौरी, सूर्य देवता समेत कई हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं. इनमें से ज्यादातर मूर्तियां खंडित अवस्था में पड़ी हैं.
असल में नेशनल मॉन्युमेंट ऑथरिटी ने पिछले महीने भारतीय पुरातत्व विभाग को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया था कि भगवान गणेश की दो मूर्तियों- उल्टा गणेश और पिंजड़े में गणेश को राष्ट्रीय संग्रहालय में सम्मानजनक स्थान दिया जाए जहां ऐसी प्राचीन वस्तुएं रखी जाती हैं. 25 मार्च 2022 के एनएमए चेयरमैन तरुण विजय ने संस्कृति मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा था, ये बहुत शर्मनाक बात है कि मस्जिद परिसर के अन्दर भगवान गणेश जी की मूर्तियां बेहद अपमानजनक स्थिति में रखी गई हैं. एक मूर्ति तो ऐसी जगह है, जहां लोगो के पैर लगते है, वहीं दूसरी जाली में बंद हैं. उन्हें वहाँ से हटाकर नेशनल म्यूजियम जैसी दूसरी जगह रखा जा सकता है.
यहीं से विवाद की शुरूआत हुई. दिल्ली की साकेत कोर्ट में पूजा अर्चना के अधिकार को लेकर एक अर्जी में कहा गया कि नेशनल मॉन्युमेंट अथॉरिटी के दिए सुझाव के मुताबिक, भगवान गणेश की मूर्तियों को नेशनल म्यूजियम या किसी दूसरी जगह विस्थापित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें इसी परिसर में पूरे सम्मान के साथ उचित स्थान पर रखकर पूजा-अर्चना की इजाजत दी जानी चाहिए.
इस मामले में एक याचिका 9 दिसंबर 2021 को भी दिल्ली की एक दीवानी अदालत में लगाई गई थी जिसमें कहा गया था कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को तोड़कर उनके अवशेषों से मस्जिद का निर्माण करवाया था, इसलिए परिसर में बिखरी मूर्तियों को दोबारा स्थापित कर पूजा की अनुमति दी जाए. हालांकि, तत्कालीन जज ने तब याचिका को रद्द करते हुए कहा था कि अतीत की गलतियों के कारण मौजूदा वक्त की शांति भंग नहीं की जा सकती.
अतीत की विरासत से छेड़छाड़ ठीक नहीं
पुरातत्व विभाग के पूर्व प्रमुख सैयद जमाल हसन की मानें तो आर्ट और आर्किटेक्चर से संबंधित जो भी इमारतें हैं, चाहे वो बौद्ध धर्म की हों, जैन धर्म की हों, हिन्दू धर्म की हों या इस्लाम की हों. अतीत की जो भी विरासत हो, निशानियां हों, हमें उन्हें 'जैसी हैं, वैसे ही रहने देना चाहिए', ताकि आने वाली पीढ़ियां यह देखकर समझ सकें कि यह किसकी वास्तुकला शैली है, यह निर्माण की गुप्त शैली है, यह शुंग शैली है, यह मौर्य शैली, यह मुगल शैली है. उस शैली को जीवित रखना हमारा काम है.
दूसरी बात, मान लीजिए आज हिन्दू धर्मावलंबी भगवान गणेश व अन्य देवी देवताओं की खंडित प्रतिमा को मस्जिद से उठाकर किसी अन्य स्थान पर स्थापित कर पूजा-अर्चना करने लगेंगे तो आने वाली पीढ़ियों को यह कैसे पता चलेगा कि मुगल शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिरों को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाया था.
ऐसे बहुत सारे शोध व अध्ययन से हम वंचित रह जाएंगे जो आने वाली भविष्य की पीढ़ियां कर सकती है. कई हिन्दू संगठन और इतिहासकार ताज महल, पुराना किला, जामा मस्जिद और मुस्लिम शासकों द्वारा निर्मित कई अन्य इमारतों को हिन्दू इमारत मानते हैं. उनका मानना है कि मुस्लिम शासकों ने प्राचीन हिन्दू मंदिरों और इमारतों को ध्वस्त करके मस्जिद की शक्ल दे दी थी. इसका मतलब यह तो हो नहीं सकता कि मस्जिद के शक्ल वाली सारी इमारतों को तोड़कर मंदिर की शक्ल दे दी जाए. कम से कम ऐतिहासिक विरासत की श्रेणी में जो इमारतें हैं उन्हें तो छोड़ दिया जाए.
कोर्ट का सही वक्त पर सही फैसला
क़ुतुब मीनार परिसर में मंदिर की बहाली के लिए प्रतिबद्ध याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री जो पेशे से वकील भी हैं, कहती हैं कि भारत में जितने भी मंदिर थे, जो मुगल शासकों द्वारा हिंदुओं को अपमानित करने और मस्जिद बनाने के लिए ध्वस्त किए गये थे, हम वहां भारत की गरिमा को दोबारा बहाल करेंगे और इन मंदिरों को आजाद कराएंगे. लेकिन आजादी का मतलब अगर यह है कि ताज महल, कुतुब मीनार और जामा मस्जिद को तोड़कर वहीं मंदिर बनाना है तो यह अतीत की विरासत के साथ न्याय नहीं होगा. जो है उसकी यथास्थिति बरकरार रखते हुए अगर मंदिर का स्वतंत्र अस्तित्व खड़ा करें तो इस बात को शिलालेख पर पूरी कहानी का उल्लेख करें तो भविष्य की पीढ़ी को हम ज्यादा अच्छे से समझा सकेंगे कि पहले क्या था, फिर मुगल काल में क्या हुआ और फिर हमने क्या किया.
नहीं तो फिर बात वही हो जाएगी और हम जानते भी हैं कि कई ऐसे बौद्ध मठ हैं जो मंदिर बनाए गए हैं. तो उनको फिर से बौद्ध मठ बनाने की इजाजत दी जा सकती है क्या? कहा तो यह भी जाता है कि महाबोधि मंदिर में जो मूर्ति हैं, वो शिव जी की है. फिर उसका क्या होगा? इस तरह तो यह कभी ना खत्म होने वाला सिलसिला शुरू हो जाएगा. क़ुतुब मीनार का परिसर कई साम्राज्यों का अहम केंद्र रहा है. भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित किया है. लिहाजा इसे धार्मिक मण्डलों में विभाजित करने की जगह ऐतिहासिक स्मारक के रूप में ही देखना बेहतर होगा. और ऐसे में दिल्ली की अदालत ने भगवान गणेश की प्रतिमा को लेकर कुतुब मीनार परिसर में यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश सही वक्त पर सही फैसला कहा जाएगा.
बहरहाल, कुतुब मीनार परिसर और क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में हिन्दू देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां ऐतिहासिक धरोहर यानी अतीत की विरासत के तौर पर संरक्षित की गई हैं. लिहाजा कोर्ट ने भी फिलहाल भारतीय पुरातत्व विभाग की गाइडलाइंस को ध्यान में रखते हुए इसे विवादों से दूर रखने की कोशिश के तहत आदेश जारी किया है. लिहाजा हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों को अन्यत्र नहीं ले जाया जा सकता है और न ही उसकी पूजा की इजाजत दी जा सकती है. ऐतिहासिक धरोहरों को धार्मिक आस्था से अलग रखना चाहिए. अगर इसे विवादों में घसीटा गया तो देश में हर मंदिर और हर मस्जिद पर विवाद खड़ा किया जाएगा और फिर हमारा 'सर्व-धर्म-सम्भाव' वाला देश खतरे में पड़ जाएगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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