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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम
मनुष्य का शरीर भी गजब का होता है। अधिकांश लोग इसे सजा-धजाकर शो-रूम बनाने के चक्कर में रहते हैं, जबकि उनके पास इस देह को मंदिर या घर बनाने की संभावना भी होती है। परमात्मा ने हमें मानव शरीर देकर संसार में भेज दिया। अब इसका उपयोग कैसे करना, यह हमारे ऊपर है। इसी शरीर से लोग आत्मा तक पहुंच जाते हैं, और इसी से आत्महत्या कर जाते हैं। चूहों की एक प्रजाति है लेमिंग। किवंदति है कि इस प्रजाति के चूहे समुद्र में कूदकर आत्महत्या ही करते हैं। तो क्या हम मनुष्य इस शरीर से ऐसा करेंगे? अपनी देह का दुरुपयोग धीमी आत्महत्या है।
कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि मैं किन-किन में किन रूपों में हूं। अपनी लगभग बयासी विभूतियां उन्होंने अर्जुन को बताई थीं। उनमें से एक में कहा था- 'नराणाम् नराधिपम् माम् विद्धि'। मतलब मनुष्यों में राजा मुझको जान। यदि कृष्ण की मानें तो उन्होंने मनुष्य को राजा कहा है। राजा यानी चरम सफलता। राजा मतलब कर्तव्य से सराबोर। जीवन में कुछ अनूठे काम करने वाले राजा बनते हैं, राजा होते हैं। तो परमात्मा ने स्वयं कहा है प्रत्येक के भीतर मैं हूं। मतलब एक संभावना है। इसलिए इस शरीर का जमकर सदुपयोग करिए। आत्महत्या नहीं, आत्मा को स्पर्श करने की सोच रखिए। ईश्वर द्वारा दिया गया क्या नहीं है इस देह में।
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