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- बच्चों की सुरक्षा हो
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राजस्थान में नौ साल के एक दलित छात्र की मौत ने समूचे देश को स्तब्ध कर दिया है. उसे उसके ही शिक्षक ने इतना पीटा कि मासूम की जान ही चली गयी. दुनिया के कई देशों में छात्रों को पीटने को दंडनीय अपराध माना जाता है. हमारे देश में भी लंबे समय से यह अभियान चल रहा है कि बच्चों के साथ मार-पीट अनुचित है. रिपोर्टों के अनुसार, इस मामले में जातिगत भेदभाव मुख्य कारक है. हालांकि घटना की सत्यता का पता तो जांच के बाद ही चलेगा, लेकिन इस सत्य से इनकार तो नहीं किया जा सकता है कि बच्चे की मौत हुई है और इस मौत का कारण शिक्षक द्वारा बेरहमी से की गयी मार-पीट है.
यह भी एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी दलित समुदाय और देश के नौनिहालों को सुरक्षा का भरोसा नहीं दिया जा सका है तथा उनके विरुद्ध अपराधों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. पिछले साल नवंबर में जारी आंकड़ों में बताया गया था कि 2018 से दलितों के विरुद्ध अपराध के 1.3 लाख से अधिक मामले सामने आये हैं. इसमें सबसे अधिक अपराध उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में दर्ज किये गये थे. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह भी जानकारी दी थी कि 2020 में अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय के विरुद्ध उत्पीड़न के लगभग 54 हजार मामले दर्ज किये गये थे.
वर्ष 2019 में यह आंकड़ा लगभग 50 हजार रहा था. विशेषज्ञों का मानना है कि अनेक राज्यों में चिकित्सकों और पुलिसकर्मियों की दबंगों से सांठगांठ के चलते बहुत सारे मामलों में या तो समझौता हो जाता है या फिर पीड़ित शिकायत ही नहीं दर्ज कराता. इस आधार पर कहा जा सकता है कि उत्पीड़न और अपराध के वास्तविक आंकड़े कहीं अधिक हैं. ऐसे में हमें जातिगत भेदभाव और शोषण पर अधिक से अधिक चर्चा करने तथा इसकी रोकथाम के उपाय करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. यही हाल बच्चों की सुरक्षा का भी है.
वर्ष 2020 में हमारे देश में हर दिन 350 से अधिक अपराध बच्चों के विरुद्ध हुए थे. वर्ष 2019 में यह आंकड़ा हर दिन 400 से अधिक था. हालांकि इसमें कुछ कमी दिख रही है, पर इसी अवधि में बाल विवाह में 50 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी. आज के डिजिटल युग में बच्चे भी ऑनलाइन दुनिया से जुड़े हुए हैं. इस क्षेत्र में भी उनकी सुरक्षा के चिंता गहरी होती जा रही है. वर्ष 2019 और 2020 के बीच बच्चों के विरुद्ध ऑनलाइन अपराध में 400 प्रतिशत की बहुत बड़ी वृद्धि हुई है.
अक्सर बच्चे ऑनलाइन या रोजमर्रा के जीवन में होने वाले दुर्व्यवहारों को समझ नहीं पाते या उनकी जानकारी बड़ों को नहीं देते. अगर पीड़ित बच्चा वंचित समुदाय से होता है, तो यह समस्या और गंभीर हो जाती है. केवल कानूनी और शासकीय प्रावधानों से हम वंचितों व बच्चों को सुरक्षा नहीं दे सकेंगे, हमें व्यक्तिगत और सामाजिक सुधार के लिए भी प्रयासरत होना होगा.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय
Tagsprotect children
Gulabi Jagat
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