सम्पादकीय

Pro Kabaddi: भारतीय मिट्टी में पनपा खेल अब दुनिया में फहरा रहा परचम, बेंगलुरू में जुटे सैकड़ों सितारे

Gulabi
22 Dec 2021 5:17 PM GMT
Pro Kabaddi: भारतीय मिट्टी में पनपा खेल अब दुनिया में फहरा रहा परचम, बेंगलुरू में जुटे सैकड़ों सितारे
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बेंगलुरू में जुटे सैकड़ों सितारे
वक्त के साथ प्राथमिकताएं बदली हैं, आगे बढ़ने के लिए अब भिड़ने की ही जरूरत होती है. बिना भिड़े जगह नहीं मिलती और शायद आगे बढ़ने का रास्ता भी नहीं. भारतीय मिट्टी की सोंधी महक से पनपा यह खेल अब आधुनिकता और टेक्नोलॉजी का खूबसूरत संगम बन गया है. गांव देहात मे समय काटने और मनोरंजन के लिए खेला जाने वाला कबड्डी अब दुनिया के सामने एक ऐसे पेशेवर खेल में तब्दील हो गया है, जिसमें रोमांच के साथ जज्बा तो है ही, कामयाबी का हर फॉर्मूला भी मौजूद है.
प्रो-कबड्डी का 8वां सीजन आज से बेंगलुरु में शुरू हो रहा है. अक्टूबर 2019 के बाद से कोरोना के चलते इसे आयोजित नहीं किया जा सका और इस बार भी हर कदम फूंक-फूंक कर रखा जा रहा है. दर्शकों की मौजूदगी इस बार नहीं होगी. एहतियात के तौर पर सभी मुकाबले एक ही जगह बेंगलुरु में खेले जा रहे हैं. जाहिर है इस मुश्किल समय में इसे कामयाबी के साथ पूरा करा लेना भी अपने आप में एक उपलब्धि है. 12 टीमें 138 मुकाबले खेलेंगी और उसके बाद तय होगा कि इस बार का खिताब किसके नाम होने वाला है.
प्रो-कबड्डी की शुरुआत से इस खेल के साथ बहुत कुछ खास हुआ है. इस खेल ने लोकप्रियता के मामले में भौगोलिक सीमाओं को तोड़ा है. कबड्डी का देसी नहीं बल्कि प्रसंस्कृत स्वरूप अब सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ने लगा है. आईपीएल आने के बाद से बड़ी संख्या में भारतीय क्रिकेटर्स को अच्छा खासा एक्सपोजर मिला है, जब आप विदेशी खिलाड़ियों के साथ ज्यादा खेलते हैं, तो एक दूसरे से बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है. कबड्डी में भी यही हुआ. ईरान सहित अन्य देशों के खिलाड़ी बड़ी संख्या मे प्रो-कबड्डी मे शामिल हुए और कबड्डी ने खास तौर पर एशिया में पैर पसारे. हालांकि ईरान हमेशा से यह दावा करता रहा है की कबड्डी का जन्म उसके देश में हुआ है और यह खेल उसे विरासत मे मिला है.
लेकिन हकीकत यही है कि ईरान ने पहली बार भारत को हराकर एशियन गेम्स का गोल्ड मेडल पहली बार जीता है. ईरान में कबड्डी तो पहले भी होती रही है, लेकिन नए नियमों और तरीके से उसे आत्मसात करने का मौका इन खिलाड़ियों को प्रो-कबड्डी लीग से ही हासिल हुआ है. जिस खेल में अर्जुन पुरस्कार विजेताओं को भी भारत में पहचान नहीं मिल पाती थी, वहां न सिर्फ भारतीय बल्कि कई विदेशी खिलाड़ी भी ऐसे हैं, जिनका नाम अब घर-घर पहचाना जाने लगा है.
भारतीय कबड्डी सितारों की फैन फॉलोइंग आसमान छू रही है. सोशल साइट्स पर उनके फॉलोवर्स की संख्या खासी है. आम तौर पर देहातों और कस्बों से निकले इन खिलाड़ियों का स्टेट्स अब किसी स्टार से कम नहीं है. उनके शरीर पर टैटूस दिखने लगे हैं, हेयर स्टाइल बदल गई है. पहला सीजन जब हुआ तो ऑक्शन मे सबसे बड़ी बोली भारतीय टीम के पूर्व कप्तान राकेश कुमार के लिए लगाई गई, जो 12 लाख से भी कम थी. लेकिन अब यह 1.5 करोड़ के आंकड़े को भी पार कर गया है. भारत में क्रिकेट के अलावा किसी और खेल खासकर कबड्डी के लिए इस राशि की शायद आज से 5 साल पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.
कबड्डी की अहमियत अब तक पब्लिक सेक्टर, रेलवे, सर्विसेस में नौकरी के लिए हुआ करती थी, लेकिन अब यह उस मुकाम से भी आगे निकल चुकी है. आज की तारीख मे पीकेएल मे शामिल खिलाड़ियों की औसत आमदनी को निकाली जाए तो संभवतः 25-30 लाख से कम नहीं होगी. 5वें सीजन से 4 और टीमों के जुड़ने की वजह से खिलाड़ियों का बैंक बढ़ा है. प्रो-कबड्डी के संचालक मशाल स्पोर्ट्स ने युवा खिलाड़ियों का एक अलग पूल तैयार किया है, जहां कबड्डी खिलाड़ियों की संभावनाओ को तराशने का काम किया जाता है. यह वो बैंक है, जिसके चलते लीग मे युवा और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की आमद का सतत प्रवाह कायम है.
दरअसल इंटरनेशनल कबड्डी फेडरेशन, भारतीय कबड्डी संघ की जुगलबंदी , मशाल स्पोर्ट्स और राइट्स होल्डर स्टार स्पोर्ट्स के बीच बेहतर तालमेल ने इस खेल को विकसित होने में मदद की. कबड्डी का खेल तो देश में पहले भी था, लेकिन उसे 40 मिनट के कंप्लीट पैकेज के तौर पर तैयार करने से उसके प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ी और धीरे-धीरे लीग के जरिए कबड्डी लोकप्रिय होती गई.
नए नियमों के साथ इस खेल की गति बढ़ाई गई और इसमे कामयाबी का हर फॉर्मूला जोड़ा गया. चमकती रोशनी, ध्वनि के दमदार एफेक्टस और कॉमेंट्री के जरिए लोग इससे जुड़ते चले गए. खेल का कम समय भी इसकी लोकप्रियता की बड़ी वजह बना. इस सीजन की खासियत यही है कि ज्यादातर टीमों का कोर हिला है. लीग के पिछले दो सीजन मे सुपर स्टार प्रदीप नरवाल अब पटना पायरेट्स में नहीं हैं. प्रदीप और पटना एक-दूसरे के पूरक रहे हैं. लगातार 5 सीजन पटना पायरेट्स और प्रदीप को एक साथ देखने की आदत सी हो गई थी, लेकिन इस बार उन्होंने यूपी योद्धा का दामन संभाला है. उनके बिना पटना पायरेट्स कम से कम कागज पर कमजोर दिखाई दे रही है.
पटना ने अब तक सबसे ज्यादा तीन खिताब जीते हैं. इसके अलावा यू मुंबा, जयपुर पिंक पैंथर्स, बेंगलुरु बुल्स और बंगाल वॉरियर्स को एक-एक खिताब मिला है. यू मुंबा का लीग के आरंभ में दबदबा रहा है, लेकिन इस बार फजल अत्राचली पर सारा दारोमदार है. तमिल थलाइवाज के पास डिफेंस में भले ही सुरजीत सिंह हों, लेकिन मध्यम स्तर के रेडर्स के चलते टीम का रास्ता आसान नहीं होगा. वैसे भी टीम किसी भी सीजन मे कुछ खास नहीं कर पाई है. सिद्धार्थ देसाई की मौजूदगी तेलुगू टाइटंस को मजबूती दे सकती है.
पिंक पैंथर्स की कमान दीपक निवास हुडा के हाथों है. दीपक एक बेहतरीन ऑलराउंडर हैं. डिफेंस में अमित हुडा और धर्मराज चेरलाथन की मौजूदगी का टीम को लाभ मिलेगा. राकेश कुमार की टीम पुणेरी पल्टन में, राहुल चौधरी और नितिन तोमर जहां रेडिंग डिपार्टमेंट को मजबूती देंगे, वहीं डिफेंस में विशाल भारद्वाज और बलदेव सिंह पर जिम्मेदारी होगी. डिफेंडिंग चैंपियन बंगाल वॉरियर्स ने मनिंदर सिंह को ही कप्तानी सौंपी है. हालाकि मनिंदर चोट के चलते 7वें सीजन के आखिरी मैच नहीं खेल पाए थे. बावजूद इसके बंगाल वॉरियर्स का खिताब जीतना काबिले तारीफ है. मनिंदर के अलावा सुकेश हेगड़े और रिशांक देवाडिगा रेडिंग संभालेंगे, जबकि डिफेंस मे रिंकू नरवाल रिटेन कर लिए गए और अबोजार मेघानी को अलग से शामिल किया गया. कुल मिलाकर बंगाल की टीम इस बार पहले से बेहतर दिखाई देती है.
अनिश्चितता प्रो-कबड्डी की सबसे बड़ी खासियत है और लोकप्रियता की वजह भी. किस सीजन मे कौन-सा साधारण प्लेयर असाधारण प्रदर्शन कर जाए कह पाना मुश्किल है. प्रदीप नरवाल, पवन सेहरावत, फजल अत्राचाली सबके साथ यही हुआ है. इंतजार कीजिए किसी नए सितारे के उभरने का या फिर प्रदीप, पवन और सिद्धार्थ की बादशाहत कायम रहने का.

संजय बैनर्जी
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