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सुरक्षा परिषद में नए भारत की मौजूदगी: आजादी के 75वें वर्ष में विश्व के सबसे ताकतवर मंच की अध्यक्षता गौरव को और बढ़ा देती है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| [ ऋतुराज सिन्हा ]: पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की उच्चस्तरीय खुली परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समुद्री सुरक्षा बढ़ाने और इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही कहा कि महासागर दुनिया की साझा विरासत और समुद्री मार्ग अंतरराष्ट्रीय व्यापार की जीवनरेखा हैं। उन्होंने समुद्री व्यापार और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान समेत पांच सिद्धांत भी पेश किए। पहला, हमें वैध समुद्री व्यापार के लिए बाधाओं को दूर करना चाहिए। दूसरा, समुद्री विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण तरीके से अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर किया जाना चाहिए। तीसरा, वैश्विक समुदाय को प्राकृतिक आपदाओं और आतंकियों द्वारा उत्पन्न समुद्री खतरों का एक साथ मिलकर सामना करना चाहिए। चौथा, समुद्री पर्यावरण एवं संसाधनों का संरक्षण किया जाना चाहिए और पांचवां समुद्री संपर्क को प्रोत्साहित करना चाहिए।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता की कमान पहली बार संभाली
यह पहली बार है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र की सबसे ताकतवर मानी जाने वाली संस्था यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता की कमान संभाली है। नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद बैठक की अध्यक्षता करने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं। भारत को एक अगस्त से महीने भर के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कमान मिली है। इस दौरान वह सुरक्षा परिषद में तीन बड़े मुद्दों-समुद्री सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय शांति और आतंकवाद रोकथाम के संबंध में कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। देश के लिए यह पल और भी गर्वित करने वाला बन जाता है, क्योंकि इसी साल हम अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। ऐसे समय में स्वतंत्रता दिवस की महत्ता बढ़ना स्वाभाविक है। इसी पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के दो साल भी पूरे हुए हैं। साथ ही अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाएं वापस लौट रही हैं और तालिबानी प्रभाव फिर बढ़ता दिख रहा है। ऐसे समय में दुनिया की निगाहें भारत पर हैं। वैसे समुद्री सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर भारत का सोच दुनिया के सामने जगजाहिर है। समुद्री सुरक्षा भारत की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल है। वहीं भारत शांतिरक्षकों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता रहा है। साथ ही आतंकवाद की रोकथाम के प्रयासों पर भी लगातार बल देता रहा है। भारत हर तरह के आतंकवाद का विरोध करता है। इसलिए अध्यक्षता के नाते भी भारत पहले की तरह ही सुरक्षा परिषद के भीतर और बाहर इस मुद्दे को लेकर अपने रुख पर कायम रहेगा। वास्तव में आज नए भारत का नया नेतृत्व सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि दुनिया का भी नेतृत्व करने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है। इसने दुनिया को यह भी अहसास करा दिया है कि राष्ट्रीय हितों से कभी कोई समझौता नहीं होगा। आज भारत का युवा क्षमता, तकनीक कौशल, विशेषज्ञता और दृढ़संकल्प से भरा हुआ है। वह जो ठान लेता है, उसे पूरा करके ही दम लेता है। ऐसे में दुनिया को भारत के अनुकूल नीति और सोच बनाना होगा।
अस्थायी सदस्य के तौर पर भी भारत की धमक दुनिया महसूस कर रही
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को भले स्थायी सदस्यता नहीं मिल पाई है, लेकिन अस्थायी सदस्य के तौर पर भी भारत की धमक दुनिया महसूस कर रही है। इस संस्था के गठन का उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद देशों के बीच शांति, सुरक्षा और मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना था। संयुक्त राष्ट्र के छह अहम अंगों में सुरक्षा परिषद भी एक है। दुनिया भर में शांति स्थापित करने में इस संस्था की भूमिका अहम होती है। इसमें अब कुल 15 सदस्य होते हैं, जिनमें से पांच स्थायी सदस्य के तौर पर-अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन शामिल हैं, जिनके पास विशिष्ट वीटो पावर है जबकि शेष 10 सदस्यों का चयन क्षेत्रीय आधार पर किया जाता है। पांच सीटें अफ्रीका और एशियाई देशों के लिए, एक पूर्वी यूरोपीय देशों, दो लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों और दो पश्चिमी यूरोपीय तथा अन्य देशों को दी जाती हैं। हर दो साल पर पांच नए सदस्यों का चुनाव किया जाता है। किसी भी देश को सदस्य तब बनाया जाता है जब दो-तिहाई देश उसके पक्ष में मतदान करें।
मोदी की दूरदर्शिता ने दुनिया को दी नई दिशा दी
बीते वर्ष जब दुनिया कोविड महामारी से जूझ रही थी, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता ने उसे नई दिशा दी थी। अचानक आई आपदा से निपटने के लिए किए गए उपायों से देश में कोविड का शुरुआती प्रभाव कम पड़ा। इस दौरान पीएम मोदी ने वर्चुअल मीटिंग का आइडिया दुनिया को दिया था। उनके दूरगामी सोच का ही परिणाम था कि भारत को दो साल के लिए संयुक्त राष्ट्र की सबसे अहम सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के तौर पर आठवीं बार चुना गया। कोविड के दौर में इस तरह की जीत भारत की बढ़ती वैश्विक शक्ति को दर्शाने वाली रही। इसके लिए 192 देशों में से 184 देशों ने भारत के पक्ष में मतदान किया। इस जीत के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच 'स' हैं, जिसने भारत की समग्र विदेश नीति को नई दिशा भी दी है। ये पांच 'स' हैं-सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति और सार्वभौमिक समृद्धि। हालांकि सिर्फ कूटनीतिक अभियान ही नहीं, कोविड काल में वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
दो साल के कार्यकाल में दो बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता का मौका मिलेगा
देखा जाए तो अभी तकनीकी आधार पर भारत को अपने दो साल के कार्यकाल में दो बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता का मौका मिलेगा, क्योंकि नियम के मुताबिक अंग्रेजी नाम के आधार पर सदस्य देशों को हर महीने अध्यक्षता का मौका मिलता है। इसमें दोराय नहीं कि मोदी सरकार इस मंच का देश और दुनिया के हित में भरपूर उपयोग करेगी। कुल मिलाकर यह भारत के लिए प्रफुल्लित होने का अवसर है।