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- तारीफ सिर्फ खुशामद...
पूनम पांडे: संसार भर के सारे चिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों और दार्शनिकों का यही मानना है कि एक ऐसा वाक्य, जिसमें सच्ची तारीफ हो, वह अवसाद भरे दिल को फिर से उत्साहित और तरंगित बना देता है। मनोवैज्ञानिक दावे से कहते हैं कि एक छोटे-से वाक्य 'आपने यह अच्छा किया' में एक अनिर्दिष्ट शक्ति होती है जो किसी टानिक की तरह असर करती है। आपने अक्सर गौर किया होगा कि युद्ध के मोर्चे पर जवानों को 'शेरदिल बहादुर' कहा जाता है और उनके दमखम की सराहना करते ही जवान पसीना पोंछकर फिर से डट कर खड़ा हो जाता है। खिलाड़ी भी अपने टीम लीडर की केवल तारीफ भरी नजर से दुगनी ऊर्जा पा लेते हैं और कई बार हारी हुई बाजी जीत लेते हैं।
तारीफ क्या है? कुछ शब्दों का सही जगह पर सही मन से सही इस्तेमाल। अपने आसपास किसी निराश और उदासमना को कुछ पल का स्रेहिल वार्तालाप दिया जाए तो यह उसकी मनोदशा को भी सुधार सकता है। एक अध्ययन में कहा गया है कि जो लोग नियमित रूप से एक-दूसरे को अच्छा भाव भरकर प्रशंसा वाली प्रतिक्रिया देते हैं, वे दूसरों से अधिक आत्मविश्वास से भरे रहते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी सराहना का बहुत महत्त्व है। किसी की तारीफ करना आशावादी होने का प्रतीक है। इसी कारण सामाजिक संबंधों को सशक्त बनाने में भी इसकी लोकप्रियता बहुत ज्यादा है।
यों ज्यादातर लोगों के लिए एक सराहना भरा वाक्य बस एक सामान्य घटना है। पर इसका स्रोत कोई निरंतर बहता प्रेम झरना है जो दो आत्माओं के साथ झर-झर कर बह रहा है। कुछ पल के बाद जब संवेदनशीलता का यह दस्तूर पूरा हो जाता है, तब भी वह भाव तो वहां रह ही जाता है। जैसे हवा कभी खिले हुए फूल को छूकर गुजर जाती है, तो आगे जाने पर भी उसकी बदली-बदली महक में वह फूल देर तक रहता है। किसी की सच्चे मन से प्रशंसा के बाद भी जो बचा रह जाएगा, वह है अनुभूति। यह अहसास सर्वव्यापी है। हारे हुए की भीतरी ताकत को समझाने के लिए जरूरी है उसके व्यक्तित्व के अच्छे पक्ष को समझना और फिर औषधि रूप मे तारीफ करके उसके जज्बे को जगा देना। सच्ची और सही तारीफ को न केवल देखा जा सकता है, बल्कि अनुभूत भी किया सकता है।
यह केवल किसी को प्रसन्न करने की कला नहीं है, बल्कि ये विशुद्ध विज्ञान भी है। एक छोटी-सी तारीफ सुनकर एक निराश मन में सकारात्मक हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं। आनंद बढ़ने से शरीर की लगभग एक सौ पचास मांसपेशियां सक्रिय होती हैं। तो यह एक तरह का मानसिक व्यायाम भी है। इस संदर्भ में जितने शोध हुए हैं, उनमें ये बातें सामने आर्इं कि जिनके जीवन में नियमित संघर्ष भले ही अनगिनत हों, पर प्रशंसा करने वाले हितैषी उनको अच्छी बात कह कर दूसरों के मुकाबले ज्यादा खुश और सेहतमंद रहने में सहायक होते हैं।
ऐसे सामाजिक संबंध तनाव से भी बचाए रखते हैं। यह तो सिद्ध हो चुका है कि कोई सकारात्मक बात कहने और सुनने से दिमाग में तनाव के लिए जिम्मेदार कोरटिसोल हार्मोन कम होता है और सिरोटोनिन का स्तर बढ़ता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह रहा कि इससे जादुई खुशी मिलती है और कोशिश करने को मन तैयार हो जाता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है, जिससे निराश और हताश शरीर आसानी से संक्रमण की चपेट में नहीं आता है। एक ऐसे समूह में रहने वाला खुद भी औरों की सराहना करना सीखता है और ऐसे गुणवत्ता वाले तौर-तरीके का पालन करने से शरीर में सेहत के लिए जिम्मेदार माने जाने वाला हार्मोन आक्सिटोसिन के स्तर में इजाफा होता है।
सच यह है कि हर तारीफ का मतलब खुशामद नहीं होता। यह किसी से लगाव और अपनापन प्रदर्शित करने का खूबसूरत माध्यम भी है। कई बार तो सार्वजनिक रूप से की गई स्रेहिल प्रशंसा बहुत प्रेरणा दे जाती है। अगर सहज ही निष्कपट भाव से सराहना हो तो तारीफ एक अनोखी परिवर्तक भी है। समाज में किसी भी तरह की सकारात्मक सहभागिता एक अच्छी आदत है, जिसके लिए मन, वचन और कर्म सहित जीवन के हरेक पहलू में सदैव सच्चाई और भरोसेमंद होना शामिल है। अच्छा काम करने पर तारीफ करना एक निशुल्क, आसान पर उपयोगी तरीका है, क्योंकि समाज यानी जहां सब परिवार की तरह हों, यह भरोसे पर आधारित नैतिक कुटुंब जैसा होता है।
किसी का प्रशंसक होना भी बुरे कार्यों और गलत आचरण से मुक्त करने का मार्ग होता है। मगर तारीफ की भी एक शर्त और घोषणा है कि जिंदगी को 'रिचार्ज' करती हुई प्रशंसा कहती है कि मुबारक हो सराहना और जुड़ाव की ऊष्मा। मनुष्य तुम समाज में एक दूसरे को संभालने के लिए ही जन्मे थे, सदा संग-संग रहोगे। कुदरत के किसी चुनौतीपूर्ण समय में भी तुम किसी की पीठ थपथपाकर ऐसे जादूगर बन जाओगे, जैसे आसमान का चांद सागर में उतर आता है। समाज में उल्लास में रहो, पर ध्यान रहे किसी के व्यक्तित्व की निजता मत हड़प जाओ।