सम्पादकीय

पुलिस और सियासत

Gulabi Jagat
8 May 2022 5:32 AM GMT
पुलिस और सियासत
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ओपिनियन
By सच कहूँ न्यूज।
दिल्ली भाजपा के नेता तजिन्दर बग्गा को पंजाब पुलिस ने गिरफ्तार किया, जिसके बाद दिल्ली और हरियाणा पुलिस भी चर्चा में आ गई। पंजाब पुलिस ने बग्गा को गिरफ्तार किया तो दिल्ली पुलिस इसे किडनैपिंग मामला बता बग्गा को ढूंढने निकल पड़ी फिर हरियाणा पुलिस ने दिल्ली पुलिस की मदद की और बग्गा को पंजाब पुलिस से बरामद कर दिल्ली पुलिस को सौंप दिया। शायद ही कभी इतनी संख्या के राज्यों की पुलिस एक मामले पर इतनी सक्रियता से उलझी हो। ऐसा लग रहा है जैसे पंजाब और दिल्ली का सबसे बड़ा मुद्दा तजिंदर सिंह बग्गा की गिरफ्तारी है। बग्गा का गिरफ्तारी होना या उसकी गिरफ्तारी रोकना पेट्रोल पंपों पर लूटपाट, बैंक डकैतियां, गैंगस्टरों की हिंसा की घटनाओं से कहीं बड़ा हो गया है।
बग्गा के पकड़े जाने या न पकड़े जाने से देश का विकास नहीं होगा और न ही यह देश के लिए यह कोई बड़ी उपलब्धि होगा। बहुत हैरानी की बात है कि शहरों में रोजाना अपराध बढ़ रहे हैं, आम लोगों से फोन-जेवरात छीनने की घटनाएं आम हो गई हैं जिनकी रिपोर्ट दर्ज करवाने के लिए लोगों को पता नहीं कितनी बार थानों के चक्कर काटने पड़ते हैं। कई बार तो राजनीतिक पहुंच भी करनी पड़ती है लेकिन जब मामला राजनीतिक खींचतान का हो तब पुलिस तुरंत हरकत में आती है और अपने हुक्मरानों की कही बात पर अमल करती है। ऐसी खींचतान में कानून, नियम किसी को याद नहीं रहते। अपने ही बनाए कानून का अपमान किया जाता है।
नियम तो केवल आम व्यक्ति के लिए रह जाते हैं। इस मामले में पिछले सालों में पंजाब में एक अनोखी घटना सामने आई जब एक व्यक्ति की हत्या कर शव सुनसान जगह पर फेंक दिया। एक जिला की पुलिस पहुंची तो अफसरों ने बहुत बारीकी से जांच की और कहा कि व्यक्ति की मौत सिर में चोट लगने से हुई। पुलिस का मानना था कि सिर और शरीर अलग-अलग जिलोें में पड़ते हैं। पुलिस अधिकारियों ने पटवारी को बुलाकर इसमें रिपोर्ट तैयार करवाई कि सिर किस जिला की जमीन में है। इस माथापच्ची में पुलिस ने पूरा दिन निकाल दिया। अब तजिन्दर बग्गा कहां से गिरफ्तार हुआ, कैसे हुआ, कहां जाएगा यह भी एक नाटक बन गया है।
किसी भी राज्य की पुलिस ऐसी नहीं जिसे कानून का न पता हो कि गिरफ्तारी कैसे जायज होती है और कैसे नाजायज। फिर भी राजनीतिक लोगों द्वारा अपना नाक बचाने के लिए कानून से धक्केशाही की जोरअजमाइश है। आखिर सच्चा कौन और झूठा कौन यह भी सामने आ जाएगा लेकिन यह घटना पुलिस के राजनीतिकरण की एक और बुरी मिसाल जरूर बन गई है। यह मामला राजनीतिक नेताओं की तंग और स्वार्थी सोच का परिणाम है। ऐसे नकारात्मक घटनाक्रम देश के विकास में रोड़ा बनते हैं, जिससे बाहर निकलने की आवश्यकता है। पुलिस ही चोर, पुलिस ही रखवाली अजीबोगरीब दृश्य देश के इतिहास में।
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