सम्पादकीय

कानून से खिलवाड़ चौटाला की शुरू से आदत रही है, पर अब कैसे कानून का शिकंजा उन पर कसता जा रहा है?

Gulabi Jagat
24 May 2022 5:48 AM GMT
कानून से खिलवाड़ चौटाला की शुरू से आदत रही है, पर अब कैसे कानून का शिकंजा उन पर कसता जा रहा है?
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हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला जीवन शुरू से ही जीवन विवादों से घिरा रहा है
अजय झा |
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) जीवन शुरू से ही जीवन विवादों से घिरा रहा है. कानून तोड़ना मानो उसके व्यक्तिव का एक अभिन्न हिस्सा रहा है. बस अंतर सिर्फ इतना है कि पिछले कुछ समय से कानून का शिकंजा उन पर कसने लगा है. पिछले वर्ष जुलाई में ही वह 8 साल जेल में बिताने के बाद बाहर आए थे और एक बार फिर से वह जेल जाने की दहलीज पर खड़े हैं. 26 मई को दिल्ली की एक अदालत (Delhi Court), जिसने 21 मई को उन्हें आय से अधिक संपत्ति केस में दोषी करार दिया था, उनके सजा की अवधि पर निर्णय सुनाएगी. चौटाला के पिता चौधरी देवीलाल 1977 में पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने और उनके बड़े बेटे ओम प्रकाश सरकारी कामकाज में दखल देने लगे, पर 1977 की एक घटना के बारे में आज भी लोग दबी जुबान में चर्चा करते हैं.
1977 में जब देवीलाल जनता पार्टी के मुख्यमंत्री बने तो उनके मंत्रिमंडल में सुषमा स्वराज नाम की एक लड़की जो मात्र 25 साल की उम्र में विधायक चुन कर आई थी, को देवीलाल मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया. कहा जाता है कि स्वराज देवीलाल से मिलने उनके आवास पर गई थीं. देवीलाल वहां नहीं थे और उनकी मुलाकात चौटाला से हुई. आरोप है कि चौटाला ने सुषमा स्वराज से कुछ बदतमीजी की. मामले को दबा दिया गया, पर स्वराज इस घटना को कभी नहीं भूल सकी. जब तक वह हरि याणा में बीजेपी की प्रभारी रहीं. उन्होंने बीजेपी और चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल का सौझौता नहीं होने दिया. स्वराज जीवन के आखिरी क्षण तक चौटाला से नफरत करती रहीं. 1977 की घटना से देवीलाल चौटाला से काफी नाराज थे, पर 1978 में फिर एक ऐसी घटना हो गई, जिसे रफादफा नहीं किया जा सकता था.
चौटाला विदेश घुमने गए थे और वापसी में लगभग एक लाख रुपयों मूल्य की घड़ियों के साथ लौटे. बिना कस्टम को बताए या कस्टम की फीस दिए वह दिल्ली एयरपोर्ट से बाहर जाने की कोशिश कर ही रहे थे कि कस्टम के एक अधिकारी ने उन्होंने रोक लिया, उनके पास से घड़ियां बरामद हुईं और चौटाला को तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. बात मीडिया में आ चुकी थी, इसलिए इसे दबाया भी नहीं जा सकता था. चौटाला ने सफाई दी कि वह घड़ियां अपने रिश्तेदारों को तोहफा देने के लिए लाए थे और उन्हों नहीं पता था कि उस पर कस्टम का शुल्क भी लगता था. खैर कस्टम को पैसे दे कर घड़ियां और चौटाला तो छूट गए, पर देवी लाल का सब्र का घड़ा फुट चूका था. उन्होंने सार्वजानिक रूप से चौटाला कोअस्वीकारकर दिया.
पर पिता का दिल को पिता का ही होता है, देवीलाल का दिल पसीज गया. अपने बड़े बेटे से उन्हें प्यार भी था और कहीं ना कहीं उनकी अपाहिजता के लिए वह अपने को दोषी मानते थे क्योकि बचपन में ही ओम प्रकाश लकवे का शिकार हो गए थे. 1989 में जब देवीलाल विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में उपप्रधानमंत्री बने तो उन्हें हरियाणा के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा. देवीलाल के चार बेटे थे ओम प्रकाश, प्रताप सिंह, रंजीत सिंह और जगदीश चन्द्र. जगदीश की राजनीति में रुचि नहीं थी और उनका निधन भी कम उम्र में ही हो गया था. देवीलाल को पता था कि उनके दो बेटों ओम प्रकाश और रंजीत में बनती नहीं थी. एक नीति के तहत उन्होंने ओम प्रकाश को राज्यसभा का सदस्य बना दिया और रंजीत विधायक बने तथा अपने पिता के मंत्रिमंडल में मंत्री भी.
देवीलाल ने जब मुख्यमंत्री पद छोड़ा तो सभी को उम्मीद थी कि रंजीत सिंह को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, पर देवीलाल ने ओम प्रकाश को अपना उत्तराधिकारी चुना. दिसम्बर 1989 में ओम प्रकाश चौटाला पहली बार मुख्यमंत्री बने और रंजीत सिंह को राज्य सभा का सदस्य बनाया गया. चौटाला उस समय हरियाणा विधानसभा के सदस्य नहीं थे और किन्ही कारणवश सही समय देवीलाल की सीट महम में उपचुनाव नहीं हो पाया. 6 महोनों का समय निकल गया और चौटाला को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. और वह कारण था महम विधानसभा उपचुनाव में हुई हिंसा, जिसके कारण चुनाव को रद्द करना पड़ा था. महम में उपचुनाव 27 फरबरी 1990 को हुआ.
चौटाला को उम्मीद थी कि वह वहां से निर्विरोध चुन लिए जाएंगे, पर उनके पिता के करीबी माने जाने वाले युवा नेता आनंद सिंह डांगी ने वहां पंचायत के उम्मीदवार के तौर पर अपना पर्चा भरा जिसके बाद चुनाव काफी कांटे को हो गया. 27 फरवरी को हुए चुनाव में काफी धांधलियो का आरोप लगा, लिहाजा चुनाव आयोग ने 28 फरवरी को 8 मतदान केन्द्रों में दुबारा मतदान का आदेश दिया. मतदान भयानक हिंसा के बीच हुआ जिसमे 10 लोंगों की हत्या हो गई. आरोप था कि अपनी हार के डर से चौटाला ने चुनाव में धांधली करने का आदेश दिया था और उनके छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला के नेत्रित्व में गुंडों ने गांववालों को डराया-धमकाया और बोगस वोटिंग की, जिस कारण चुनाव आयोग ने महम चुनाव को कैंसिल कर दिया. नए सिरे 21 मई को चुनाव कराने की घोषणा हुई.
चौटाला के लिए एक और सीट उचाना कलां खाली कर दी गई थी पर वह जिद पर अड़े थे कि चुनाव वह महम से ही लड़ेंगे. इस बार उपचुनाव में चौटाला और डांगी के अलावा निर्दलीय अमीर सिंह भी मैदान में आ गए. ख़बरों का बाजार गर्म था कि अमीर सिंह को चौटाला ने खड़ा किया है. चुनाव के कुछ दिन पहले ही ऐसा लगने लगा था कि चौटाला शायद चुनाव हार जाएंगे. जिस सीट पर पिता देवीलाल लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हों, वहां से चौटाला को पराजय स्वीकार नहीं थी . और चुनाव के ठीक पांच दिन पहले यानि 16 मई को अमीर सिंह की लाश मिली. एक उम्मेदवार कि मृत्यु की वजह से चुनाव फिर से स्थगित हो गया.
चूंकि चौटाला मुख्यमंत्री थे, अमीर सिंह कि हत्या का आरोप आनंद सिंह डांगी पर लगाया गया और जब पुलिस डांगी को गिरफ्तार करने पहुंची तो गांववालों और पुलिस के बीच टक्कर हो गई, जिसमे पुलिस के गोली से तीन गांववाले मारे गए. डांगी पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहे. पर चौटाला की महम से चुनाव लड़ने की जिद और हार की डर के कारण महम महाभारत का कुरुक्षेत्र बन गया जहां 13 लोगों को जान गवानी पड़ी.
क्योकि चौटाला विधायक नहीं चुने गए थे और प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह पर महम कांड एक धब्बा बन गया था, उनके दबाब में चौटाला को 22 मई 1990 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. वैसे भी बिना विधायक बने कोई भी व्यक्ति सिर्फ 6 महोनों तक ही मुख्यमंत्री या मंत्री रह सकता है और 2 जून को वैसे भी चौटाला को पद छोड़ना ही पड़ता. पर चौटाला को महम कांड के आरोपी के रूप में इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह बनारसी दल गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया.
महम में तीसरी बार चुनाव हुआ और इस बार चौटाला ने वीपी सिंह के दबाब में चौटाला को महम से नहीं उतरा गया. डांगी जो अब कांग्रेस पार्टी में शामिल हो चुके थे कि चुनाव में जीत हुई और चौटाला उचाना कलां से उपचुनाव जीत कर विधायक बने. आनन्-फानन में देवीलाल ने बनारसी दल गुप्ता को हटा कर चौटाला फिर से 12 जुलाई को मुख्यमंत्री बना दिया. मीडिया में सवाल उठने लगा कि कैसे महम कांड का आरोपी को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. वीपी सिंह को यह मंज़ूर नहीं था और वीपी सिंह और देवीलाल के बीच ठन गई. 5 दिन बाद यानी 17 जुलाई को चौटाला को फिर से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह हुकम सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया.
अपने बेटा को मुख्यमंत्री बनाने की जिद कर कारण देवीलाल चंद्रशेखर खेमे में चले गए और वीपी सिंह सरकार का पतन हो गया, जो प्रजातंत्र के मुहं पर एक तमाचा सा था. पर बाप बेटा सफल रहे और चौटाला तीसरी बार 1991 में मुख्यमंत्री बने, पर इस दफा सिर्फ 14 दिनों के लिए. केंद्र में नरसिम्हा राव के नेत्रित्व के कांग्रेस पार्टी की सरकार बन चुकी थी. उन्हें बर्खास्त कर दिया गया और हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लग गया. 2001 में देवीलाल का निधन हो गया और चौटाला को फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए 8 वर्षों तक इंतज़ार करना पड़ा और वह भी बीजेपी के सहयोग से, तब जबकि बीजेपी ने सुषमा स्वराज की जगह नरेन्द्र मोदी को हरियाणा का प्रभारी बनाया. पर कानून और नियमों से खिलवाड़ करने की चौटाला को ऐसी लत लग चुकी थी कि भविष्य में उन्हें इसकी कीमत चुकानी ही पड़ी.
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