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सुधीश पचौरी; एक शाम एक चैनल पर सारे मुसलिम प्रवक्ता बैठे ही थे कि उनमें भी लठ्ठम-लठ्ठ होती दिखी! अजमेर शरीफ के खादिमों की भूमिका को लेकर कुछ अतिवादी थे, कुछ नरमवादी!
फिर एक दिन 'वीएचपी' ने हिंदुओं की हिफाजत के लिए 'नेशनल हेल्प लाइन' घोषित करके बड़ी खबर बनाई। एक एंकर ने 'धर्मोरक्षति रक्षित:' क्या कह दिया कि एक मुसलिम प्रवक्ता एंकर से ही भिड़ गए कि आप भाजपा के प्रवक्ता की तरह ही बोल रहीं हैं!
एंकर ने कहा कि आप मेरे साथ इस तरह की बदतमीजी न करें। एक की भावनाएं आहत होती हैं तो दूसरे की भी होती हैं! एक चर्चक ने कहा कि बाकी समुदायों में भी ऐसी हेल्पलाइनें पहले से हैं, तब वीएचपी ने भी बना ली तो क्या गुनाह?
फिर एक दिन का 'टीवी अमरत्व' पाने वाली लीनाजी तो अपनी 'सिगरेटवादी बदतमीजी' के कारण कुछ एफआइआर दर्ज करवा के चर्चा से बाहर हो गर्इं, लेकिन एक ट्वीटवादी सांसदा जी अपनी पर ही अड़ी रहीं!
कुछ 'कायल' करते रहे कि जब धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने के लिए भाजपा ने 'उसे' हटाया, तो 'इनको' क्यों नहीं निकालते? उनकी पार्टी 'उनको' फिर भी बचाती रही! इन दिनों 'विचार' और 'खुन्नस' में कोई फर्क नहीं बचा है!
फिर एक दिन अमरनाथ यात्रा के ऊपर फटे बादल ने टीवी चैनलों को अमरनाथ में तैनात कर दिया और वे आस्था, त्रासदी और सेना के बचाव कार्यों की कहानी दिखाते रहे कि 'इतने' मरे, 'इतने' लापता फिर आधिकारिक घोषणा आई कि 'इतने' मरे, 'इतने' घायल और यात्रा फिर से शुरू! कुछ भक्त गुफा के आगे 'बर्फानी बाबा' के दर्शन करते भी दिखे।
फिर एक शाम 'ऐमनेस्टी' की 'ठुकाई' के नाम रही। चैनलों में आरोप रहा कि यह संस्था भारत-विरोधी काम में संलिप्त नजर आती है। इसके पास 'इक्यावन करोड़' का फंड कहां से आया? इस पर एक पैनलिस्ट ने बताया कि इक्यावन करोड़ तो इनके लिए 'इकन्नी दुअन्नी' है। कई विदेशी अरबपति इस पर मेहरबान हैं।
इनको पैसे की क्या कमी? इनसे लटियनिए भी जुड़े रहते हैं! फिर एक दिन भैया जी की ट्वीट ने ज्ञान बढाया कि शिंजो आबे को एक रिटायर्ड 'अग्निवीर' ने मारा! हाय! कैसी निष्ठुर 'अन्योक्ति' कि जैसा वहां हुआ, वैसा यहां भी…
फिर चैनलों पर 'श्रीलंका-संकट' को 'लाइव' देखते हुए अपने महाज्ञानी कहने लगे कि कहीं भारत भी श्रीलंका न बन जाए, जबकि 'दुश्मनों' की चर्चाओं ने भी सिद्ध किया कि भारत और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में जमीन आसमान का फर्क है! लेकिन, इस नकली 'हमदर्दी' की 'बेदर्दी' देखिए: श्रीलंका बन गया तो 'रावण' तो गया न! तब तो आप ही आप होंगे!
तब भारत की 'श्रीलंकाई परिणति' पर इतना दर्द क्यों? फिर एक दिन यूएन की जनंसख्या रिपोर्ट और उस पर योगी की टिप्पणी ने दो दिन की 'हाय-हाय' करवाई। एक कहिन कि 'यहां जनसंख्या नियंत्रण जरूरी' तो विपक्षी बोले कि यह 'एक समुदाय को निशाना बनाना है!'
इसके बाद नए संसद-सौंध के शीर्ष पर प्रधानमंत्री द्वारा कांसे के बने नए 'अशोक स्तंभ' की पूजा और स्थापना किए जाने पर फिर एक दिन की 'कलात्मक हाय-हाय' हुई! विपक्षी कहिन कि ये सिंह बड़े ही आक्रामक और खूंखार हैं, दांत लंबे हैं। फिर एक कहिन कि स्थापना का काम सभापति का था, राष्ट्रपति का था, प्रधानमंत्री ने क्यों किया? फिर एक कहिन कि सब दलों को बुलाते, सब धर्मों के पुजारियों से पूजा कराते!
एक प्रवक्ता ने हंसते हुए कहा कि यह स्तंभ मूल का तीन गुना है। फिर,'जाकी रही भावना जैसी'। तो भी ये 'सिंह' क्या पालतू बिल्ली की तरह 'म्याऊं म्याऊं' करते दिखने चाहिए थे? एक बड़े वकील ने साफ कहा कि विपक्ष अक्सर तुच्छ मुद्दों पर हाय-हाय करता है। 'सिंह' हमेशा 'शक्ति, साहस और निर्भीकता' का प्रतीक होता है, जो कि ये चारों सिंह हैं!
फिर एक दिन आइएसआइ को रिपोर्ट करने वाले पाक पत्रकार नुसरत मिर्जा ने खबर दी कि वह भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति के बुलावे पर भारत आता था। पूर्व-उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे उसे जानते तक नहीं, फिर भाजपा प्रवक्ता ने एक फोटो में उनको उसके संग बैठे दिखाया।
इसी क्रम में एक दिन पटना के फुलवारी शरीफ में 'पीएफआइ- एसडीएफआइ' के दो मुसलिमों की गिरफ्तारी ने 'गजवा-ए-हिंद' की योजना का पर्दाफाश कर दिया कि अगर दस फीसद मुसलमान मिल जाएं तो हम 2047 तक सारे इंडिया को 'इस्लामिक स्टेट' बना देंगे! इसी बीच एक बड़े पुलिस अफसर ने पीएफआइ की तुलना संघ से कर दी, तो पीएफआइ पर 'बैन' की बात भी 'बट्टे खाते' में जाती दिखी!
लेकिन सबसे अद्भुत रहा 'असंसदीय पदावली' विवाद! सवाल हुआ कि 'जोक', 'ब्राइब','क्रोनी' 'रिश्वत', 'भ्रष्ट' जैसे हजारों शब्द अगर 'अंससदीय' हैं, तब सरजी संसद में कोई बोलेगा क्या और ससंदीय कार्यवाही को देखेगा कौन?