सम्पादकीय

बिहार में फिर 'पलटू राज'

Subhi
10 Aug 2022 4:12 AM GMT
बिहार में फिर पलटू राज
x
क्या गजब की ‘आशिक’ मिजाजी है जनाब नीतीश कुमार की कि सुबह को जिस ‘माशूक’ पर जान फिदां करते हैं शाम होने तक उसे छोड़ कर दूसरे माशूक की ‘जां निसारी’ की कसमें खाने लगते हैं।

आदित्य चोपड़ा: क्या गजब की 'आशिक' मिजाजी है जनाब नीतीश कुमार की कि सुबह को जिस 'माशूक' पर जान फिदां करते हैं शाम होने तक उसे छोड़ कर दूसरे माशूक की 'जां निसारी' की कसमें खाने लगते हैं। हुजूर ने पूरे हिन्दोस्तान की सियासत में अपनी दिल फरेबी की ऐसी 'नजीर' पेश की है कि 'जम्हूरियत' भी जम्भाई लेते हुए कहने लगे कि जालिमों जरा सांस तो पूरी होने दो फिर बताऊं 'जलजला' किस तरफ आयेगा! बिहार जिसे एक जमाने में राजनीति की प्रयोगशाला कहा जाता था ऐसे ऐसे मंजर पेश कर रहा है कि बजाय 'इतवार' के 'जुम्मे' की स्कूली छुट्टी हो रही है। सुना है कि नीतीश बाबू की नई सरकार में अब इत्तेहादे मुसलमीन का नुमाइन्दा भी वजीर बनाया जायेगा। क्या किस्मत पाई है बिहार ने कि 'जिन्ना' का 'जिन' करवट बदल-बदल कर जुम्मे की अजान सुन रहा है। खैर यह तो बात है नीतीश बाबू की अन्दाजे सियासत की''दर पे रहने को कहा और कह के कैसा फिर गयासंपादकीय :आजादी के अमृत महोत्सव का उत्साह देखते ही बनता है.......पदकों की बरसात लेकिन कसक बाकीउलझन में फंसे 'नीतीश बाबू'संघ के खिलाफ दुष्प्रचारचीनी जासूस जहाज का पंगाममता बनर्जीः अर्श से फर्श तकजितने अरसे में मेरा 'लिपटा' हुआ 'बिस्तर' खुला।'' मगर यार लोगों को देखिये कि नीतीश बाबू की इन दिलकश 'पलटियों' पर कैसे-कैसे कसीदे काढ़ रहे हैं। कुछ कह रहे हैं कि वह 2024 में समूचे विपक्ष के संयुक्त प्रधानमन्त्री उम्मीदवार हो सकते हैं तो कुछ कह रहे हैं कि अगस्त क्रान्ति का पुनः बिगुल बजा दिया है। इन अक्ल के बादशाहों को कोई समझाये कि यह नीतीश कुमार की अपने वजूद की आखिरी लड़ाई है। मौजूदा भारत की राजनीति के चमन में नीतीश बाबू की हैसियत अब किसी पतझड़ के फूल से बेहतर नहीं हैं क्योंकि उन्होंने समझ लिया है कि उनके घर (जनता दल-यू) का सारा असबाब या सामान लुट चुका है। उन्होंने फिर से कांग्रेस और लालू जी की पार्टी 'राष्ट्रीय जनता दल' को अपनी बैसाखी बनाया है। क्या बार-बार जनादेश का अपमान करना कोई क्रान्ति या इंकलाब होता है? सही मायनों में कहा जाये तो यह जनता के साथ विश्वासघात या धोखा होता है । केवल सत्ता की खातिर लोकतन्त्र की मालिक कही जाने वाली जनता के साथ धोखा करना राजनीति में ऐसा अपराध होता है जिसकी सजा बहुत पहले नीतीश कुमार के राजनीतिक आदर्श स्व. जयप्रकाश नारायण ने ही यह तय की थी कि 'जनता को अपने चुने हुए प्रतिनिधियो को वापस बुलाने का भी अधिकार होना चाहिए।'नीतीश बाबू जेपी आन्दोलन की उपज ही तो बताये जाते हैं! फिर इस पर तुर्रा यह है कि हुजूर जिन्दगी भर लालू जी के शासन को 'जंगल राज' की उपमा से नवाजते रहे और खुद 'सुशासन बाबू' बन बैठे। आखिर 2017 में जनाब ने लालू जी का साथ क्यों छोड़ा था? जाहिर है कि जंगल राज में सुशासन दम तोड़ता नजर आया होगा। मगर हुजूर के हौंसले की दाद देनी पड़ेगी कि फिर से उसी रास्ते पर जाने की ठानी है। भाजपा में अब उन्हें लाख बुराई नजर आ रही हैं। पहले भी एक बार ऐसा हुआ था जब नीतीश बाबू को 2012 में भाजपा के प्रधानमन्त्री के उम्मीदवार बनाये गये नरेन्द्र मोदी में बुराई ही बुराई नजर आ रही थी। जनाब ने तब श्री मोदी के साथ भोजन करना भी गंवारा नहीं किया था। मगर बाद में ऐसे घी-शक्कर हुए कि 'अहा कितना मीठा' कहते हुए गली-कूंचों में दीवानावार घूमते हुए देखे गये। दरअसल यह अवसरवादिता और मौकापरस्ती की हद है जिसका राजनीति में प्रतिकार होना चाहिए और ऐसे नेताओं को जनता द्वारा करारा सबक सिखाया जाना चाहिए। वास्तव में बिहार का ही सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि इस राज्य में जातिवादी और परिवारवादी राजनीति ने इस प्रदेश की जनता के वाजिब अधिकारों पर डाका डाला हुआ है और इसके लोगों को भारत का सबसे गरीब आदमी बनाया हुआ है। बिहारियों का भारत के सर्वांगीण विकास में योगदान कम नहीं हैं। अपने श्रम से यहां के लोग देश के उन इलाकों को चमन बनाते हैं जहां पतझड़ के साये रहते हैं। इनकी मेहनत के बूते पर बड़े-बड़े शहरों के धनवान लोग सुख-चैन से सो पाते हैं और उनके कल- कारखानों में पहिये घूमते हैं। मगर स्वयं बिहार भी किसी भी मायने में किसी दूसरे राज्य से कम नहीं है। इसकी धरती में अपार सम्पत्ति छिपी है और भारतीय सांस्कृतिक इतिहास के स्वर्णिम अध्याय लिखे हुए हैं। इसके बावजूद इस राज्य में पर्यटन उद्योग का विकास नहीं हो पाया। जिस राज्य के पास नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेष हों उसके ज्ञान की क्षमता का अन्दाजा तो सदियां बीत जाने के बाद 21वीं सदी में भी लगाया जा सकता है। मगर दुर्दिन देखिये बिहार के कि नालन्दा विश्वविद्यालय को जलाने वाले 'बख्तियार खिलजी' के नाम पर ही नालन्दा का रेलवे स्टेशन बख्तियारपुर है और संयोग से यही नीतीश बाबू का पुश्तैनी गांव है । इस स्टेशन का नाम आजादी के 75 साल बाद भी नहीं बदला गया? क्या केवल इसलिए कि यहां नीतीश बाबू जन्मे थे ! नीतीश बाबू जिस महागठबन्धन की सरकार अब चलायेंगे वह भारत के विकास की गाड़ी को उल्टी दिशा में इसलिए ले जायेगी क्योंकि बिहार में जातिवादी दौर फिर से शुरू होगा और कानून-व्यवस्था के नाम पर दबंगई और 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' का दौर शुरू होने की संभावनाएं बढ़ेगी। बिहार की जनता को ही समझना होगा'लाग' हो तो उसको हम समझें लगाव जब न हो कुछ भी तो धोखा खायें क्या।

Next Story