सम्पादकीय

जम्मू-कश्मीर की खराब सुरक्षा व्यवस्था की वजह से अब भी बाहरी लोग वहां संपत्ति खरीदने से हिचकिचा रहे हैं

Gulabi Jagat
31 March 2022 5:26 PM GMT
जम्मू-कश्मीर की खराब सुरक्षा व्यवस्था की वजह से अब भी बाहरी लोग वहां संपत्ति खरीदने से हिचकिचा रहे हैं
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नागरिकों के साथ सुरक्षा बलों को भी आतंकवादी शिकार बना रहे हैं
जहांगीर अली.
पिछले साल अगस्त में केंद्र सरकार ने पहली बार खुलासा किया कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद से दो गैर-स्थानीय लोगों ने जम्मू और कश्मीर (Jammu And Kashmir) में संपत्ति खरीदी. लोकसभा (Lok Sabha) में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Nityanand Rai) ने इस बात से इनकार किया कि संभावित खरीदार किसी भी "कठिनाई या बाधा" का सामना कर रहे हैं. जब दिसंबर में संसद दोबारा चली तब यह संख्या सात संपत्तियों तक पहुंच गई. लेकिन गैर-स्थानीय लोगों ने जो संपत्ति खरीदी थी वो जम्मू क्षेत्र में थी जो कश्मीर घाटी की तुलना में काफी शांत है. हालांकि, नवीनतम आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में गैर-स्थानीय लोगों की खरीदी गई संपत्तियों की संख्या 34 हो गई है. इनमें एक संपत्ति कश्मीर के गांदरबल जिले में भी खरीदी गई है.
इन आंकड़ों की व्याख्या दो तरीके से की जा सकती है. एक तो यह हो सकता है कि गैर-स्थानीय लोगों के बीच जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीदने में रुचि धीरे-धीरे बढ़ रही है भले ही प्रगति थोड़ी धीमी गति से हो. एक गैर-स्थानीय का पहली बार कश्मीर घाटी में संपत्ति खरीदना दर्शाता है कि बाहरी लोग जिस तरह से कश्मीर को देखते हैं उसमें उल्लेखनीय परिवर्तन हो रहा है. केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के विकास को रोक रहा था और यह उन गैर-स्थानीय लोगों के लिए एक बाधा बन गया था जो कश्मीर में अपना घर खरीदना चाहते थे. ये वह तरीका है जिस तरह से सरकार विकास को देखना चाहती है.
नागरिकों के साथ सुरक्षा बलों को भी आतंकवादी शिकार बना रहे हैं
लेकिन इसके अलावा एक वैकल्पिक दृष्टिकोण भी है जो ज्यादा सही लगता है. अनुच्छेद 370 को खत्म हुए लगभग तीन साल होने वाले हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 34 लोगों ने संपत्ति खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है. केंद्र शासित प्रदेश, विशेष रूप से कश्मीर घाटी की प्राकृतिक सुंदरता को देखते हुए यह संख्या आसानी से अगर हजारों में नहीं तो सैकड़ों तो जरूर हो सकती थी. खास कर तब जब 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त किये जाने को भारत सरकार ने मीडिया के माध्यम से जम्मू-कश्मीर के भारत में पूरी तरह से एकीकरण के रूप में बड़े तौर पर प्रचारित किया था.
क्या अब सरकार यह बताएगी कि भूमि कानूनों में बदलाव ने कैसे जम्मू-कश्मीर के विकास को 'आसान' या सुगम बनाया है जैसा कि पहले तर्क दिया गया था? इसके उलट ऐसा लगता है कि संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने को लेकर केंद्रीय नेताओं का तर्क उलटा पड़ गया है. इस फैसले ने स्थिति में सुधार के बजाय स्थानीय आबादी को अलग-थलग कर दिया है और कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. जम्मू-कश्मीर पर भारत सरकार के सीधे शासन के बाद भी केवल 34 गैर-स्थानीय लोगों ने संपत्ति खरीदी, इससे साफ है कि कई बाहरी लोग ऐसे समय में केंद्र शासित प्रदेश में जाने में रुचि नहीं रखते जब सरकारी दावों के उलट वहां पर सुरक्षा की स्थिति नाजुक है. विशेष तौर पर कश्मीर में यह सही है जहां नागरिकों के साथ सुरक्षा बलों को भी आतंकवादी शिकार बना रहे हैं.
इसके अलावा इस केंद्र शासित प्रदेश के कश्मीर वाले हिस्से में संपत्ति की कीमतें आसमान छू रही हैं. श्रीनगर के एक पॉश इलाके में एक कनाल जमीन 2-3 करोड़ रुपये में बिकती है जो कि देश के बड़े शहरों के बराबर है. कई मामलों में यह देखा गया है कि किसान अपनी जमीन बेचने या सरकार को पट्टे पर देने से हिचकते हैं क्योंकि वे इससे अपनी जीविका चलाते हैं. खऱीद-बिक्री को आसान करने के लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने वाणिज्यिक और गैर-वाणिज्यिक दोनों तरह की भूमि के हस्तांतरण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया और एक नई औद्योगिक नीति की शुरुआत की. लेकिन लगाता है कि कानून-व्यवस्था की गड़बड़ी का डर उद्योगपतियों के साथ पर्यटकों को भी केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में निवेश से दूर रख रहा है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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