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मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि
वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के सीमावर्ती इलाक़ों में बुनियादी ढांचे के विकास पर बहुत ध्यान देना शुरू किया. इससे पहले नीति अलग थी. पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में एके एंटनी रक्षा मंत्री थे. वर्ष 2013 में संसद में उन्होंने स्वीकार किया था कि सीमाई इलाक़ों में पुल, सड़कें, हवाई पट्टी और दूसरे स्थाई निर्माण करने की नीति नहीं थी. माना जाता था कि ऐसा करने से दुश्मन को ही फ़ायदा हो सकता है. लेकिन यह विचार भी ज़रूरी था कि अगर दुश्मन सीमा पर युद्ध को अवश्यंभावी बना दे, तो हमारी सेना जल्द से जल्द कैसे पहुंचेगी?
सीमावर्ती इलाक़ों में अगर सेना सदैव सतर्क रहे, चौकस रहे, तो दुश्मन घुसपैठ करने की सोच ही नहीं सकता. ज़रूरी यह है कि ज़रूरत पड़ने पर हमारे अतिरिक्त जवान, हथियार और रसद इत्यादि सीमाई इलाक़ों में जल्द से जल्द पहुंच सकें. इसलिए मोदी सरकार ने सीमाई क्षेत्रों का विकास नहीं करने की नीति में आमूल-चूल बदलाव कर दिया और अब नतीजा यह है कि निगरानी और चौकसी का स्तर बहुत एडवांस हो गया है. निष्क्रियता की जगह अब सक्रियता ने ले ली है. यही कारण है कि पूर्वी लद्दाख और दूसरे सीमावर्ती क्षेत्रों में चीन अब मनमानी नहीं कर पा रहा है. पाकिस्तान की ओर से होने वाली घुसपैठ पर असरदार अंकुश लगा है.
सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास के प्रति उदासीन होने एक अप्रत्यक्ष असर यह भी होता है कि वहां के आबादी वाले इलाक़ों के कायाकल्प की योजनाएं भी नहीं बन पातीं. जब सड़कें, पुल, हेलीपेड, हवाई पट्टियां इत्यादि होंगी ही नहीं, तो वहां तक बड़ी मात्रा में निर्माण सामग्री पहुंचने की संभावना भी बहुत कम होती है. दुर्गम इलाक़ों की आबादी वाली अपेक्षाकृत समतल तलहटियों में विशेषज्ञों की पहुंच भी सीमित रहती है. कुल मिलाकर अब ऐसी स्थिति नहीं है और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे क्षेत्र तेज़ी से तरक्की कर रहे हैं. मोदी सरकार के संकल्प सीमावर्ती इलाक़े चमकाने में लगे हैं, तो जम्मू-कश्मीर जैसे दुर्गम स्थानों में भी विकास के नए अध्याय जोड़े जा रहे हैं.
सड़क पर सरपट दौड़ा विकास
अनुच्छेद 370 और 35-ए का शिकार रहे जम्मू-कश्मीर में अब विकास नई करवटें ले रहा है. जहां सड़कें होंगी, वहां विकास को नई राहें मिलती रहेंगी. इसी सोच के साथ मोदी सरकार कश्मीर घाटी में राजमार्गों का जाल बिछाने में जुटी है. सीमा सड़क संगठन और राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम सड़कों के विकास में ज़ोर-शोर से जुटे हैं. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कश्मीर घाटी के मुगल रोड को भी राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा देने का ऐलान किया है. पुंछ ज़िले के बुफलियाज क़स्बे को शोपियां से जोड़ने वाली यह सड़क क़रीब 121 किलोमीटर लंबी है. यह दूरी अभी क़रीब साढ़े तीन घंटे में पूरी होती है. लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग बन जाने के बाद यह दूरी जल्दी पूरी हो सकेगी.
दिल्ली से कश्मीर आठ घंटे में
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में चार राष्ट्रीय राजमार्गों की घोषणा करते हुए जानकारी दी कि प्रोजेक्ट पूरा हो जाने पर सड़क से दिल्ली से कश्मीर तक का सफ़र मात्र आठ घंटे में पूरा किया जा सकेगा. गडकरी ने बताया कि जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे का काम भी तीन साल में पूरा हो जाएगा. सड़क और सुरंग प्रोजेक्ट पूरे हो जाने के बाद कश्मीर में पर्यटन की अपार संभावनाओं के द्वार और ज़्यादा खुल जाएंगे. कारोबार और रोज़गार की नई संभावनाएं पैदा हो जाएंगी. सरकार चाहती है कि दिल्ली से जम्मू और जम्मू से श्रीनगर तक का सड़क सफ़र का समय आधा कर दिया जाए.
घाटी में भी सफ़र की रफ़्तार बढ़े, इस इरादे से श्रीनगर रिंग रोड का काम भी वर्ष 2023 तक पूरा करने की योजना है. श्रीनगर-बारामुला-उरी राष्ट्रीय राजमार्ग को चार लेने का बनाया जा रहा है. श्रीनगर-सोनमर्ग-गुमरी राजमार्ग, अखनूर-पुंछ राजमार्ग और जंस्कार-दरजा हाईवे का विकास कार्य ज़ोरों पर चल रहा है.
सड़क निर्माण में तीसरे नंबर पर
वर्ष 2014 तक जम्मू-कश्मीर (लद्दाख समेत) में सात राष्ट्रीय राजमार्ग थे. अब 2021 में इनकी संख्या 11 हो गई है. इसके अलावा, अगले साल के आख़िर तक यानी दिसंबर, 2022 तक कश्मीर घाटी रेल से कन्याकुमारी से जुड़ जाएगी. पिछले 12 महीने में 11 सुरंग परियोजनाएं मंज़ूर की गई हैं. चिनैनी-किश्तवाड़ राजमार्ग पर 10 हजार करोड़ रुपये की लागत से चार सुरंगें बनेंगी. जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर चार हजार करोड़ रुपये की लागत से सुरंगें बन रही हैं. इसके अलावा पांच फ्लाईओवरों का निर्माण भी किया जाना है. जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा के मुताबिक़ सड़क निर्माण के मामले में केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर देश में तीसरे नंबर पर है.
जम्मू-कश्मीर, लद्दाख में 31 सुरंगें
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय जम्मू-कश्मीर में 20 सुरंगों का निर्माण कर रहा है, जिनकी कुल लंबाई 32 किलोमीटर है. साथ ही लद्दाख में भी 11 सुरंगें बनाई जा रही हैं, जिनकी कुल लंबाई 20 किलोमीटर है. इन 31 सुरंगों के निर्माण पर 1.4 लाख करोड़ रुपये की लागत आएगी. ग़ौर करने वाली बात यह है कि ये सभी सुरंगें 2024 में आम चुनाव से पहले तैयार कर ली जाएंगी. मंत्रालय का दावा है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पिछले 50 साल में जितना सड़क निर्माण नहीं हुआ, उतना मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में हो गया है.
साल भर सोनमर्ग जाना संभव
सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में जेड-मोड़ सुरंग के काम का जायज़ा लिया. जेड-मोड़ सुरंग की लागत 2,300 करोड़ रुपये है. सुरंग का काम क़रीब-क़रीब पूरा हो चुका है. जल्द ही यह आवागमन के लिए खोल दी जाएगी. जेड-मोड़ सुरंग की वजह से श्रीनगर से सोनमर्ग और लेह-लद्दाख का तक साल भर सफ़र किया जा सकेगा. अभी तक सर्दियों में भारी बर्फ़बारी की वजह से क़रीब पांच महीने यह रास्ता पूरी तरह बंद रहता है. रास्ता बंद होने की वजह से वहां जनजीवन पूरी तरह ठप हो जाता है. लेकिन यह सुरंग बन जाने से अब सर्दियों में बर्फबारी देखने सोनमर्ग जाया जा सकेगा. इलाके लोगों को सर्दियों में बर्फबारी में घर नहीं छोड़ना होगा. साथ ही सेना और अर्धसैनिक बल भी श्रीनगर से लेह लद्दाख आ-जा सकेंगे.
3.5 घंटे का सफ़र 15 मिनट में
इसी तरह जोजिला सुरंग के ज़रिए श्रीनगर-लेह रूट पर बालटाल और मिनामार्ग के बीच लेह-लद्दाख तक साल भर संपर्क बना रहेगा. गडकरी के अनुसार जोजिला सुरंग का निर्माण दिसंबर, 2023 तक पूरा हो जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 26 जनवरी, 2024 से पहले इसका उद्घाटन करेंगे. ज़ाहिर है कि यह समय-सीमा 2024 के आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए तय की गई है.
जोजिला सुरंग एक साथ दोनों तरफ़ से आवागमन की सुविधा वाली एशिया की सबसे बड़ी सुरंग होगी. साथ ही 11,575 फ़ीट की ऊंचाई पर यह दुनिया की सबसे ऊंची सुरंग भी होगी. अभी श्रीनगर से करगिल पहुंचने में काफ़ी वक़्त लग जाता है. जोजिला दर्रा पार करने में ही तीन से साढ़े तीन घंटे लग जाते हैं. लेकिन जोजिला सुरंग बन जाने पर साढ़े तीन घंटे का सफ़र सिर्फ़ 15 मिनट में पूरा हो जाएगा.
जम्मू-कश्मीर का बजट बढ़ा5 अगस्त, 2019 को मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35-ए को निष्प्रभावी कर दिया था. इसके साथ ही केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर और लद्दाख प्रदेशों का उदय हुआ. तब से अब तक कई अंतर्राष्ट्रीय डेलीगेशन कश्मीर घाटी का दौरा कर वहां के हालात पर संतोष जता चुके हैं. हालांकि विपक्षी पार्टियों का गुपकार गैंग अब भी दुष्प्रचार में लगा है, लेकिन यह बात पूरी तरह सच है कि पांच-छह दशक बाद जम्मू-कश्मीर की फ़ज़ा में अमन-ओ-सुकून का दौर लौटा है. केंद्र सरकार वहां विकास और विश्वास बहाली के काम में लगी है, तो इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई भी दे रहे हैं.
मार्च, 2021 में लोकसभा में जम्मू-कश्मीर के लिए बजट पेश किया गया, तो पिछले साल के मुक़ाबले 291 करोड़ रुपये ज़्यादा का प्रावधान किया गया. 200 करोड़ रुपये का प्रावधान औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के लिए किया गया. इसके अलावा 50 करोड़ रुपये व्यापार केंद्र बनाने के लिए तय किए गए. जम्मू-कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पिछले साल के 509 करोड़ के मुक़ाबले इस बार 786 करोड़ रुपये रखे गए. सभी मदों में बजट बढ़ाया गया है, तो इसके अच्छे नतीजे दिखने भी लगे हैं.
जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के साथ ही दरबार मूव जैसे ख़र्चीले काम पर भी रोक लगा दी गई है. सर्दियों में राजधानी श्रीनगर से जम्मू लाने पर हर साल करोड़ों रुपये और श्रम बर्बाद हो जाता था. अब ऐसा नहीं होगा. विकास के नए संकल्प जम्मू को जगमगाएंगे, कश्मीर में करिश्मा करेंगे. सड़कों, पुलों और सुरंगों के ज़रिए जम्मू-कश्मीर में विकास की नई सुगंधित बयार बेरोक-टोक बहेगी, यह विश्वास सभी भारतीयों को करना चाहिए.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
ब्लॉगर के बारे में
रवि पाराशर, वरिष्ठ पत्रकार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं. नवभारत टाइम्स, ज़ी न्यूज़, आजतक और सहारा टीवी नेटवर्क में विभिन्न पदों पर 30 साल से ज़्यादा का अनुभव रखते हैं. कई विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग फ़ैकल्टी रहे हैं. विभिन्न विषयों पर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में शामिल हो चुके हैं. ग़ज़लों का संकलन 'एक पत्ता हम भी लेंगे' प्रकाशित हो चुका है।
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