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- उपन्यास: Part 27- बचपन...
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Ambulanceआगे बढ़ रही थी। मिनी के कानो में भैया के बात गूंज रहे थे- "तुम सब मेरे लिए मर चुके हो। 2 दिन की जिंदगी बची है , मत ले जाओ बोला तो क्यों ले कर गए ?" मिनी को ऐसे लगा जैसे कोई कान में पिघला हुआ लोहा डाल रहा हो। उसे बात समझ आ गई थी। मिनी का कुसूर सिर्फ इतना है कि उसने 2 दिन की जिंदगी वाली महिला को 2 साल तक जिलाये रखा पर जीवन और मृत्यु तो किसी के हाथ में नही होता और वो भी माँ के लिए ऐसी सोच। मिनी का मन बिलख रहा था उसे लग रहा था कि पति का घर अब आये ही न रास्ते में ही ईश्वर मिनी के प्राण ले ले। उसे लग रहा था कि मैं कैसे घर की देहलीज़ पर कदम रखूं ?
जिसने मेरी मां के लिए इतना सब कुछ किया कभी मन को जरा सा भी भारी नही किया। कभी सपने में भी मां को बोझ नही समझा उन्हें मेरी वजह से इतना अपमानित होना पड़ा। मिनी को लग रहा था मैं अपने पति को क्या मुँह दिखाऊँ? कैसे उनका सामना करू?
देवी पार्वती की शक्ति का रंच मात्र भी होता तो वो अपने आप को भस्म कर चुकी होती पर वो तो साधारण इंसान है । सोच-सोच कर दिल बैठा जा रहा था। मां के चेहरे पर कोई भाव नही थे। वो अपनी सोच की दुनिया में मस्त थी। लोग सही कहते हैं बचपन और बुढापा एक जैसा ही होता है। आखिर घर आ ही गया। भूखे प्यासे सभी लोग घर पहुचे। रास्ते में किसी ने कुछ नही खाया पिया। केवल मां खुश थी। उन्हें पानी बिस्किट देते हुए घर पहुच गए। एम्बुलेंस वाले भैया ने भी कुछ नही खाया क्योंकि ये वही थे जो मां को एम्बुलेंस में लेकर डॉ के पास शुरू से जा रहे थे।
मिनी ने रोते बिलखते रात का खाना बनाया। सब का मन व्यथित था। माँ को उसने नही रखा कोई बात नही पर गालियां उनकी असहनीय हो रही थी। लोग कहते है वक्त बड़े से बड़े घाव को भर देता है पर कुछ घाव ऐसे होते है जो कभी नही भरते।
सब सोने चले गए। मिनी की रात सीढ़ियों पर सुबकते हुए बीती। सर ने भी सोचा इन्हें रोकर मन हल्का कर लेने दो।
मिनी सोच रही थी आखिर लोग शादी क्यों करते है। सबके मन में यही रहता है कि उन्हें अच्छा ससुराल मिलेगा। जीवन सुखमय होगा अगर ऐसा नही सोचते तो शायद सभी कुँवारे ही रहते। मिनी के मन में बार-बार ये प्रश्न आता कि आखिर मुझसे शादी करके सर को क्या मिला? सर् के पिताजी नही रहे जब सर् कॉलेज भी नही पहुचे थे। बड़े भैया ने आगे की पढ़ाई करवाई। 5 भाई 2 बहनों में सर सबसे छोटे। बड़े भैया ने सर की शादी करवाई। बड़े भैया ने शादी में मध्यस्थता का जिम्मा तीसरे नं की जेठानी के पिताजी को दे दिया था क्योकि वे भी वही रहते थे जहाँ मिनी का घर था। जेठ ने मिनी के घरवालों को कह दिया था कि आपको जो भी खबर भिजवाना होगा जेठानी के पिताजी के द्वारा ही भिजवाना , अब हमारे पिता की जगह यही हैं । इतनी बड़ी बात जेठ ने कह दी थी। शादी भी तो उन्ही के द्वारा तय की गयी थी।
जब शादी लगी तो ससुराल के लोग कितने खुश थे। सभी तरफ हल्ला था करोड़ पति घर में शादी लगी है। मां इसलिए खुश थी क्योंकि मिनी ने शादी के लिए हां कर दी थी। मिनी हमेशा मां से कहती -माँ मेरी शादी उसी घर में करना जहाँ मुझे शादी के बाद भी पढ़ाई करते रहने की अनुमति हो। उस जमाने में जब लड़कियों का नौकरी करना अच्छा नही माना जाता था, ऐसा ससुराल मिलना मुश्किल था, फिर अगर लड़का व्यवसायी है तो वो अपनी पत्नी को क्यों पढ़ने की अनुमति देगा? इस चक्कर में न जाने कितने अच्छे-अच्छे घर के रिश्ते माँ को मना करने पड़े। मां नही चाहती थी कि मिनी की शादी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ की जाए। घर में सारे लोग मिनी के इस शर्त से परेशान थे पर मां ने धीरज नही खोई थी।
मिनी इसलिए खुश थी कि उसे शादी के बाद पढ़ाई करवाते रहने की इच्छा सर ने बातों ही बातों में सबके सामने स्वयं ही जाहिर कर दी थी। सर् के घर से 11 लोग मिनी को देखने आये थे और सर को साथ लेकर आये थे। मिनी ने तो सर से कोई बात भी नही की थी। मिनी चुपचाप सिर झुकाए सभी के साथ बैठी थी। जब भैया मिनी को बुलाने आये थे तब भैया ने कहा था- "चलो ! तुम खुद ही पूछ लेना, तुम्हे पढ़ाएंगे या नही।"
मिनी जो बड़ी शेर बन रही थी, डर के मारे धड़कन बढ़ गई थी उसकी। मिनी घबराते हुए सबके सामने गई थी। एक कमरे में मिनी की मम्मी , चाची जी, सर उनकी दो बड़ी भतीजी सर के दोनो तरफ बैठे हुए थे। मिनी के दो भैया जो सेवा में लगे हुए थे। मिनी की तो बोलती बंद थी। सर के मन में ये था कि वे अपने और अपने परिवार के बारे में पर्याप्त जानकारी दे दे जिससे मिनी कल को ये न कहे कि आपने मुझे अंधेरे में रखा। इस चक्कर में सर लगातार बोलते चले गए और बात ही बात में सर ने खुद ही पढ़ाई जारी रखने की बात कह दी। मिनी को कुछ कहने की नौबत ही नही आई। मिनी बाल-बाल बच गयी।
सर मिनी से कुछ पूछते तो माँ को या चाची जी को जवाब देना पड़ता था। सर तो गुस्सा हो गए थे। जब मिनी ने किसी भी बात का जवाब नही दिया था तब सर ने गुस्से से कहा था - "आप विद्यालय जाती हैं पढ़ाने, इसका मतलब आप गूंगी तो नही हैं।"
इसका जवाब भी भैया ने दिया था- "इशारे से पढ़ाती है न।" सभी हंस पड़े थे। सर इसलिए खुश थे कि मिनी जॉब करती है। कितना खुशनुमा माहौल था। मिनी को जिस दिन देखने आये थे, रिश्ता उसी दिन तय हो गया था। ससुराल वालो ने उसी दिन फलदान की रस्म अदा कर दी। किसी को पता नही था कि उस दिन शादी तय हो जाएगी। मिनी के घरवालों ने भी सर के घर जाकर फलदान की रस्म अदा की। सभी कितने खुश थे। घर की अकेली लाडली बिटिया की शादी। भैया खूब सारी फोटो ले कर आये थे मिनी को दिखाने। घर के सभी सदस्यों का परिचय मिनी से भैया फ़ोटो से करवा रहे थे। मिनी के ससुराल में कितने सारे छोटे छोटे बच्चे थे। भरा - पूरा परिवार था। सर के घर में तब 25 सदस्य रहते थे। मिनी के मायके और ससुराल के हर एक छोटे बड़े सदस्यों की खुशी तब देखते बनती थी।
चाचा जी के घर में ही शादी तय हुई थी। मिनी चाचा जी की सबसे अधिक लाडली बिटिया थी। चाचा जी को ही कन्यादान करना था। चाचा जी ने ससुराल वालो से विनती की थी की इसी सत्र में शादी कर देते हैं परंतु जेठ ने ये कहकर मना कर दिया कि हमारे सबसे छोटे भाई की शादी है, हम खूब धूमधाम से करना चाहते हैं। अपने सभी रिश्तेदारों को शामिल करना चाहते हैं तो हमे तैयारियों में वक्त लगेगा। हम अगले सत्र में शादी करेंगे।
किसे पता था कि फलदान के 2 महीने के बाद ही अचानक ब्रेन हेमरेज से चाचाजी का स्वर्गवास हो जाएगा और चाचा जी सभी को रोते बिलखते छोड़कर चले जाएंगे। इस घटना से मिनी के घरवाले बिल्कुल टूट चुके थे । अब सारी जिम्मेदारी पापा पर आ गयी। पापा जी ने तो सामाजिक कार्यो की सभी जिम्मेदारियां चाचाजी पर छोड़ रखी थी।पहले के ज़माने में भाई दाहिना हाथ हुआ करता था। पापाजी पूरी तरह टूट चुके थे। फिर भी बेटी की शादी तो करनी ही थी।
जेठानी के पिता जी का मन , मिनी के पिताजी से नही मिला। जेठानी और उनके परिवार वालो ने मिलकर ऐसी व्यूहरचना किया कि पूरा दृष्टिकोण ही बदल गया। इधर मिनी के मायके वाले खून के आंसू रो रहे थे उधर ससुराल वालो के मन में मिनी के मायके वालो के प्रति इतनी कडुवाहट भर चुकी थी कि शायद उनका चेहरा भी देखना पसंद न करे। फिर भी भाई की शादी तो करनी ही थी।
मिनी ने सोचा कि शायद चाचाजी के नही रहने से उनके दुःख के कामों में कभी सर घर आएंगे पर सर तो कभी नही आये। दोनो तरफ की स्थितियों को समझना और सहना जब मुश्किल हो गया तो मिनी ने एक दिन बड़ी हिम्मत कर के सर को पत्र में सिर्फ इतना लिखा कि वो उनसे शादी करने से मना कर दे क्योकि चाचा जी के नही रहने से अब स्थितियां बहुत बदल चुकी हैं।
मिनी के घर में पत्र के बारे में किसी को पता नही था। जब सर मिनी को देखने आये थे तभी सबके सामने अपना पता दे के गए थे और बोले थे- "अगर आपको कुछ भी और जानकारी चाहिए तो आप मुझसे कभी भी पूछ सकती है।"
मिनी ने उसी पते पर पोस्ट किया था। कुछ दिनों के बाद सर का जवाब आया कि नही अब वो शादी से मना नही करेंगे। साथ में एक बिंदी भी सर ने भेजी। अब मिनी करे तो क्या करे ? उसने तो सर को पत्र लिखकर राहत पा ली थी कि अब ये शादी नही होगी और न ही दुनिया भर का टेंशन होगा पर गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है न-"जन्म विवाह मरण गति सोई, जो जस लिखा तहां तस होई।" फिर ये गलत कैसे हो सकता था।...................क्रमशः
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Gulabi Jagat
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