सम्पादकीय

आतंक का नया ट्रेंड

Subhi
9 Oct 2021 1:00 AM GMT
आतंक का नया ट्रेंड
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जम्मू कश्मीर में पिछले दिनों हुई आतंकी घटनाएं कई कारणों से चिंताजनक हैं।

जम्मू कश्मीर में पिछले दिनों हुई आतंकी घटनाएं कई कारणों से चिंताजनक हैं। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद बड़े पैमाने पर उथलपुथल की आशंका को गलत साबित करते हुए सुरक्षा बलों ने यहां काफी हद तक शांति बनाए रखने में कामयाबी हासिल की थी। हाल की घटनाओं से शांति भंग होने का संदेश जा रहा है, जो अच्छा नहीं है। मंगलवार को 68 वर्षीय केमिस्ट माखनलाल बिंद्रू समेत तीन लोगों की हत्या किए जाने के दो दिन बाद ही आतंकवादी श्रीनगर के एक सरकारी स्कूल में घुस आए और प्रिंसिपल सतिंदर कौर और शिक्षक दीपक चांद की हत्या कर दी।

एक हफ्ते में श्रीनगर में ही सात नागरिक मारे जा चुके हैं। दूसरी बात यह कि इन आतंकी घटनाओं के पीछे एक अलग पैटर्न दिख रहा है। आतंकी इस बार आम लोगों को और उनमें भी गैर-मुस्लिमों को निशाना बना रहे हैं। इसमें भारी-भरकम हथियार भी इस्तेमाल नहीं किए जा रहे। ज्यादातर घटनाओं में पिस्तौल का उपयोग किए जाने की सूचना है। यह काम उन नए लोगों से भी करवाया जा सकता है, जिन्हें खास ट्रेनिंग देने का मौका नहीं मिला हो। यानी पाकिस्तान के आतंकी शिविरों में प्रशिक्षित आतंकवादियों के बजाय आतंकी प्रवृत्ति के स्थानीय युवाओं के सहारे आतंकवाद के इस नए रूप को आगे बढ़ाया जा सकता है।
आम लोगों को निशाना बनाना अपेक्षाकृत आसान भी है। इसके लिए बहुत गहरी प्लानिंग की जरूरत नहीं होती। इन सबके अलावा इसका एक और अहम पहलू है। इस पर अफगानिस्तान के हालिया घटनाक्रम की भी छाप दिखती है। अमेरिका की वापसी के बाद जब से तालिबान सत्ता में आए हैं, अफगानिस्तान के शहरों में बंदूकधारियों द्वारा चुन-चुनकर महिला कार्यकर्ताओं, सोशल वर्करों और पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है। इसके सहारे यह संदेश दिया जा रहा है कि अब अफगानिस्तान में उनकी जरूरत नहीं है। चूंकि तालिबान और कश्मीर में सक्रिय आतंकवाद, दोनों को पाकिस्तान का समर्थन हासिल है, इसलिए कश्मीर में तालिबान शैली को अमल में लाए जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
जाहिर है, इस साजिश को शुरू में ही खत्म करना पड़ेगा। अगर यह कुछ दूर भी चल गई तो न केवल जम्मू कश्मीर में शांति व्यवस्था को बल्कि वहां के सामाजिक ताने-बाने को भी तहस नहस कर सकती है। चूंकि इसमें स्थानीय कारकों की भूमिका ज्यादा है, इसलिए चुनौती भी कठिन है। न केवल सुरक्षा बलों को अपनी चौकसी बढ़ानी पड़ेगी बल्कि अपने खुफिया नेटवर्क को भी चाक-चौबंद रखना पड़ेगा। इसके अलावा समाज के अलग-अलग हिस्सों में दूरियां बढ़ाने की साजिशों को लेकर खास सतर्क रहना होगा। आतंकी नेटवर्क अफवाहों के सहारे भी दूरियां बढ़ाने और फिर उसका फायदा उठाने की ताक में रहता है। हर संभव तरीके से इन साजिशों को नाकाम करने और कश्मीरियों के हर तबके तक पहुंच बनाते हुए उन्हें विश्वास में लेने के प्रयास साथ-साथ करने होंगे।

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