सम्पादकीय

राष्ट्रीय अभियंता दिवस: भारत में बेहतर नहीं है इंजीनियर्स की दुनिया, कोविड ने और खराब किए हालात

Gulabi
15 Sep 2021 5:59 AM GMT
राष्ट्रीय अभियंता दिवस: भारत में बेहतर नहीं है इंजीनियर्स की दुनिया, कोविड ने और खराब किए हालात
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राष्ट्रीय अभियंता दिवस

कोरोना की वजह से पूरी दुनिया में कई तरह के बदलाव एक साथ देखने को मिल रहें हैं। सबसे बड़ा बदलाव शिक्षा, चिकित्सा और टेक्नोलॉजी को लेकर होने वाला है। कोविड की वजह से भारत सहित पूरी दुनिया में बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है। लाखों लोग जॉब से निकाल दिए गए हैं, ऐसे समय में स्किल और तकनीक से ही लोग अपना खोया हुआ आत्मविश्वास हासिल कर सकते हैं।

पिछले दिनों विभिन्न तकनीकी नौकरियों की सैलरी की सर्वे करने वाली एक रिपोर्ट में बताया-
देश में इलेक्ट्रिशियन फिटर और प्लंबर की मांग बहुत ज्यादा है और जबकि इंजीनियर्स की मांग बहुत कम और आपूर्ति बहुत ज्यादा है। सर्वे कहता है- बारहवीं पास इलेक्ट्रिशियन की औसत सैलरी 11300 रुपये प्रति माह है, जबकि डिग्री वाले इंजीनियर की औसत सैलरी 14800 रुपये प्रति माह यानी 3500 रुपये ज्यादा है। पिछले छह साल में इलेक्ट्रिशियन प्लंबर, टेक्निशियन का वेतन बढ़ा है। जबकि आईटी इंजीनियरों की एंट्री लेवल तनख्वाह लगभग उतनी ही है।
रिपोर्ट बहुत कुछ ऐसा कहती है जो चौंकाने वाला है
रिपोर्ट के अनुसार पंद्रह साल पहले जब आईटी का बूम हुआ था तब काफी मांग थी। जबकि पिछले 10 सालों में मांग में बढ़ोतरी नहीं हुई है जबकि मांग के मुकाबले कई गुना ज्यादा इन्जीनियरिंग ग्रेजुएट निकल रहे हैं। हर साल देश में लगभग 15 लाख इंजीनियर बनते हैं लेकिन उनमें से सिर्फ 4 लाख को ही नौकरी मिल पाती है, बाकी सभी बेरोजगारी का दंश झलने को मजबूर है।
नेशनल एसोशिएसन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज यानी नैसकॉम के एक सर्वे के अनुसार-
75 फीसदी टेक्निकल स्नातक नौकरी के लायक नहीं हैं।
आईटी इंडस्ट्री इन इंजीनियरों को भर्ती करने के बाद ट्रेनिंग पर करीब एक अरब डॉलर खर्च करती है।
इंडस्ट्री को उसकी जरूरत के हिसाब से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट नहीं मिल पा रहे हैं।
डिग्री और स्किल के बीच फासला बहुत बढ़ गया है।
जाहिर है इतनी बड़ी मात्रा में पढ़े-लिखे इंजीनियरिंग बेरोजगारों की संख्या देश की अर्थव्यवस्था और सामजिक स्थिरता के लिए भी ठीक नहीं है।
लगातार बेरोजगारी बढ़ने की वजह से इंजीनियरिंग कॉलेजों में बड़े पैमाने पर सीटें खाली रहने लगी हैं। तकनीकी शिक्षा में देश के अधिकांश राज्यों में 60 से 70 प्रतिशत तक सीटें खाली हैं। इसने भारत में उच्च शिक्षा की शर्मनाक तस्वीर पेश की है। यह आंकड़ा चिंता बढ़ाने वाला भी है, क्योंकि स्थिति साल दर साल खराब ही होती जा रही है। एक तरफ प्रधानमंत्री देश के लिए 'मेक इन इंडिया" की बात कर रहे हैं, वही दूसरी तरफ देश में तकनीकी और उच्च शिक्षा के हालात बदतर स्थिति में है।
आज हमारे शैक्षिक कोर्स 20 साल पुराने हैं इसलिए इंडस्ट्री के हिसाब से छात्रों को अपडेटेड थ्योरी नहीं मिल पाती। इसी वजह से आज इंजीनियरिंग स्नातक के लिए नौकरी पाना सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य होता जा रहा है।
अभी स्थिति यह है कि सारा ध्यान थ्योरी सब्जेक्ट पर है, उन्हें रटकर पास करने में ही छात्र अपनी इति श्री समझते हैं। इंडस्ट्री और इंस्टीट्यूटस के मध्य एक कॉमन प्लेटफार्म स्थापित करने की दिशा में सरकारी और निजी दोनों के प्रयास जरूरी हैं।
पुराने ढर्रे पर चल रही है शिक्षा व्यवस्था
देश में तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में पढ़ाई-लिखाई की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं है। अधिकांश कॉलेजों में शिक्षण का स्तर और प्रशिक्षण की व्यवस्था ठीक नहीं है। देश में इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर और टेक्निशियन की मांग बढ़ रही है तो उसका लाभ कैसे उठाया जा सकता है।
क्या हमारे पास ऐसी कोई योजना है, ऐसा कोई सेंटर हैं जो ऐसी नौकरियों के लिए कम पैसे में प्रशिक्षण दे सके?
ज्यादातर लोग तो अपने अनुभव से सीख कर ही नौकरी पाते हैं वो भी अस्थायी। जबकि प्रशिक्षण की बहुत आवश्यकता है ,इस दिशा में सरकार को पहल करनी पड़ेगी । अब वक्त आ गया है कि हम यह सोचें कि क्या हमारे पास क्वालिटी इंजीनियर हैं।
चीन के कुल छात्रों का 34 प्रतिशत इंजीनियरिंग की पढ़ाई करता है जबकि भारत में कुल छात्रों का मात्र 6 प्रतिशत। इंजीनियरिंग में इतने कम एनरोलमेंट के बाद भी देश में क्वालिटी इंजीनियर इंजीनियरों की संख्या बहुत कम है। कुलमिलाकर तकनीकी शिक्षा के हालात बहुत खराब है और इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।
सच्चाई यह है कि आज डिग्री के बजाय हुनर की जरूरत है। शैक्षणिक स्तर पर स्किल डेवलपमेंट के मामले में जर्मनी का मॉडल पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। जर्मनी में डुअल सिस्टम चलता है। वहां के हाईस्कूल के आधे से ज्यादा छात्र 344 कारोबार में से किसी एक में ट्रेनिंग लेते हैं। चाहे वो चमड़े का काम हो या डेंटल टेक्निशियन का। इसके लिए वहां छात्रों को सरकार से महीने में 900 डॉलर के करीब ट्रेनिंग भत्ता भी मिलता है।
जर्मनी में स्किल डेवलपमेंट के कोर्स मजदूर संघ और कंपनियां बनाती हैं। वहां का चेंबर्स और कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज परीक्षा का आयोजन करता है। स्पेन, ब्रिटेन से लेकर भारत तक सब जर्मनी के इस स्किल डेवलपमेंट का मॉडल अपनाना चाहते हैं।
प्रतिभाशाली इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या
देश में इंजीनियरिंग को नई सोच और दिशा देने वाले महान इंजीनियर भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या की जयंती 15 सितम्बर को देश में 'इंजीनियर्स डे' या अभियंता दिवस के रूप में मनाया जाता है। मैसूर राज्य (वर्तमान कर्नाटक) के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या अपने समय के सबसे प्रतिभाशाली इंजीनियर थे, जिन्होंने बांध और सिंचाई व्यवस्था के लिए नए तरीकों का इजाद किया।
उन्होंने आधुनिक भारत में सिंचाई की बेहतर व्यवस्था और नवीनतम तकनीक पर आधारित नदी पर बांध बनाए तथा पनबिजली परियोजना शुरू करने की जमीन तैयार की। सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण की तकनीक में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
आज से लगभग 100 साल पहले जब साधन और तकनीक इतनी ज्यादा उन्नत नहीं थी, विश्वेश्वरैया ने आम आदमी की समस्याओं को सुलझाने के लिए इंजीनियरिंग में कई तरह के इनोवेशन किए और व्यवहारिक तकनीक के माध्यम आम आदमी की जिंदगी को सरल बनाया।
असल में इंजीनियर वह नहीं है जो सिर्फ मशीनों के साथ काम करें बल्कि वह है जो किसी भी क्षेत्र में अपने मौलिक विचारों और तकनीक के माध्यम मानवता की भलाई के लिए काम करे।
सर विश्वेश्वरय्या ने देश के भावी इंजीनियरों को सन्देश देते हुए कहा था-
मानवता की भलाई तथा देश के वातावरण को ध्यान में रखते हुए राष्ट्र निर्माण में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करें।
एक व्यक्ति के तौर पर अपने कार्य और समय के प्रति जो लग्न, निष्ठा, प्रतिबद्धता उनमें थी, वो शायद ही किसी में देखने को मिल सके। मैसूर प्रांत के दिवान होते हुए भी उनमें लेश मात्र भी अहंकार नहीं था। यदि वो चाहते तो अपनी काबलियत के आधार पर विदेश में कार्य कर सकते थे लेकिन उन्होंने भारत भूमि की सेवा को सर्वोपरि रखा। निष्ठा और लग्न के कारण ही डॉ. विश्वेश्वरय्या आज देश के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों व अन्य बुद्धिजीवियों में पूजनीय हैं।

आज देश को विश्वेश्वरय्या जैसे इंजीनियरों की जरूरत है, जो देश को एक नई दिशा दिखा सके क्योंकि आज के आधुनिक विश्व में विज्ञान,तकनीक और इंजीनियरिंग के क्रमबद्ध विकास के बिना विकसित राष्ट्र का सपना नहीं सच किया जा सकता ।
कोविड ने बदल दी हैं स्थितियां
कोविड के बाद बहुत सारे क्षेत्रों में परंपरागत तरीके से चीजें अब नहीं चलेंगी, उनमें तकनीकी बदलाव जरूर होगा। ऐसे में आपको इस फ्रंट पर खुद को अपडेट करना होगा। हालांकि पूरी दुनिया में अभी भी कोरोना का कहर जारी है लेकिन लगता है अब लोगों ने कोरोना के साथ रहना सीख लिया है, या यूं कहें कि दुनिया को कोरोना के साथ रहना पड़ेगा।
आज के समय में तकनीक हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई है। मोबाइल, इंटरनेट, ई-मेल, वीडियो कॉलिंग जैसी तकनीक ने सुविधाओं से हमारी जिंदगी को आसान और हाईटेक बना दिया है। हर कदम पर आधुनिक यंत्रों और तकनीक की आवश्यकता पड़ती है। यह सब संभव हो पाया है इंजीनियरिंग की बदौलत।
आज देश में बड़ी संख्या में इंजीनियर पढ़ लिख कर निकल तो रहें है लेकिन उनमे "स्किल" की बड़ी कमी है। इसी वजह से लाखों इंजीनियर हर साल बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। इंडस्ट्री की जरूरत के हिसाब से उन्हें काम नहीं आता।
एक रिपोर्ट के अनुसार-
हर साल देश में लाखों इंजीनियर बनते है लेकिन उनमें से सिर्फ 15 प्रतिशत को ही अपने काम के अनुरूप नौकरी मिल पाती है, बाकी सभी बेरोजगारी का दंश झलने को मजबूर हैंं।
जाहिर है देश में इंजीनियरिंग का करियर तेजी से आकर्षण खो रहा है। हालात यह है कि सिविल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग जैसे कोर सेक्टर के लगभग 85 प्रतिशत इंजीनियर और डिप्लोमाधारी रोजगार के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं। यह आंकड़ा चिंता बढ़ाने वाला भी है, क्योंकि स्थिति साल दर साल खराब ही होती जा रही है ।


(नोट: लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर और टेक्निकल टूडे पत्रिका के संपादक हैं।)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।

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