सम्पादकीय

आतंक का सिमटता दायरा

Subhi
13 April 2021 4:36 AM GMT
आतंक का सिमटता दायरा
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अनुच्छेद 370 निरस्त होने के डेढ़ वर्ष के भीतर ही जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अंतिम सांसें गिन रहा है।

आदित्य नारायण चोपड़ा: अनुच्छेद 370 निरस्त होने के डेढ़ वर्ष के भीतर ही जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अंतिम सांसें गिन रहा है। घाटी में सक्रिय आतंकियों की संख्या काफी कम हो गई है। जो बचे हैं उनमें भी ज्यादातर स्थानीय और नए आतंकवादी हैं। सुरक्षा एजेंसियां युवाओं के आईकॉन बने पुराने आतंकी सरगनाओं को मार गिराने में सफल रही हैं। स्थानीय और नए आतंकी सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में ज्यादा समय तक टिक नहीं पाते। सुरक्षाबलों की मुस्तैदी के कारण सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ मुश्किल हो गई है। पाकिस्तान ने सीमा के आर-पार सुरंगें खोदकर आतंकियों की घुसपैठ की चाल जरूर चली लेकिन यह बहुत दिनों तक सफल नहीं हुई। सुरक्षाबलों ने एक के बाद एक चार सुरंगों का पता लगाकर उन्हें बंद कर दिया। आतंकवादियों के गिरते मनोबल का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2019 में जहां कुल 555 आतंकी घटनाएं हुई थीं, वहीं पिछले वर्ष केवल 142 घटनाएं ही दर्ज की गईं।

आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षाबलों का अभियान तेजी से चल रहा है और 72 घंटों के अंदर सुरक्षाबलों ने 12 आतंकवादियों का सफाया कर दिया। जिन आतंकवादियों ने भारतीय सेना की टेरिटोरियल आर्मी के जवान की हत्या की थी उनका भी खात्मा कर दिया गया। दुखद बात तो यह है कि मारे गए आतंकवादियों में एक 14 साल का नाबालिग भी था। सुरक्षाबलों ने उसका आत्मसमर्पण कराने की काफी कोशिश की। वह दसवीं कक्षा का छात्र था और शोपियां जिले के ही जैतापुरा के एक निजी स्कूल में पढ़ता था। 6 अप्रैल को ही लापता हुआ था। जैसे ही सुरक्षाबलों को पता चला कि आतंकियों के साथ स्कूली बच्चा भी है तो सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ स्थल पर मां-बाप को लाकर उनसे अपील भी करवाई गई। मां की गुहार सुनकर बच्चा पिघल भी गया था और वह आत्मसमर्पण को तैयार था लेकिन उसके साथ मौजूद अलबदर कमांडर आसिफ शेख ने उसे बहकाना शुरू कर दिया।

कश्मीर में कैडर की कमी से जूझ रहे आतंकी संगठनों को युवा ठेंगा दिखा रहे हैं तो दहशतगर्दों ने नाबालिगों को आतंक के जाल में फंसाना शुरू कर दिया है। स्कूली बच्चों के हाथों में बंदूकें थमा देना और उन्हें मौत के मुँह में धकेल देना क्रूरता की हदें पार करना है। यह कश्मीरी अवाम की जिम्मेदारी है कि वे अपनी नई पीढ़ी पर बढ़ते आतंक के साए के बीच आंखें बंद करके नहीं बैठे। उन्हें नई पीढ़ी को आतंक के पोषण और मासूमों के मन-मस्तिष्क में जहर भरने की साजिशों को रोकना ही होगा। जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने कहा है कि अभिभावकों को अपने बच्चों से आतंकवादी घटनाओं में शामिल न होने की लगातार अपील करनी चाहिए। वे एक बार अपील करके न ठहर जाएं बल्कि लगातार प्रयास करते रहें। पूर्व में भी सुरक्षाबलों ने एक अभियान चलाया था जिसमें माताओं ने अपने बच्चों को हथियार छोड़कर लौट आने को कहा था तो काफी सकारात्मक परिणाम सामने आए थे। कई युवा लौट आए थे।
निश्चित रूप से इस तरह के अभियान से सुरक्षाबलों को कामयाबी के तौर पर देख सकते हैं लेकिन मुठभेड़ों से स्पष्ट है ​िक उनकी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। यह सच्चाई है कि आतंकवादी संगठनों ने जम्मू-कश्मीर के भीतरी इलाकों में अपनी पहुंच बनाए रखी हुई है और मौका पाते ही वह अपनी साजिश को अंजाम देने की कोशिश करते हैं या फिर सुरक्षाबलों पर हमला कर देते हैं। कुछ समय से जम्मू-कश्मीर पुलिस, स्थानीय नागरिकों और खुफिया तंत्र के साथ सुरक्षाबलों का बेहतर तालमेल कायम है। अब पहले की तरह आतंकवादी संगठनों को अपने समूह में शामिल होने के लिए लोग नहीं मिल रहे। स्थानीय लोगों के बीच आतंक के रास्ते के खामियाजे को लेकर समझ और जागरूकता बढ़ी है। लोग जानते हैं कि आतंकवाद का रास्ता केवल मौत की ओर जाता है। दरअसल थोड़े-थोड़े समय के बाद आतंकी संगठन सुरक्षाबलों पर हमले सहित दूसरी वारदातें अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए करते हैं। इसके जरिये वे संदेश देना चाहते हैं कि राज्य में स्थिति सामान्य नहीं। सच तो यह है कि अनुच्छेद हटाये जाने के बाद से कुछ दिनों के तनाव के बाद अब स्थितियां सामान्य हो चुकी हैं। जम्मू-कश्मीर के पंचायत और जिला परिषदों के चुनाव में एक भी गोली नहीं चली।
सामान्य स्थितियों को देखकर आतंकवादियों में हताशा बढ़ी है और उनकी गतिविधियां सिमट रही हैं। इसके बावजूद सुरक्षाबल सीमा पार से चलने वाले आतंकी संगठनों को कम करके आंक नहीं रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान सीमा के भीतर मौजूद ठिकानों पर आतंकवादी गतिविधियां संयोजित हो रही हैं। सुरक्षाबल पूरी सकर्तता बरत रहे हैं। कश्मीर घाटी में पिछले 29 सालों के दौरान 46 हजार लोगों की जान गई है। इसमें से लगभग 24 हजार आतंकवादी भी शामिल हैं। सुरक्षाबलों की लगातार सर्चिंग के चलते आतंकवाद की कमर टूट गई है। आतंकवादी संगठन सोशल मीडिया के जरिये नई भर्तियों की कोशिश कर रहे हैं। वे अफवाहें फैलाने में भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। मौजूदा समय में सिर्फ 217 आतंकवादी चिन्हित किए गए हैं। अब आतंकवाद अंतिम सांसें ले रहा है और वह दिन दूर नहीं जब सुरम्य और मनमोहक कश्मीर में पूरी तरह शांति हो जाएगी। ट्यूलिप गार्डन में खिले फूल यही संकेत दे रहे हैं।


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