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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | लोकनायक जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांव के लोगों को उनकी आवासीय जमीन का मालिकाना हक देने वाली स्वामित्व योजना शुरू कर एक ऐसे जरूरी काम का श्रीगणेश किया, जिसे कायदे से आजादी के बाद ही हाथ में लिया जाना चाहिए था। पता नहीं इसके पहले इस ओर किसी ने ध्यान क्यों नहीं दिया कि गांवों के उन लोगों को उस जमीन के मालिकाना हक से लैस करने की जरूरत है, जहां उनके घर तो बने हुए हैं, लेकिन उसके दस्तावेज उनके पास नहीं हैं?
वास्तव में इस पर तो तभी ध्यान दिया जाना चाहिए था जब खेती योग्य भूमि का लेखा-जोखा किया जा रहा था। स्वामित्व योजना के जरिये उन सब ग्रामीणों को अपने आवास के दस्तावेज हासिल हो सकेंगे, जिनके पास इसके प्रमाण नहीं थे कि जिस जमीन पर वे रह रहे हैं, वह उनकी ही है। इसके चलते लड़ाई-झगड़े तो होते ही रहते थे, लोग इससे आशंकित भी रहते थे कि कहीं उन्हें उनके घर से बेघर न कर दिया जाए।
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अब जब लोग अपनी आवासीय जमीन के मालिकाना हक से लैस होंगे तो उनमें न केवल आत्मविश्वास का संचार होगा, बल्कि वे जरूरत पड़ने पर अपनी जमीन का क्रय-विक्रय भी कर सकेंगे। इतना ही नहीं, वे आवश्यकता पड़ने पर अपनी आवासीय जमीन के दस्तावेज दिखाकर कर्ज भी ले सकेंगे। एक तरह से अब भू-संपत्ति का उपयोग वित्तीय संपत्ति के रूप में हो सकेगा।
अनुमान है कि स्वामित्व योजना से लाभान्वित होने वालों की संख्या करोड़ों में होगी, क्योंकि देश की 60 प्रतिशत आबादी अभी गांवों में रहती है और उसमें से एक बड़ा हिस्सा ऐसा है, जिसके पास अपने घर के दस्तावेज नहीं। चूंकि स्वामित्व योजना का क्रियान्वयन आधुनिक तकनीक के जरिये किया जा रहा है इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि आगामी चार वर्षो में छह लाख से अधिक गांवों को इस योजना में शामिल करने के लक्ष्य को वास्तव में हासिल कर लिया जाएगा।