सम्पादकीय

राज्यों को चिट्ठी: बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं से जुड़े विवादों को निपटारे के लिए विशेष अदालतें करें गठित

Neha Dani
21 Dec 2020 2:03 AM GMT
राज्यों को चिट्ठी: बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं से जुड़े विवादों को निपटारे के लिए विशेष अदालतें करें गठित
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अपने देश में कुछ मामलों में चीजें कितनी धीमी गति से आगे बढ़ती हैं

अपने देश में कुछ मामलों में चीजें कितनी धीमी गति से आगे बढ़ती हैं, इसका एक और उदाहरण है कानून मंत्रालय की ओर से राज्यों को लिखी गई इस आशय की चिट्ठी कि वे बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं से जुड़े विवादों को हल करने के लिए विशेष अदालतें गठित करें और उन्हें सप्ताह में कुछ दिन इन्हीं विवादों के निपटारे के लिए समर्पित करें। कायदे से यह काम तभी शुरू हो जाना चाहिए था जब दो वर्ष पहले संबंधित कानून में इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक संशोधन कर दिया गया था। कोई नहीं जानता कि इस ओर अपेक्षित ध्यान क्यों नहीं दिया गया? जो भी हो, कानून मंत्रालय की ओर से राज्यों को भेजी गई चिट्ठी से यह इंगित होता है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के उच्च न्यायालयों ने अपेक्षा के अनुरूप काम शुरू कर दिया है। समझना कठिन है कि यह काम अन्य राज्यों में क्यों नहीं शुरू हो सका? कम से कम अब तो यह सुनिश्चित किया ही जाए कि बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं से जुड़े विवादों का निपटारा प्राथमिकता के आधार पर हो। इन विवादों के निपटारे में तत्परता का परिचय केवल इसलिए नहीं दिया जाना चाहिए कि इससे कारोबारी माहौल को और सुगम बनाने में मदद मिलेगी, बल्कि इसलिए भी किया जाना चाहिए ताकि विकास योजनाओं को गति मिल सके और विभिन्न परियोजनाओं के अटकने-लटकने के कारण उनकी लागत में होने वाली अनावश्यक वृद्धि से बचा जा सके।

एक ऐसे समय जब भारत विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के साथ इस कोशिश में है कि चीन से बाहर निकलने के लिए तैयार उद्योग भारत आएं तब अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को यह संदेश जाना ही चाहिए कि इस देश में अदालती मामलों का निपटारा समय पर होता है। वास्तव में आवश्यकता केवल इसकी नहीं है कि बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं से संबंधित विवादों के समाधान के लिए विशेष अदालतें सप्ताह में कुछ खास दिन समर्पित करें, बल्कि इसकी भी है कि एक तय समयसीमा में फैसले तक पहुंचना सुनिश्चित किया जाए। कुल मिलाकर तारीख पर तारीख के दुष्चक्र को रोकने की सख्त जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति इसलिए प्राथमिकता के आधार पर की जानी चाहिए, क्योंकि अदालती प्रक्रिया की सुस्ती विकास कार्यो के लिए एक बड़ी बाधा बन रही है। हमारे नीति-नियंताओं को इसका आभास होना चाहिए। समय पर न्याय न मिल पाना एक गंभीर समस्या है और इसके चलते अन्य अनेक समस्याएं उभर रही हैं। बेहतर होगा कि न्यायिक तंत्र में व्यापक सुधार के ठोस कदम उठाए जाएं, क्योंकि अपेक्षित केवल यही नहीं है कि बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं से जुड़े विवादों का निस्तारण समय पर हो, बल्कि यह भी है कि आम आदमी को समय पर न्याय मिले।


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