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![गुणवत्ता का पाठ गुणवत्ता का पाठ](https://jantaserishta.com/h-upload/2025/02/13/4383916-untitled-2-copy.webp)
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Vijay Garg: लो कतंत्र में सरकार के बनाए गए नियमों से ही जनता को चलना होता हैं। सरकार के नियमों से जीवनयापन की जिम्मेदारी लोक उठाता है। मगर सरकार जब नियम-कानून- कायदे बनाती है, तब उससे हर वर्ग और हर विभाग के लिए उसके अनुरूप कानून और कायदे बनाए जाने की अपेक्षा रहती हैं। विडंबना यह है कि शिक्षा और स्थानीय निकायों को एक ही लकड़ी से हांकने की कोशिश हो रही है। आमतौर पर सरकार में बैठे नौकरशाहों को संबंधित क्षेत्र में हर विषय का विशेषज्ञ माना जाता है। मगर सच यह है कि लोक के प्रतिनिधि जब तंत्र में आते हैं तो उन्हें यह देखना चाहिए कि शिक्षा से संबंधित निर्णय अभिभावकों और शिक्षाविदों की सलाह से लिए जाएं। इसके बाद शैक्षणिक सत्र या 'कैलेंडर ' क्षेत्र विशेष के अनुरूप बनाया जाना चाहिए। देश के अलग-अलग राज्यों में एक ही समय में मौसम का तापमान अलग रहता है। वहां के मौसम को देखते हुए ही क्षेत्र विशेष में छुट्टियों का फार्मूला तय किए जाने की जरूरत है। पिछले दिनों एक खबर सामने आई थी कि जिला कलेक्टर सर्दी को मद्देनजर रखते हुए संबंधित जिले में स्कूलों की छुटियां और समय में परिवर्तन कर सकते हैं।
भारत सरकार और राज्य सरकारें शिक्षा सत्र में छुट्टियों के मामले में लगभग एक जैसा ही रुख रखती हैं। जबकि शिक्षा विभाग में अन्य विभागों से छुट्टियां अधिक होती हैं। पिछले दिनों एक जानकारी सामने आई कि स्कूलों में बच्चों के कुल तीन सौ पैंसठ दिन में से एक सौ पैंतालीस दिन अवकाश में बीत जाते हैं। इसके अलावा आकस्मिक अवकाश की व्यवस्था अलग है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि बच्चों के अध्ययन में कोई कमी न हो, इसके लिए छुट्टियों का तालमेल कुछ इस तरीके से बिठाया जाए, ताकि छुट्टियां कम कम हों । दरअसल, एक विचार यह भी रहा है कि इतने अधिक दिन स्कूल बंद रहने से बच्चों के भीतर सीखने और शिक्षण के बाकी स्तर की नींव कमजोर हो जाती है। इस सिरे से देखें तो अगर पढ़ाई-लिखाई के मामले में बच्चों की नींव कमजोर होगी तो इसका सीधा असर देश के भविष्य पर पड़ेगा। इसके अलावा, अलग-अलग कारणों से जिस तरह स्कूलों में बार-बार छुट्टियां या नियमित कक्षाएं बाधित होती हैं, शिक्षकों को अन्य कार्यों में लगाया जाता है, उससे बच्चों की पढ़ाई बाधित होती हैं।
यहां यह भी सोचने की बात है कि बदलते मौसम चक्र में ज्यादा बारिश या गर्मी या ठंड कोई नई बात नहीं रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से अचानक इस वजह से स्कूलों को बंद करने की घोषणा की जाती है, वह विचित्र है। मौसम के बारे में अब पूर्वानुमान से लेकर इस संबंध में आकलन किए जाने को लेकर वैज्ञानिक आधार पहले से मौजूद होते हैं। सवाल है कि स्कूल चलने देने या बंद करने के मामले में मौसम को अगर वजह माना जाता है तो इस वजह को पहले से ध्यान में क्यों नहीं रखा जाता। बदलते मौसम परिवर्तन को पहले से स्कूलों के समय में परिवर्तन किया जाना चाहिए। बार-बार छुट्टियां करना, बेवजह स्कूल बंद रखना उचित नहीं है । फिर ऐसा भी होता है कि कई बार मौसम के बारे में जिस तरह के अनुमान सामने आते हैं, उसके आधार पर घोषणा होती है, मगर अगले दिन से मौसम कई बार वैसा नहीं होता है, जैसा अनुमान लगाया गया होता है।
इसके बावजूद इस बात की जरूरत महसूस होती है कि मौसम के मुताबिक स्कूल में समय-सारिणी तय की जाए। मसलन, सर्दी के मौसम के दौरान पहले से ही स्कूल का समय दस बजे से चार बजे तक का रखा जा सकता है, ताकि बच्चों को सर्दी में ठिठुरते हुए स्कूल न जाना पड़े। यह छिपा नहीं है कि अधिक ठंड के मौसम में सुबह छह या सात बजे स्कूल के लिए निकलने की वजह से कई बच्चे बीमार हो जाते हैं और उनकी सेहत के सामने कई तरह के जोखिम रहते हैं । दूसरी ओर, अधिक छुट्टियां होने के कारण बच्चों का शिक्षण बाधित होता है । प्रत्यक्ष शिक्षण में अंतराल ज्यादा होता है तो इससे पढ़ाई-लिखाई का माहौल कमजोर होता है। ऐसे में बच्चे नियमित पढ़ाई-लिखाई से दूर होते जाते हैं ।
जरूरत इस बात की है कि बच्चों की शैक्षणिक नींव को प्राथमिक शिक्षा से ही मजबूत किया जाए। शैक्षणिक सत्र को मौसम के अनुकूल प्रभावित करने से पहले हमें व्यापक स्तर पर सोचना होगा। ध्यान रखने की जरूरत है कि यह वह समय है जब दुनिया भर में प्रतिस्पर्धा का दौर चल रहा हैं। ऐसे में हमें भविष्य के भारत के लिए बच्चों से ही उम्मीद हैं। इसके मद्देनजर उनकी शिक्षा की नींव को कमजोर होने से बचाना पड़ेगा। यह बात केवल औपचारिक नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक ठोस आकलन है। बुनियाद को हम मजबूत तभी कर सकते हैं, जब बच्चों की पढ़ाई के अवसरों को चिंताजनक होने से बचाएं। एक बात और ध्यान में आती है कि प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के एकीकरण से रोज होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान भी स्कूलों की छुट्टियां करनी पड़ती है । अनेक बार कई विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के चलते लंबे समय तक बच्चों की पढ़ाई ठप हो जाती है। सच यह है कि स्कूली शिक्षा में शिक्षकों की कमी देश भर में एक बड़ी समस्या है। इसकी वजह से देश की शिक्षा व्यवस्था और शैक्षिक गुणवत्ता जिस स्तर पर प्रभावित होती है, उसे लेकर कई बार सवाल उठाए गए हैं। लेकिन इस व्यापक समस्या को दूर करना शायद ही किसी सरकार को प्राथमिक और जरूरी लगता है । जो शिक्षक सेवा में होते हैं, उनके बीच से भी राजकीय नियमानुसार कुछ शिक्षक लंबे समय तक के लिए छुट्टी पर चले जाते हैं। ऐसे में अन्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाती। इन सब कारणों का तो शिक्षा सत्र में कोई हिसाब-किताब नहीं है ।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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Gulabi Jagat
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