सम्पादकीय

भेदभाव की परतें

Subhi
18 Aug 2022 5:38 AM GMT
भेदभाव की परतें
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एक ओर हम आजादी की 75वी वर्षगांठ मना रहे हैं, तो वहीं संकीर्ण सोच, निम्न मानसिकता, जातिगत भेदभाव, छुआछूत जैसी कुप्रथाओं से उबर नहीं पा रहे हैं। वह भी साथ-साथ चली आ रही है।

Written by जनसत्ता: एक ओर हम आजादी की 75वी वर्षगांठ मना रहे हैं, तो वहीं संकीर्ण सोच, निम्न मानसिकता, जातिगत भेदभाव, छुआछूत जैसी कुप्रथाओं से उबर नहीं पा रहे हैं। वह भी साथ-साथ चली आ रही है। खबरों के मुताबिक, हाल ही में राजस्थान के जालौर जिले के सुराणा गांव मे एक दलित बच्चा जातिगत भेदभाव की बलि चढ़ गया। उसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने वहां रखे हुए मटके से पानी पी लिया और उसके बाद कुंठित मानसिकता वाले शिक्षक से सहन नहीं हुआ और उसने उसके साथ जातिगत अपशब्दों का प्रयोग करते हुए, बच्चे की बुरी तरह पिटाई कर दी गई, जिसके चलते उसे गहरी चोट पहुंची। उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई।

यह एक गंभीर विषय है कि वह गुरु जो बिना किसी भेदभाव के अपने विद्यार्थी को भविष्य में किसी के साथ भेदभाव न करने, सबके साथ अच्छा व्यवहार करने जैसी अच्छी शिक्षा देता है, अगर वही शिक्षक ऐसा करने लग जाए तो इस मानसिकता से कैसे उबरा जाएगा? कैसे अच्छे व्यक्तित्व का विकास होगा? कैसे अपना देश तरक्की कर पाएगा?

कई लोग किसी की रचना को या किसी के लिखे लेख, चाहे जयंती के हो या इतिहास आदि के, कापी-पेस्ट कर या तोड़-मरोड़ कर उपयोग में लेते हैं। जबकि अगर किसी का लेख या किताब में से लिया गया हो तो कम से कम उस मूल लेखक की किताब या उस लेखक का उल्लेख अवश्य करना चाहिए। बल्कि उससे अनुमति लेकर ही उसे प्रकाशन के लिए भेजना उचित होता है। कोई भी लेख की संपूर्ण जानकारी के लिए अगर लिखना हो तो कई बार महीनों लग जाते हैं। उसके बाद वह लेख तैयार होता है।

कोई भी इतना तो ज्ञानी नहीं होता कि उसे हर विषय के बारे में प्राचीन आंकड़ों की जानकारी हो। लेख लिखने के बाद जिस पुस्तक से लिया गया हो, उस पुस्तक के नाम का उल्लेख लेख के अंत में साभार या संकलनकर्ता के रूप में न किया जाना चोरी की श्रेणी में होता है। कई साहित्यकार सोशल मीडिया पर एक दूसरे की कहानी, लेख, कविता आदि चुराकर अपने नाम से प्रकाशित करवाने लगे हैं।

साहित्य की साधना में वर्षों लग जाते है। साहित्य की दुनिया में साहित्य उपासकों को पता चल ही जाता है यह उनकी रचना है। ये प्रथा बंद होनी चाहिए। किताबों को पढ़ कर सामर्थ्यवान, बुद्धिमान बनना चाहिए, ताकि लोग किसी का साहित्य पढ़ कर प्रेरणा ले सकें। साहित्य की चोरी बुद्धि का अपमान है। इस पर अंकुश लगाया जाना आवश्यक है।


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